झारखंड में सरकार की नाक के नीचे शिक्षा के मंदिर में इन दिनों इस्लामिस्ट आतंक मचा रहे हैं और सरकार मानों नींद की गोली खाकर सोई पड़ी है. हाल के दिनों में झारखंड के अलग-अलग जिलों में जिस तरह विशेष समुदाय के लोग हिंदुओं को परेशान कर रहे हैं उसके कई डरावने वाले उदाहरण सामने हैं.
इन दिनों झारंखड में जिहादियों के निशाने पर स्कूल हैं जहां कभी साप्ताहिक छुट्टी रविवार के बदले शुक्रवार को लागू करने को लेकर मुस्लिम समुदाय अपने नियम लागू कर देते हैं तो कभी स्कूल में प्रार्थना को लेकर हंगामा करते हैं. तमाम कोशिशों के बाद भी स्कूल में शिक्षा विभाग के बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाकर विशेष समुदाय के लोग स्कूल में पढ़ने वाले हिंदु बच्चों पर अपने नियम थोप रहे हैं.
इसी कड़ी में झारखंड के स्कूलों में एक बार फिर प्रार्थना को लेकर नियमों और निर्देशों को ठेंगा दिखाने का सिलसिला जारी है। क्योंकि राज्य सरकार जब सख्ती दिखाती है, तो नियमों का पालन शुरू हो जाता है, लेकिन सख्ती कम होते ही दोबारा स्कूलों में मनमानी शुरू हो जाती है। झारखंड के पलामू जिले के छतरपुर प्रखंड के ठेंकहीटांड स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में प्रार्थना के समय हाथ नहीं जोड़ने का मामला सामने आया है। छतरपुर प्रखंड के डाली पंचायत स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय ठेंकहीटांड में पहली से लेकर आठवीं तक की पढ़ाई होती है। सरकार के निर्देश के बाद बच्चों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना शुरू की। कुछ दिनों यह सिलसिला चला। लेकिन एक बार फिर स्थानीय मुसलमानों के दबाव में बच्चे हाथ मोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं।
वहीं पलामू जिले के ही विश्रामपुर प्रखंड के उतक्रमित मध्य विद्यालय डेहरिया में भी इस्लामिस्टों ने आतंक मचा रखा है जहां शुक्रवार को स्कूल खुल तो रहे हैं लेकिन बच्चे स्कूल नहीं आते। इसी तरह उर्दू विद्यालय बाना के नाम से अब भी उर्दू शब्द नहीं हटाया गया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्क्रमित मध्य विद्यालय ठेंकहीटांड की शिकायत आने के बाद अब पलामू के डीईओ सह डीएसई अनिल कुमार चौधरी ने जांच की बात कही है। नियम के मुताबिक हाथ मोड़कर नहीं हाथ जोड़ कर सभी को प्रार्थना करना जरूरी है। उन्होंने जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई करने की बात कही है
बडी विडंबना है कि झारखंड के स्कूलों में बच्चों को धर्म की अजीब ही घुट्टी पिलाई जा रही है। अगर हर धर्म के लोग इसी तरह अपने धर्मों के अनुसार सरकारी स्कूलों पर अपने नियम थोपने लगे तो सोचिए मौजूदा व्यवस्था का क्या होगा? यहां सवाल झारखंड सरकार से है कि आखिर हमारा प्रशासन तंत्र ऐसी कौन सी नींद की गोली खाकर सो रहा है कि उसे ये पता ही नहीं चलता कि स्कूलों-कॉलेजों में हो क्या रहा है? इन गांवों, इन स्कूलों में कम ही सही, जितने भी दूसरे धर्म के बच्चे हैं उनका क्या कसूर है? उनपर दूसरे धर्म के रीति-रिवाज क्यों थोपे जा रहे हैं? उनकी शिक्षा को क्यों जुमे की भेंट चढ़ाया जा रहा है?
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