भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों की जब भी चर्चा होती है तो प्रत्येक देशवासी के मन में यही भावना रहती है कि देश पाकिस्तान से सदैव आगे ही आगे रहे. खेल के मैदान से लेकर राजनीति के अखाड़े तक कहीं भी पाकिस्तान को आगे बढ़ते देख पाना देशवासियों के लिए संभव नहीं होता है. एकाधिक अवसरों पर देखा गया है जबकि पाकिस्तान पर विजय का उल्लास कई-कई दिनों तक बना रहा. जीत की ख़ुशी में जश्न लम्बे समय तक चलते रहे. जब खेल के मैदान की यह स्थिति होती है तो सोचा जा सकता है हमारे सैनिकों, हमारी सेना द्वारा उसको युद्ध में हराये जाने का जश्न कितना-कितना लम्बा और गौरवान्वित करने वाला रहा होगा. सन 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर जीत का जश्न आज भी पूरा देश विजय दिवस के रूप में मनाता है. विजय दिवस प्रति वर्ष 16 दिसम्बर को मनाया जाता है. इस युद्ध का अंत पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण के द्वारा हुआ था. इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में लगभग 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे.
इस युद्ध की पृष्ठभूमि वर्ष 1971 के शुरू होते ही बनने लगी थी. पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान को सैनिक ताकत कब्जे में कर लिया. शेख़ मुजीब को गिरफ़्तार कर लिया गया. वहाँ पर सैनिकों के अत्याचारों के चलते वहां से शरणार्थी लगातार भारत आने लगे. ऐसा होने पर वैश्विक समुदाय की तरफ से भारत पर यह दबाव पड़ने लगा कि वह वहां पर सेना के जरिए हस्तक्षेप करे. इस सम्बन्ध में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने थलसेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ से विचार-विमर्श किया. तब की प्राकृतिक स्थिति के चलते भारतीय सेना लगातार युद्ध करने में सक्षम नहीं समझ आ रही थी. ऐसे में मानेक शॉ ने इंदिरा गांधी से स्पष्ट कहा कि वे पूरी तैयारी के साथ ही युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं. असल में इंदिरा गाँधी उसी समय अप्रैल में ही हमला करना चाहती थीं.
दिसंबर 1971 में एक शाम पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय वायुसीमा को पार करके पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरू कर दिए. इंदिरा गांधी ने मंत्रिमंडल की आपात बैठक की और भारतीय सेना हमले के लिए तैयार हो गई. युद्ध शुरू होने के बाद 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश को पकड़ा कि दोपहर ग्यारह बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं. उसी दौरान ही भारतीय सेना के मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी.
भारतीय सेना लगातार आगे बढ़ती जा रही थी. पाकिस्तानी जनरल जैकब की हालत बिगड़ रही थी. भारतीय सेना ने युद्ध पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली थी. 16 दिसंबर की सुबह मानेकशॉ का संदेश जनरल जैकब को मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें. शाम के साढ़े चार बजे जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे. पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए०ए०के० नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. दोनों ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए. नियाज़ी ने अपनी वर्दी से अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया. उस समय नियाज़ी की आंखों में आंसू आ गए थे. सम्पूर्ण घटनाक्रम वहाँ के स्थानीय नागरिकों के संज्ञान में भी था. वे लोग नियाजी की हत्या़ पर उतारू थे. भारतीय सेना के वरिष्ठ अफ़सरों ने नियाज़ी को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला. जिसके बाद 17 दिसम्बर को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया.
जब पाकिस्तान पर विजय की खबर जनरल मानेक शॉ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को दी तो उनकी घोषणा के बाद पूरा देश जश्न में डूब गया. इस ऐतिहासिक जीत को खुशी आज भी हर देशवासी के मन को उमंग से भर देती है.
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.