• एकतरफा धर्मनिरपेक्षता से आजिज जनता को योगी की शैली आ रही पसंद
  • राम को काल्‍पनिक बताने वाले गंगा नहाने पर मजबूर
  • अल्‍पसंख्‍यकों के रहनुमा घूम रहे मंदिर मंदिर

उत्‍तर प्रदेश में पहली बार हो रहा है कि सनातन से जुड़े आस्‍था और विरासत राजनीति के केंद्र में आ गये हैं। भव्‍य कुंभ का आयोजन, धार्मिक स्‍थलों का उद्धार और सौंदर्यीकरण बहुसंख्‍यकों को पहली बार अपनी सरकार होने का संदेश दे रहा है। यह बदलाव सत्‍तर साल के उस जख्‍म पर मरहम जैसा प्रतीत हो रहा है, जो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में गैर भाजपाई दलों ने दिया था। जिनकी धर्मनिरपेक्ष सत्‍ता का मतलब ही होता था चौरासी कोसी परिक्रमा पर रोक लगाना और ताजिये की जुलूस को सुरक्षा देना।

जिन लोगों को लगता था कि जातियों में बंटे हिंदुओं की आस्‍था पर हमला करके ही सत्‍ता पाई जा सकती है, आज नतमस्‍तक हैं। जब कुंभ में स्‍नानार्थियों पर आसमान से फूलों की बारिश होती है, तब भी वे चुप रहते हैं। पहले की तरह खुलकर इसका विरोध नहीं करते, क्‍योंकि अब उन्‍हें सनातन के सामूहिक ताकत का अंदाजा लग चुका है। मुल्‍ला मुलायम कहलाने में जिस पार्टी के मुखिया को गर्व की अनुभूति होती थी, उसी पार्टी का नया मुखिया अब मंदिर मंदिर दर्शन कर रहा है।

यह योगी सरकार की ताकत है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू आस्‍था एवं विरासत से खिलवाड़ करने वाले लोग मंदिरों के चक्‍कर काट रहे हैं और गंगा स्‍नान करने को मजबूर हो रहे हैं। राम को काल्‍पनिक बताने वाले लोग भगवान के दरबार में मत्‍था टेक रहे हैं। यह वही धुरंधर लोग हैं, जिनकी धर्मनिरपेक्षता केवल रोजा अफ्तारी और ईद मिलन के आयोजन तक ही सिमटकर रह जाया करती थी। इस धर्मनिरपेक्षता में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और अन्‍य धर्मों की आस्‍था और विरासत के लिये कोई शेष जगह नहीं बचती थी।

मोदी-योगी युग ने सियासत में चले आ रहे धर्मनिरपेक्षता के उन एकतरफा समीकरणों को धराशायी कर दिया है, जिसमें देश के संसाधन पर पहला हक मुसलमानों का है, कहा जाना अनिवार्य था। अन्‍य सभी धर्मों और उनके अनुवाइयों को हाशिये पर ढकेल देने वाले इसी एकतरफा धर्मनिरपेक्ष आडंबर को उत्‍तर प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ ने तहस-नहस कर दिया है। उत्‍तर प्रदेश के किसी गांव घूम आइये कुंभ से लौटा व्‍यक्ति अभिभूत होकर योगी सरकार का गुणगान करता मिल जायेगा। विन्‍ध्‍याचल, काशी विश्‍वनाथ का दर्शन कर आया श्रद्धालु तारीफ करता दिख जायेगा। यह बदलाव है, जो उसे भरोसा दे रहा है कि अब प्रदेश में उसके आस्‍था का नुमाइंदगी करने वाली सरकार है।

योगी एक ऐसे समरस यूपी के निर्माण की तरफ बढ़ चले हैं, जिसमें प्रदेश के संसाधनों पर पहला हक किसी धर्म या जाति की बजाय गरीबों का बनता है। सियासत से इतर एक संन्‍यासी मुंख्‍यमंत्री उस बहुसंख्‍यक आबादी के मनोभाव का मजबूत प्रतिनिधित्‍व कर रहे हैं, जिसकी भावनाओं को सत्‍तर सालों से धर्मनिरपेक्षता के बूटों तले इस कदर रौंद दिया गया था कि इससे बाहर निकलने में उसके सांप्रदायिक हो जाने का खतरा पैदा हो जाता था। यह वामपंथ का रचा गया व्‍यूह था, जिसमें मंदिर जाने वाला सांप्रदायिक और नमाज पढ़ने वाला धर्मनिरपेक्ष हो जाया करता था, अब दरक गया है।

हिंदू बहुल प्रदेश होने के बावजूद सरकार और राजनीतिक दलों का रोजा अफ्तारी कराना अनिवार्य था तथा धर्मनिरपेक्षता की गारंटी माना जाता था, लेकिन नवरात्र पर फलाहार कराने में सांप्रदायिक हो जाने का खतरा मौजूद रहता था। इस अतिरंजित और एकतरफा व्‍यवहार से गैर भाजपाई दलों ने अपने ही राज्‍य में बहुसंख्‍यक आबादी को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रख दिया था। प्रदेश का बहुसंख्‍यक अब सियासत में बराबरी दर्जा महसूस कर पा रहा है, तो केवल इसलिये कि उसे योगी आदित्‍यनाथ के रूप में एक मजबूत नेतृत्‍व मिला है, जो कठोर निर्णय लेने की क्षमता से लैस है।

