शताब्दियों से भारत को एक पुरुष प्रधान समाज के रूप में देखा जा रहा है। अधिकतर लोग इस बात पर विश्वास रखते हैं की प्राचीन भारतीय ग्रंथ महिला विभेदक रहे हैं। किंतु असलियत इस बात से पूर्णतया भिन्न है।आइए जानते हैं-
वेद और बाकी पौराणिक ग्रंथ सभी महिलाओं को सम्मानित तथा आदर की दृष्टि से देखते थे। इन पौराणिक ग्रंथों में बड़े विस्तार से स्त्रियों की सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक, तथा सांस्कृतिक भूमिका, उनके अधिकार तथा उनका समाज में ओहदे का वर्णन किया है।
अथर्ववेद का घोष है की स्त्रियों को अपने ससुराल में सम्राज्ञी की तरह व्यवहार करना चाहिए। (अथर्ववेद 14.1.44: सम्राज्ञेधि श्वशुरेषु सम्राज्ञ्युत देवृषु। ननान्दुः सम्राज्ञेधि सम्राज्ञ्युत श्वश्रवाः।।)। भारत का प्राचीनतम ग्रंथ यानी ऋग्वेद में आधुनिक वैज्ञानिक प्रथा जिसका नाम प्रोस्थेसिस है का उल्लेख मिलता है। प्रोस्थेसिस, मानव शरीर के किसी अपंग अंग को नए अंग से बदलने कि क्रिया को प्रोस्थेसिस कहते हैं। इस उल्लेख में रोचक बात यह है की जिस व्यक्ति के ऊपर यह क्रिया की गई थी वह एक महिला थी जिसका नाम विश्पला था। औषधियों के देवता अश्विनी कुमारों ने महारानी विश्पला के ऊपर यह शल्यक्रिया की थी। विश्पला ने अपना एक पग खेल के युद्ध में खो दिया था। (ऋग्वेद 1.116.15: च॒रित्रं॒ हि वेरि॒वाच्छे॑दि प॒र्णमा॒जा खे॒लस्य॒ परि॑तक्म्यायां। स॒द्यो जंघा॒माय॑सीं वि॒श्पला॑यै॒ धने॑ हि॒ते सर्त॑वे॒ प्रत्य॑धत्तं ॥)
ऋग्वेद में केवल ऐसी महिलाओं के अनेकानेक उदाहरण ही नहीं है बल्कि ऋग्वेद के कई मंत्र दृष्टा स्वयं महिला थीं। ऐसी स्त्रियों को ऋषिका कहा जाता था। इन्हीं में से एक लोपामुद्रा जो कि एक प्रसिद्ध दार्शनिक तथा ऋग्वेद की कई ऋचाओं की दृष्टा थीं, तथा कई स्तोत्रों तथा सूक्तों की लेखिका थीं। लोपामुद्रा ऋषि अगस्त्य की पत्नी थीं। अन्य ऋषिकाओं का नाम ममता, विश्ववारा, अपाला, सूर्या, घोषा, तथा वाक् हैं। इन सब ने वेदों की रचना में अहम भूमिका निभाई।
एक प्रसिद्ध मंत्र यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः, मनुस्मृति (3.56) से उद्धृत है जो कि सदैव औरतों तथा अनुसूचित जातियों के विपक्ष के रूप में देखा जाता है। इसका अर्थ है कि जिस स्थान पर नारियों का सम्मान होता है उस स्थान पर देवता वास करते हैं। मनुस्मृति से एक और श्लोक का उल्लेख कर रहा हूं, इसका अर्थ है “जिस घर में स्त्रियों का सम्मान होता है, तथा जिस परिवार में स्त्रियां प्रसन्न रहती हैं उस परिवार में सदैव लक्ष्मी का वास रहेगा तथा जिस परिवार में स्त्रियों का अपमान होता है वह नष्ट हो जाएगा।” (मनुस्मृति 3.57: शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।)। मनुस्मृति में महिलाओं के विरुद्ध अपमानों के लिए अत्यंत कष्टदायक दंडो का वर्णन मिलता है।
यह तो केवल प्राचीन भारतीय परंपरा की झलक मात्र है ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण विभिन्न ग्रंथों तथा काव्य में प्राप्त होते हैं जो कि स्त्रियों के सम्मान और उनकी प्रशंसा को दर्शाते हैं।
यह तो हाल ही में समाज महिलाओं के अधिकारों के विषय में चिंतन करने लगा है और फेमिनिज्म जैसे कई शब्दों का प्रयोग करने लगा है। प्राचीन भारतीय परंपरा न जाने कितने वर्षों से नारियों का सम्मान करती आई है।
आदर्शेयं सुप्राणीनां भूतानां सुगतीप्रदाम्।
तारिणी सर्व पापेभ्यः वन्दे आर्ष परम्पराम्।। (स्वरचित)
नमो नमस्ते!
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