21मई 2020 को मैंने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था- “कांग्रेस या कोरोना: कौन ज्यादा खतरनाक ?” आज लगभग एक साल का समय बीत चुका है, लेकिन देशवासियों की कांग्रेस के बारे में जो राय एक साल पहले थी, वही आज भी है. उस समय भी जब देश कोरोना जैसी अभूतपूर्व महामारी की चपेट में था, कांग्रेस नागरिकता कानून के विरोध में देशव्यापी आंदोलन और दंगे करवाकर न सिर्फ अपनी घटिया राजनीति कर रही थी, बल्कि देश भर में कोरोना जैसी महामारी के फैलाने में भी अपना पूरा योगदान दे रही थी. जिस समय देश को सावधानी और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत थी, उस समय कांग्रेस मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए फ़र्ज़ी आंदोलनों के जरिये कोरोना महामारी के प्रसार में लगी हुई थी.कांग्रेस कार्यकर्त्ता पूरे देश में आंदोलनों के नाम पर गुंडागर्दी और आतंक फैला रहे थे और उसे वे नागरिकता कानून का विरोध बता रहे थे. देश की न्यायपालिका कांग्रेस-वामपंथी इकोसिस्टम की इस बेशर्मी को मूकदर्शक बनकर देख रही थी.मोदी सरकार ने अपने बेहतरीन कार्यशैली का उदहारण पेश करते हुए कांग्रेसी-वामपंथी इकोसिस्टम की साज़िश को पूरी तरह फेल कर दिया और पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि संकट के समय सरकार को कैसे काम करना चाहिए.
मोदी सरकार ने जिस तरह से कोरोना जैसी महामारी को मात देकर पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की, उससे कांग्रेसी-वामपंथियों को और भी ज्यादा मिर्ची लग गयी और उन्होंने इस महामारी को और भी अधिक जोर-शोर से फैलाने के लिए एक नए तरीके के फ़र्ज़ी किसान आंदोलन का सहारा लिया- इस आंदोलन में खालिस्तानी लोग थे, कांग्रेस कार्यकर्त्ता थे और वे सभी आढ़तिये भी थे, जो पिछले कई दशकों से किसानों का खून चूसकर अपनी जेबें भरने का काम कर रहे थे. इस आंदोलन में सिर्फ “किसान” ही नहीं थे और कांग्रेसी वामपंथी इकोसिस्टम का कमाल देखिये कि सभी अखबार और मीडिया वाले इसे आज भी “किसान आंदोलन” का नाम दे रहे हैं. इन नकली किसानों ने कोरोना महामारी को फ़ैलाने के कोई कसर नहीं छोड़ी. आंदोलन के नाम पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाकर इस महामारी को खूब फैलाया गया. बची खुची कसर उन राज्यों की सरकारों ने कर दी जहाँ पर कांग्रेसी या वामपंथी सरकारें सत्ता में हैं. यह सभी राज्य सरकारें कोरोना पर ध्यान देने की बजाये अवैध वसूली और आम नागरिकों को डराने धमकाने के काम मे लगी हुई थीं. महाराष्ट्र में हत्याएं करके उन्हें आत्महत्याओं का रूप दिया जा रहा था. जो पत्रकार या मीडिया हाउस कांग्रेस सरकार के इन काले कारनामों का पर्दाफाश कर रहे थे, उन्हें फ़र्ज़ी मामलों में फंसाकर जेल में डाला जा रहा था और वहां उनकी निर्ममता से पिटाई भी की जा रही थी. कांग्रेसी-वामपंथी सरकारों के लिए यह आम बात है क्योंकि 1975 के आपातकाल के समय भी इन लोगों ने यही सब कुछ किया था.
कोरोना महामारी की सबसे पहले वैक्सीन बनाकर जब मोदी सरकार ने दुनिया के सामने एक नयी मिसाल पेश करने की कोशिश की तो कांग्रेसी-वामपंथी इकोसिस्टम के तन-बदन में मनो आग सी लग गयी और यह लोग वैक्सीन के बारे में दुष्प्रचार में जुट गए और देश की जनता को वैक्सीन के बारे में गुमराह करने लगे. जब पी एम मोदी ने खुद उसी वैक्सीन को लगवाया तब कहीं जाकर इन लोगों ने अपना दुष्प्रचार बंद किया और उसके बाद यह इस बात का रोना रोने लगे कि वैक्सीन बिना किसी भेद भाव से सभी उम्र के लोगों को एक साथ लगनी चाहिए. जब सरकार ने इनकी बात मानते हुए यह तय कर दिया कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को एक साथ वैक्सीन लगाई जाएगी तो इन्होने यह रोना शुरू कर दिया कि अब सब को एक साथ वैक्सीन लगाई जाएगी तो नोटबंदी की तरह वैक्सीन लगवाने के लिए लम्बी लम्बी लाइनें लग जाएंगी. कुल मिलकर इन कांग्रेसी-वामपंथियों को जनता की समस्यायों से कोई सरोकार नहीं है और इनका एकमात्र एजेंडा यही है कि हर हाल में मोदी सरकार के हर बेहतरीन काम का विरोध किया जाए चाहे उसके लिए विदेशी और दुश्मन देशों का ही सहारा क्यों न लेना पड़े.
आजकल कोरोना की मौतों के लिए ऑक्सीजन की कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो किसी हद तक सही भी है क्योंकि देश में ऑक्सीजन के उत्पादन पर रोक लगवाने में कांग्रेसी-वामपंथी इकोसिस्टम अपनी अहम भूमिका पहले ही अदा कर चुका है. तमिलनाडु में वेदान्ता ग्रुप का बहुत बड़ा प्लांट था जिसमे ऑक्सीजन का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था. कांग्रेसी-वामपंथी इकोसिस्टम ने अपने फ़र्ज़ी NGO के जरिये कोर्ट में जाकर इस प्लांट को बंद करवा दिया और जब संकट की घड़ी में सुप्रीम कोर्ट को वेदान्ता ग्रुप की याद आ रही है और वह उस प्लांट को शुरू करवाना चाहता है ताकि ऑक्सीजन का उत्पादन बड़े पैमाने पर किए जा सके तो यही कांग्रेस-वामपंथी इकोसिस्टम आज भी उस प्लांट को दुबारा शुरू किये जाने का विरोध कर रहा है. देश में जितनी भी ऑक्सीजन है उसकी सप्लाई में भी देश के अलग अलग बॉर्डरों पर नकली किसानों के भेष में बैठे कांग्रेसी-वामपंथी कार्यकर्त्ता और खालिस्तानी आढ़तिये, बाधा डाल रहे हैं. अगर यह कहा जाए कि देश में कोरोना से होने वाली हर मौत के लिए कांग्रेसी-वामपंथी इकोसिस्टम ही जिम्मेदार है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
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