योगी आदित्‍यनाथ की सरकार से पहले मुख्‍यमंत्री आवास पर कभी भी किसी सरकार ने नवरात्रि का फलाहार आयोजित नहीं किया था, किसी ने सिखों के प्रकाश पर्व पर गुरुवाणी और बैशाखी पर शबद कीर्तन आयोजित करने की जरूरत महसूस नहीं की थी, क्‍योंकि इससे वोट बैंक की राजनीति एवं धर्मनिरपेक्षता में दिक्‍कत पैदा होने का खतरा रहता था। बहुसंख्‍यकों को दोयम दर्जे का समझने वाले आज गंगा नहाने और मंदिर जाने को मजबूर हैं तो केवल इसलिये कि योगी ने वोट बैंक की राजनीति को दरकिनार कर सनातन को सम्‍मान दिलाने की पहल की है।

इस दर्द को उस बहुसंख्‍यक आबादी से पूछा जाना चाहिए, जिसे दुर्गापूजा और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिये शासन-प्रशासन के अनुमति की जरूरत पड़ती थी, और दूसरी ओर हर शुक्रवार चलती सड़क रूक जाती थी, जरूरी काम से निकले लोग घंटों खड़े रहते थे, क्‍योंकि कुछ लोग दरी बिछाकर बिना परमिशन सड़क पर नमाज अदा करते थे। कोई विरोध नहीं कर सकता था, क्‍योंकि सरकारों का चेहरा धर्मनिरपेक्ष होता था। वर्तमान सरकार भले धर्मनिरपेक्ष नहीं रह गई हो, लेकिन अब सभी धर्म के लोगों को परमिशन लेना पड़ता है, सड़क पर दरी बिछाने वालों को भी।

दरअसल, हर सरकार का एक चेहरा होता है, जो समाज और सिसटम को संदेश देता है कि उन्‍हें किस लाइन पर काम करना है। कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा शासनकाल में केवल एक ही तरह का संदेश होता था, जो मुख्‍यमंत्री आवास पर रोजा अफ्तारी से शुरू होकर कब्रिस्‍तान की चहारदीवारी पर जाकर खत्‍म हो जाता था। यह इतना आवश्‍यक हो गया था कि भाजपा सरकार में कल्‍याण सिंह जैसा मुख्‍यमंत्री भी रोजा अफ्तार की दावत आयोजित करने से बच नहीं पाया, और राजनाथ सिंह जैसा मुख्‍यमंत्री ईदगाह में बधाई देने जाने से।

सार्वजनिक मंचों पर जालीदार टोपी पहनना और कंधे पर गमछा रखना ही असली भाईचारा और धर्म निरपेक्षता का प्रतीक बन गया था। हरे रंग को धर्मनिरपेक्ष एवं सनातन भगवा के इस्‍तेमाल को साम्‍प्रदाययिक रंग के तौर पर स्‍थापित कर दिया गया था। इस एकतरफा धर्मनिरपेक्षता का प्रतिकार पहली बार नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंच पर जालीदार टोपी पहनने से इनकार करके किया था, अब उत्‍तर प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ इसी लीक पर हैं। यूपी में पहली बार बहुसंख्‍यक आबादी को एहसास हो रहा है कि यह सरकार सबकी सरकार है।

योगी बहुसंख्‍यक आस्‍था और विरासत से जुड़े स्‍थलों को भी संवार और संभाल रहे हैं, जो दूसरी सरकारों में उपेक्षा का पर्याय बन गई थीं। अखिलेश सरकार चौरासी कोसी परिक्रमा करने वाले संतों को अरेस्‍ट तक करा देती थी, सुविधा बढ़ाने की बात करना तो खैर बेमानी ही है। उपेक्षा के शिकार रहे अयोध्‍या, काशी, चित्रकूट, मथुरा, कुशीनगर, विन्‍ध्‍याचल, नैमिषारण्‍य जैसे आस्‍था केंद्रों को विकसित करने के साथ धर्म और पर्यटन को एक साथ जोड़कर विकसित किया जा रहा है तो यह उसी योजना का हिस्‍सा है। तब केवल हज हाउस शानदार बनते थे, अब सबकुछ शानदार बन रहा है।

बीते सात साल में भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अब सभी दलों को अपनी राजनीति हिंदुत्‍व के धरातल पर करके ही आगे बढ़ने की मजबूरी आ गई है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश के संसाधन पर केवल मुलसमानों का पहला हक बताने का दौर पीछे छूट चुका है। अब बहुसंख्‍यक हिंदुओं की भावनाओं का भी ख्‍याल रखने के लिये गंगा में उतरने के साथ मंदिरों में दीया-बाती और आरती भी करनी पड़ेगी। हिंदुओं के आस्‍था के साथ जुड़े रहने का उतना ही प्रदर्शन भी करना होगा, जितना अतीत में रोजा अफ्तारी और ईद में सेवाइयां खाकर की जाती रही हैं।

70 सालों से दबी इस कुंठा का ही असर है कि पेट्रोल-डीजल के बढ़ते भाव, महंगाई के बावजूद जनता अभी भी भाजपा के साथ मजबूती से खड़ी है, क्‍योंकि वह उस जोन में वापस नहीं लौटना चाहती है, जहां धर्मनिरपेक्षता का पहाड़ा रोजा अफ्तारी पर आकर खत्‍म हो जाता था। जहां हर शु्क्रवार को चलती सड़कों के थम जाने की मजबूरी झेलनी पड़े। बहुसंख्‍यक जनता को अपने धार्मिक आस्‍था को मिलते सम्‍मान से खुश है, और यही कारण है कि अब सपा-बसपा का कोर हिंदू वोटर भी भगवाधारी योगी आदित्‍यनाथ की तरफ झुक रहा है। विश्‍वास ना हो तो एक बार शहर से दूर किसी गांव में घूम आइए।

अनिल कुमार

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