कर्म क्षेत्र के अग्नि पथ पर चलते हुए निष्ठा, लग्न, कठिन परिश्रम व् मन मस्तिष्क से दायित्वों का निर्वाह करते हुए जब समय व् भाग्य साथ नहीं देते हैं तो विफलता प्राप्त होती है तथा वो विद्वान व् विदुषी जिनके मुखारविंद में स्वर भी नहीं आते थे समय. भाग्य व् परिस्थिति के विपरीत होने पर उनमें इतना साहस आ जाता है कि उनके स्वर भी हमारे विरुद्ध हो जाते हैं |
*** डॉ पांचाल
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