तमिलनाडु में स्टालिन की सरकार और बंगाल में ममता दीदी के शासन को देखकर साफ समझा जा सकता है कि दोनों ही राज्यों में किस तरह से अराजकता फैली हुई है. दोनों ही राज्यों में मनमानी और अपराध चरम पर है । दरअसल DMK जब से तमिलनाडु में सत्ता में आयी है तब से अप्रिय घटनाओं के लिए राज्य सुर्ख़ियों में रहा है। चाहे वो बदतर कानून व्यवस्था को लेकर हो या फिर स्टालिन सरकार की तरफ से हिंदू मंदिरों को तोड़ने का मामला हो । पहले हमारे मंदिरों को निशाना बनाया गया और अब हमारी सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत को लेकर स्टालिन सरकार का तानाशाह रवैया. हर बार तमिलनाडु की स्टालिन सरकार की मनमानी बढ़ती ही जा रही है.

दरअसल हाल ही में तमिलनाडु के राजकीय मदुरै मेडिकल कॉलेज के MBBS प्रथम वर्ष के छात्रों ने शनिवार 30 अप्रैल को अंग्रेजी की जगह संस्कृत में शपथ ले ली जिसके बाद तमिलनाडु की कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन करने बाली स्टालिन सरकार ने डीन को हटा दिया। बता दें आपको छात्रों ने ओरिएंटेशन सेरेमनी के दौरान हिप्पोक्रेटिक शपथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ‘ ली। ऐसा देश में पहली बार हुआ है, जब मेडिकल छात्रों ने हिप्पोक्रेटिक की बजाय महर्षि चरक शपथ ली हो . समारोह के दौरान तमिलनाडु के वित्त मंत्री पीटीआर पलानीवेल थियागा राजन और राजस्व मंत्री पी मूर्ति भी मौजूद थे। डीएमके को इस बात से आपत्ति थी कि Hippocrates की शपथ क्यों नहीं ली गई। दैखा जाए तो जो सरकार हिंदू मंदिरों को तोड़वा सकती है भला वो भारतीय संस्कृति के बढ़ते प्रसार को कैसे बर्दाश्त करेगी?

तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यम ने चिकित्सा विभाग के निदेशक डॉ. नारायण बाबू को नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जांच के आदेश दिये हैं। राज्य सरकार ने कहा कि वह सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रमुख को एक सर्कुलर के माध्यम से छात्रों को हमेशा हिप्पोक्रेटिक ओथ दिलाने के लिए कहेंगी।

वहीं इस पूरे मामले पर डीन रथिनवेल ने कहा कि छात्र समिति ने स्वंय चरक शपथ लेने का फैसला किया था, और छात्रों ने इसे एनएमसी वेबसाइट से प्राप्त किया था, जहां संस्कृत की शपथ रोमन लिपि में है। हालांकि, उनकी इस दलील को सरकार की ओर से स्वीकार नहीं किया गया।

कुल मिलाकर निचोड़ यही है कि स्टालिन सरकार जिस तरह से हिंदू विरोधी रुख अपना रही है उससे तो यही लगता है भारतीय सभ्यता-संस्कृति का अपमान करने में स्टालिन सरकार का कोई तोड़ नहीं है.

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