कांग्रेस की बेचैनी स्वाभाविक है। उनकी जमीन खत्म हो चुकी है। कभी जिस उत्तर प्रदेश से वो देश की बागडोर संचालित करते थे आज अमेठी से भी जीतने के लायक नहीं बचे। ऐसे में यूपी के किसी भी पोलिटिकल इवेन्ट को वो भला क्यों छोड़ देंगे?

लेकिन सोच तो लेते कि किस इवेन्ट से उन्हें क्या लाभ हो रहा है और क्या नुकसान। यूपी के लखीमपुर खीरी में क्या हुआ क्या नहीं, इसमें न भी जाएं तो सत्य ये है कि आठ लोग अकाल मौत मारे गये। इसमें तीन सिख हैं और पांच हिन्दू। कांग्रेस ने किसान के नाम पर इवेन्ट लपकने का प्रयास तो किया लेकिन ये भूल गये कि यूपी में सिक्ख 0.42 प्रतिशत ही है।

इसके उलट जो पांच लोग उग्र खालिस्तान समर्थकों की भीड़ द्वारा मारे गये संयोग से उसमें तीन पंडित, एक निषाद और एक अन्य हैं। अब आप सोचिए कि अपने कर्म से ये भाई बहन यूपी वालों को क्या संदेश दे रहे हैं? एक तरफ इनको तकलीफ है कि यूपी के ब्राह्मणों में कैसे पैठ बनायी जाए, दूसरी तरफ तीन ब्राह्मण और एक निषाद की मौत का मजाक भी बना रहे हैं। जिस भीड़ ने मारा, उसी भीड़ का समर्थन कर रहे हैं।

हो सकता है ये भाई बहन गले लगकर इसी बहाने चौरासी के पाप धोने का प्रयास कर रहे हों लेकिन ये इवेन्ट पूरी तरह से गलत मंच पर अयोजित हो गया। यूपी पंजाब नहीं है जहां खालिस्तान खालिस्तान खेला जाए। अगर इन्हें यूपी की राजनीति साधनी होती तो ये लोग थोड़ा संभलकर स्वांग करते। कम से कम इतना तो ध्यान रखते कि जो करने जा रहे हैं उससे वोटों का संतुलन बनेगा या बिगड़ेगा।

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