तेजस्वी यादव का द्रौपदी मुर्मू को “मूर्ति” कहना गलत : राबड़ी देवी से मुर्मू की कोई तुलना नहीं

लालू यादव अपने राजनैतिक , और सामाजिक और तो और कारागारिक जीवन में भी जितने तरह के प्रपंच और नौटंकी के लिए जाने जाते रहे हैं , उनके दोनों होनहार चश्मों चरागों ने भी इस परमपरा को आगे बढ़ाने में भरपूर योगदान दिया कर दे रहे हैं। शायद ही कोई सप्ताह बीतता हो जब लालू के बड़े सुपुत्र तेजप्रताप किसी न किसी वजह से चर्चा में और मीडिया में आ जाते हैं न हो तो समय समय पर देवी देवता ही बन जाते हैं। छोटे और लालू यादव के राजनैतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव की मेधा भी किसी से छुपी नहीं है।
संसद को द्रौपदी मुर्मू जैसी राष्ट्रपति नहीं चाहिए बकौल तेजस्वी वो मूर्ति सामान होंगी -बेशक तेजस्वी यादव ने अपने इस बयान से मुर्मू की तुलना अपनी माता और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से करने की कोशिश की है , क्यूंकि आलोचकों की मानें तो लालू यादव ने जेल की सज़ा पाते ही रातों राबड़ी देवी को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी और उनका शासन प्रभाव मूर्ति जितना भी नहीं रहा। ये बिहार के कुछ सबसे बुरे शासनकाल में से एक रहा।
तेजस्वी शैक्षिणिक रूप से कितने मंद और राजनैतिक रूप से कितने अपरिपक्व हैं , इसका प्रमाण वे अक्सर अपने मूर्खतापूर्ण बयानों से देते रहते हैं। उन्हें अपने गिरेहबान में झाँक कर देखना चाहिए कि जिन द्रौपदी मुर्मू की शख्शियत पर वे सवाल उठा रहे हैं उनके सामने तेजस्वी की खुद की राजनैतिक हैसियत लेश मात्र भी नहीं है।
एक बार इक्कीस तोपों की सलामी उन naughty पत्रकारों को भी जिन्हें राष्ट्रपति चुनाव ( यकीन मानिये तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों मिल पर भी सार्वजनिक रूप से राष्ट्रपति के चयन की पूरी प्रणाली ठीक ठीक समझ और समझा सकेंगे , बहुत को इसमें भी संदेह है ) और राष्ट्रपति उम्मीदवार पर बयान लेने के लिए तेजस्वी यादव जैसे महान राजनेता मिल जाते हैं। अजी हाँ !
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