गुजरात दंगों से जुड़े साजिश मामले में गिरफ्तार कथित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से शुक्रवार को अंतरिम जमानत मिल गई है. तीस्ता पर गवाहों के झूठे बयानों का मसौदा तैयार कर नानावती आयोग के सामने पेश करने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए तीस्ता सीतलवाड़ को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ से अपना पासपोर्ट सरेंडर करने के लिए भी कहा कि यह पासपोर्ट तब तक सरेंडर रहेगा जब तक कि हाईकोर्ट नियमित जमानत के मामले पर विचार नहीं कर लेता। तीस्ता कल यानी शनिवार को जेल से रिहा होंगी। 25 जून को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने तीस्ता को मुंबई से गिरफ्तार किया था।

वहीं जैसे ही तीस्ता के जमानत की खबर आई वामपंथियों के खेमे में मानो रौनक आ गयी, सोशल मीडिया पर तीस्ता का स्वागत इस अंदाज में किया जाने लगा मानो कोई विजेता युद्ध जीतकर घर लौटा हो.

वहीं दूसरी तरफ TRP के पीछे भागती मीडिया को कुछ खबरें बहुत महत्वपूर्ण लगी  ही नहीं. गुजरात दंगों में निर्दोषों को फंसाने की साजिश रचने वाली तीस्ता के जमानत के बीच एक खबर ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1989-90 के बाद से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन वाली याचिका पर सुनवाई करने से एक बार फिर इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित अथॉरिटी के पास जाने का आदेश दिया है. नरसंहार और घाटी से पलायन की जांच के लिए SIT बनाये जाने की मांग करने वाली इस याचिका की सुनवाई के बाद कोर्ट ने इसके लिए अधिकृत अथॉरिटी के पास जाकर बात रखने को कहा है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ‘वी द सिटीजन्स’ नामक NGO की ओर से लगाई गई इस जनहित याचिका में पलायन करने वाले लोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करने की भी बात कही गई थी. NGO ने कोर्ट से यह भी मांग की थी कि जनवरी 1990 के पलायन के बाद हुई संपत्तियों की खरीद फरोख्त भी निरस्त की जाए. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि कश्मीर में एक लाख से अधिक हिंदुओं का नरसंहार हुआ था.

याचिका में कहा गया है कि घाटी में साल 1989 से 2003 के बीच हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया था जिसके लिए दोषी और अपराधियों की मदद करने वालों की पहचान के लिए SIT बनाई जानी चाहिए. याचिकाकर्ता के अनुसार पलायन और नरसंहार के लिए दोषियों के खिलाफ उस समय के तत्कालीन सत्ताधारी दलों के कारण कोई कार्रवाई नहीं की गई थी.

वहीं इसी के साथ एक बार फिर कश्मीर घाटी में 90 के दशक में प्रताड़ना झेलने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की तारीख और आगे बढ़ गई और उम्मीद केंद्र सरकार की तरफ टिक गई.

 

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