भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृति के रूप में विख्यात है और इसलिए प्रत्येक भारतीय को अपनी संस्कृति व सभ्यता पर गर्व होता है। वैसे, गर्व होने की बात भी है, क्योंकि जब कोरोना ने समग्र विश्व में अपना ताण्डव मचाना आरम्भ किया, तो भारतीय संस्कृति में निहित अभिवादन के स्वरूप (हाथ जोडकर अभिवादन करना), परस्पर दूरी, स्वच्छता, आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति, योग आदि ने सामाजिक संक्रमण को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। विश्व प्रसिद्ध नेतृत्व इन सांस्कृतिक आचार और व्यवहार को आत्मसात् करता दिखाई दिया।

            जब भी हम भारतीय संस्कृति के विषय में चर्चा करते हैं, तो “वसुधैव कुटुम्बकम्” का विचार सामने आता है। आचरण और व्यवहार में शुचिता, मन-वाणी-कर्म में निष्कपट स्वभाव का प्रभाव इस संस्कृति में दृष्टिगत होता है।

इस कोरोना महामारी में एक वर्ग फ्रंटलाइन वर्कर बनकर डटकर लड़ रहा है। जिसमें विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, पुलिस, डॉक्टर आदि सम्मिलित हैं। इनमें से बहुतों ने अपनी जान भी न्यौछावर कर दी है।

किन्तु, कोरोना महामारी में हमारे समाज के एक वर्ग का आचरण हमारी संस्कृति को कलंकित कर रहा है। इनक दुष्कृत्यों को देखकर मन-मस्तिष्क में एक विचार सहज ही उत्पन्न हो रहा है कि हमारे समाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में ह्रास हो रहा है। लोभ और लालच के वशीभूत होकर यह वर्ग संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार कर रहा है। कोरोना आपदा में यह वर्ग गिद्धों को भी परास्त कर रहा है, क्योंकि गिद्ध तो मृत व्यक्ति का ही भक्षण करते हैं, किन्तु इस वर्ग के नराधम जीवित व्यक्तियों के रक्तपान हेतु लालायित हैं। इसलिए इन्हें गिद्ध की संज्ञा न देकर ’रक्तपिपाशु पिशाच’ की संज्ञा से सम्बोधित करना भी कम ही होगा। इनके दुष्कृत्यों को हम कुछ बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-

  1. प्राइवेट अस्पताल इन दिनों कोरोना से ग्रसित रोगियों से मनमानी रकम वसूल रहे हैं। इसे आप एक घटना के माध्यम से आप समझ सकते हैं। दिल्ली के एन.के.एस अस्पताल, गुलाबी बाग में एक रोगी के उपचार हेतु डॉक्टरों ने रोगी को भर्ती करने से पूर्व शर्त के रूप में 10 लाख रुपये एडवांस में वसूले। इसके बाद इस अस्पताल के प्रशासन ने प्रतिदिन के बेड का खर्चा लगभग 2 लाख और दवाइयों का खर्चा 50 हजार रोगी के परिजनों को सौंपा। यह बात तो एक सम्भ्रान्त परिवार की जान सकते हैं, इस दौरान गरीबों की स्थिति का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है।
  2. कोरोना की इस दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से पूरा भारत त्रस्त रहा है। ऑक्सीजन की कमी होने पर यह वर्ग एक छोटे सिलेंडर को 50,000 रुपए तक की कीमत पर बेच रहा है। यहां तक कि ऑक्सीजन की कालाबाजारी और ऊंचे दामों पर बेचकर गरीब की सांसे रोकने का काम यह पिशाच वर्ग कर रहा है। इस संबंध में खान चाचा और दिल्ली सरकार के कुछ मंत्रियों की मिलीभगत भी दिखाई दे रही है। जो ऑक्सीजन के सिलेंडरों को इकट्ठा करके उनकी ब्लैक मार्केटिंग करते पाये गए हैं। (सूचना की पुुष्टि समाचार पत्रों के माध्यम से हुुई)
  3. मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में नकली रेमडिसिविर इंजेक्शन बेचते कुछ डॉक्टरों को पुलिस ने दबोचा है।
  4.  मृतकों के अंतिम संस्कार हेतु निजी वाहनों और कुछ एंबुलेंस चालकों ने मृतक के परिजनों से भारी भरकम राशि वसूल कर उनके घावों पर नमक ही बिखेरा है।
  5. एक समाचार यह भी है कि कोरोना से मृत होने पर मृतक के अंगो का यह वर्ग व्यापार भी करने लगा है, जिसमें मृतक व मृतक के परिजनों की स्वीकृति तक नहीं ली गई है।
  6. इस वर्ग के दुष्कृत्यों में से जघन्यतम दुष्कृत्य उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में सामने आया है। यहां श्मशान घाट पर मृतक के परिजन धोती, चादर, पजामा आदि कपड़े चढ़ा जाते थे। जिसे रात के सन्नाटे में एक गिरोह चुरा कर ले जाता था और उन कपड़ों पर ब्रांडेड स्टिकर लगाकर मार्केट में भेजता थ। इससे कोरोना का संक्रमण खरीदने  वाले के परिवार को होगा, यह जानते हुए भी यह गिरोह ऐसा कार्य कर रहा था। पुलिस ने इस मामले को जाना और उन पर कार्यवाही की।
  7. कोरोनावायरस से ग्रस्त रोगी को अस्पताल पहुंचाने के नाम पर इस वर्ग द्वारा ज्यादा पैसा ऐंठना और ऑक्सीजन या आईसीयू बेड उपलब्ध कराने के नाम पर धोखाधड़ी करना, यह भी एक प्रमुख दुष्कृत्य सामने आया है।

इस प्रकार की अनेक घटनाएं हमारे आसपास घटित हो रही हैं। मानवता की सेवा, आचार व्यवहार में शुद्धता, लोभ पाप का मूल है, झूठ नहीं बोलना चाहिए – ये सब हमारे सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य आज धराशायी हो रहे हैं। हमारी संस्कृति का उद्घोष रहा है :-         मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् ।           
      आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः ॥

लेकिन यह उद्घोष आज ध्वंसित हो रहा है। इन संस्कारों की चिंता आज स्पष्ट प्रतीत हो रही है। जिसे देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के रक्त का प्यासा प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देगा। इसलिए वर्तमान में हमारे संस्कारों को सहेजना और अगली पीढ़ी को संस्कारित करना परम आवश्यक है।

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