एक बार फिर देश का एक विश्व विद्यालय एक गलत कारण से चर्चा और विवाद में हैं | हालिया प्रकरण में कभी अपनी शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता के लिए केंद्रीय विश्व विद्यालय के रूप में मान्यता पाने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय में वहाँ पढ़ने वाली एक गैर मुस्लिम छात्रा ने अपनी शिकायत में कहा है कि उसे न सिर्फ हिज़ाब पहनने के लिए विवश किया जा रहा है बल्कि न पहन सकने की स्थिति में पीतल का नकाब पहना देने की धमकी दी जा रही है | मामला मीडिया में आने के बाद तूल पकड़ता जा रहा है और टेलीविजन तथा सोशल मीडिया पर विश्व विद्यालय प्रशासन के अधिकारी इसे गलत/झूठ बता रहे हैं |
ये पहली बार नहीं जब ऐसी अनुचित बातों के लिए ये और इस जैसे कुछ कुछ चुनिंदा विश्व विद्यालय अपने छात्रों / शोधार्थियों की उपलब्धियों और उनके ग्रंथों के कारण चर्चा में न रहकर ऐसे ही नकारात्मक वजहों से सुर्ख़ियों में रहते रहे हैं | इन विश्व विद्यालयों में अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के अलावा , पश्चिम बंगाल का जादव पुर विश्व विद्यालय तथा दिल्ली स्थित विश्व विख्यात जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय व जामिया मिल्लिया विश्व विद्यालय कुछ ऐसे शिक्षण संस्थान रहे हैं जिन्होंने पिछले दिनों अपना ध्यान गैर शैक्षणिक क्रिया कलापों के कारण खींचा है |
हैरानी की बात ये है कि इन तमाम विश्व विद्यालयों को उच्च शिक्षा प्रदान करने हेतु विभिन्न सरकारों से अनुदान के रूप में प्रति वर्ष एक भारी भरकम राशि दी जाती रही है जिसका उपयोग वहाँ के छात्रों द्वारा शिक्षा , हॉस्टल तथा शोध आदि के उद्देश्य के लिए किया जाना अपेक्षित होता है |
वर्तमान की भाजपा सरकार के आने के बाद एक विशेष विचारधारा वाले व्यक्तियों द्वारा लगातार कभी देश विरोधी ,कभी प्रशासन विरोधी , कभी सेना विरोधी तो कभी धार्मिक पक्षपात की अनेक घटनाओं के कारण नाम से अधिक बदनाम होते रहे हैं | अफ़सोस की बात यह है की न सिर्फ छात्र बल्कि विश्व विद्यालय का शिक्षक समूह और कई प्रशासनिक अधिकारी तक ऐसी घटनाओं को न सिर्फ हवा दे कर उसे और बढ़ाते रहे हैं बल्कि कई बार खुद उनकी ही सोच से ये सब शुरू ख़त्म हुआ है |
छात्रों का राजनीति की तरफ रुझान और उसमें उनकी सक्रिय भागीदारी का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है | लेकिन कभी शैक्षणिक मुद्दों , सामाजिक समस्याओं और सरकार की दमनकारी नीति के विरुद्ध बेख़ौफ़ खड़ा होने का पर्याय बनने वाला छात्र आंदोलन धीरे धीरे इन एजेण्डावादियों के हाथों की कठपुतली बनता चला गया | कभी मौन व्रत ,धरना और ,काली पट्टी जैसे विरोध के प्रतीकों वाला छात्र आंदोलन अब हिंसा आगजनी तोड़फोड़ आदि के लिए लालायित सा रहने लगा था |
जिन छात्रों को आगे आकर सरकार ,प्रशासन , नीतियां , राजनीति आदि में बदलाव के लिए नए विचार , नए प्रयोगों की ओर अपना योगदान देना चाहिए था वे कभी सेना ,कभी पुलिस ,कभी प्रशासन और राष्ट्र तक के खिलाफ जैसे युद्द छेड़ देने पर आमादा होने की प्रवृत्ति के दलदल में आकंठ डूबते चले गए | इससे ज्यादा दुखद बात क्या होगी कि आज इन तमाम एजेण्डावादियों द्वारा प्रायोजित ऐसे छद्म आन्दोलनों की आड़ में लिप्त बहुत से छात्रों पर न सिर्फ आपराधिक बल्कि राष्ट्र द्रोह में लिप्त पाए जाने के मुक़दमे चल रहे हैं और वे पुस्तकालय और सन्दर्भ ग्रंथालय की बजाय थानों और अदालतों में हाजिरी लगा रहे हैं |
सुकून और संतोष के साथ गौर करने वाली बात ये भी है कि पूरे देश भर में लगभग 1000 सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में से ये गिने चुने कुछ विश्व विद्यालय ही ऐसे हैं जिन्होंने सोच और ठान लिया है कि वे अपना और अपने संस्थान का नाम सकारात्मक उपलब्धियों के लिए नहीं बल्कि ऐसे ही काण्डों के कारण सामने लाएंगे | वो कहते हैं न या कुकर्म से नाम हो या सुकर्म से
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