स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था| उनका नाम नरेंद्र नाथ  दत्ता था|वह रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद जी भारतीय क्षितिज में एक  चमकते हुए सितारे थे| एक योद्धा सन्यासी के रूप में  उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा| वे एक महान दार्शनिक एवं वैदिक संस्कृति के संवाहक थे, एवं वह पूर्व और पश्चिम दर्शन के योजक भी थे| उन्होंने संपूर्ण विश्व में सनातन वैदिक धर्म की कीर्ति पताका फहराई थी|

विश्व धर्म परिषद में अमेरिका के शिकागो में दिया गया  उनका भाषण एक यादगार भाषण है| स्वामी विवेकानंद ने नारा दिया था कि “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” और वे कहते थे कि “हिंदू कोई मत पंत नहीं है वह समग्र जीवन दर्शन  एवं एक विचारधारा है”| वह कहते थे उठो, जागो, एवं तत्वदर्शी सतगुरु की शरण में जाकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लो मैं तुम्हें जगाने आया हूं| हे भारतवासियों तुम्हारे सोए हुए भाग्य को एवं खोए हुए स्वाभिमान को जगाने आया हूं|

अमेरिकी लोगों के एक प्रश्न पर उन्होंने कहा था आपके यहां व्यक्ति का मूल्यांकन वेशभूषा एवं वस्त्रों से किया जाता है परंतु हमारे यहां आचरण से किया जाता है| वे कहते थे हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र के विकास में हैं| उन्होंने पूर्व और पश्चिम  संस्कृतियों को जोड़ने के लिए एक सेतु का काम किया| उनके अनुसार हम पश्चिम से काफी कुछ सीख सकते हैं लेकिन जरूरी है कि हमारी प्राचीन विरासत तथा आध्यात्मिक बहुलता पर उतना ही यकीन हो |उनका मानना था कि हमारे लोगों को अपने समृद्ध ज्ञान और परंपरा पर भी गर्व हो ना कि हम अपनी जड़ों को त्याग कर सिर्फ पाश्चात्य शैली का अंधानुकरण करें|

स्वामी जी ने कहा था निर्भय बनो, आत्मविश्वासी बनो, और अपने शब्दों पर विश्वास करो| स्वदेशी पर जोर देकर स्वाबलंबी भारत बनाने के लिए अथक प्रयास किया| स्वामी विवेकानंद जी भारत के अतीत के गौरव को वापस लौटा कर भारत को जगत गुरु के पद पर प्रतिस्थापित करना चाहते थे| सुभाष चंद्र बोस ने कहा था स्वामी जी ने पूर्व एवं पश्चिम, धर्म एवं विज्ञान, और भूत एवं वर्तमान का आपस में मेल कराया है और यही विवेकानंद जी को महान बनता है।

स्वामी जी खुली विचारधारा के पैरोकार थे| उन्होंने सामाजिक कुरीतियों अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया| उस समय समुद्र पार  करना धर्म माना जाता था एवं समुद्र की मर्यादा को भंग करना माना जाता था, ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद जी ने सात समंदर पार करके अमेरिका सहित कई पश्चिम के देशों की यात्राएं की|

आज हम स्वामी विवेकानंद के जन्म की १५८वी वर्षगांठ मना रहे हैं और इस पुण्य दिवस पर मैं अपने देश को युवाओं से आवाह्न करती हूँ की विवेकानंद जी को पढ़ें और उनके सिद्धांतो पर चलने का प्रयत्न करें। हम भारतवासियों को गौरवान्वित महसूस करना चाहिए क्यूंकि हमने उसी पावन भूमि पर जन्म लिया जिस पर कभी स्वामी विवेकानंद रहा करते थे।

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