जैसा कि अंदाज़ा भी लगाया जा रहा था कि , पिछले इतने दिनों से बार बार की कोशिशों के बावजूद भी खत्म न किए जाने वाले गतिरोध और इस मजमे/तमाशे के रूप में सड़कों पर दिखाए जाने वाले इस आंदोलन का असली मकसद और षड्यंत्र कुछ और ही है।
शुरू से ही एक अराजक भीड़ की तरह एकत्रित लोगों में से किसी को भी न तो क़ानून के किसी उपबंध ,धारा से कोई शिकायत या दिक्कत ऐसी खड़ी हो गई थी जिसके कारण , कोरोना महामारी की देशबन्दी के बाद जैसे तैसे शुरू हुए काम धंधे कृषि उद्योग को छोड़कर सड़क पर मरने मारने को उतारू होने के लिए विवश होना पड़ा।
गली गली , शहर गाँव में कुकुरमुत्ते की तरह खड़े किए गए ये तमाम किसान संगठन आज तक सरकार , समाज , नीति निर्धारकों और खुद किसानों के लिए , उनके भविष्य और खाद्यान्न को सुरक्षित संरक्षित किए जाने के लिए , कभी कोई नीति , कोई योजना कोई सुधार प्रस्तावित किया हो , कोई नया दूरदर्शी सुझाव दिया हो , इसका उदाहरण देखने सुनने को नहीं मिलता।
पूरे दर्ज़न भर से भी अधिक बैठकें हुईं सरकार के साथ इन तमाम किसान संगठनों के नेता या इन्हें ठेकदार और दलाल कहना ही ज्यादा उपयुक्त होगा। इन दर्जन भर बैठकों में सिर्फ सरकार और मोदी को कोसने के अतिरिक्त कोई बात बनी हो ऐसा प्रतीत नहीं होता।
किसी भी आंदोलन के नाम पर लोगों को उकसाने , बरगलाने और अफवाहों को फैला कर दंगे फसाद कराने में माहिर लोग भी इस भीड़ में शामिल होकर देश सरकार ,कानून और पुलिस तक के विरूद्ध साजिश रचने में लग गए जिसकी परिणति 26 जनवरी ,गणतंत्र दिवस को कलंकित करने के रूप में सामने आई।
इन तमाम लोगों के षड्यंत्र पर तभी संदेह होने लगा था जब , किसानों के नाम पर लगाए गए इस मजमे में कभी बुर्कानशीन खवातीनों ने दिल्ली दंगों के आरोपियों की रिहाई के लिए तो किसी खालिस्तान समर्थक गुट ने भिंडरवाले की तस्वीरें ,बैनर और पोस्टर चस्पा करके नारेबाजी और प्रदर्शन किया।
पिछ्ले कुछ वर्षों में अपनी सत्ता और प्रभाव बिलकुल खो चुके विपक्षी भी आदतन पूर्वाग्रह से ग्रस्त विषाक्त सोच और साजिश को हवा देकर इन अराजकतावादियों के साथ ही देश को तोड़ने और सरकार शासन को अस्थिर करने के अपने मंसूबे पूरे करने में लगे रहे।
अब जबकि गणतंत्र दिवस पर , अराजकता और उदंडता का नंगा नाच किया जा चुका है। लालकिले की प्राचीर , तिरंगा ध्वज , सैनिक , फ़ौजी , देश समाज सबको कलंकित और आतंकित करने का तमाशा किसान आंदोलन के नाम पर इकट्ठा हुए इन सब उपद्रवियों ने पूरा कर लिया तो अब ये आंदोलन ख़त्म होने की कगार पर है।
ट्रैक्टर , देश के मान सम्मान , किसान की छवि , सबको दागदार करके वापस अपने खेतों की ओर मुड़ चले हैं और देर सवेर इन सबके अपराधी भी अपने जुर्म की सज़ा पाएंगे ही लेकिन किसानों के देश कहलाने समझे और जाने वाले देश में किसानों के नाम पर की गई ये अराजकता , ये अपराध इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा ,कोई कभी नहीं भूलेगा इसे।
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