प्रस्तावना : भारत की स्वतंत्रता का यह अमृत महोत्सव वर्ष है । ज्ञात- अज्ञात अनेक क्रांतिकारियों की क्रांति के कारण जुल्मी अंग्रेजों से भारत मुक्त हुआ । भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने ‘वन्दे मातरम ‘का जयघोष करते हुए अपने प्राण अर्पण किए। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु योगदान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति जितनी कृतज्ञता व्यक्त करें वह न्यून ही है । आज भारत की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है; परन्तु इस समय व्यवस्था का अवलोकन कर उसमें सुधार करने हेतु चिंतन-मंथन होना अपेक्षित है । व्यवस्था की अपप्रवृत्ति का निर्मूलन कर एक आदर्श राज्य का अर्थात सुराज्य निर्मिति का संकल्प स्वतंत्रता के अमृतमहोत्सव निमित्त हम करें ।
‘स्व’तंत्र ? : 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ; परन्तु 75 वर्ष होने पर भी भारत ‘स्वतंत्रता लागू करने में अपयशी सिद्ध हुआ है ।
शिक्षणव्यवस्था : भारत में जब गुरुकुल व्यवस्था थी, तो भारत शिक्षण क्षेत्र में अव्वल स्थान पर था । तक्षशिला, नालन्दा आदि विद्यालयों में देश-विदेश से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे । भारत के वैभव का कारण गुरुकुल पद्धति में है, यह जानकर मैकाले ने गुरुकुल परम्परा उध्वस्त कर भारतीयों को ‘क्लर्क’ बनाने वाली, उनमें देश-धर्म के प्रति हीन भावना उत्पन्न करने वाली शिक्षण पद्धति लागू की । दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति उपरान्त भी मैकाले की शिक्षण पद्वति आज तक लागू है । शिक्षण पद्धति में थोडा बदलाव हुआ है; परन्तु मूल ढांचा वैसा ही है ।
राज्यव्यवस्था : वर्तमान लोकतंत्र में राजनेताओं के चुनाव की पद्धति भी भारतीय नहीं । पहले भारत में ‘सिलेक्टेड’ याने पात्र व्यक्ति के हाथ सत्ता होती थी परन्तु अब ‘इलेक्टेड’ अर्थात बहुमत प्राप्त व्यक्ति सत्ता में आते हैं । पूर्व काल में राजगुरु, धर्माचार्य व विद्वान सुनिश्चित करते थे कि सत्ता किसे सौंपी जाए ? धृतराष्ट्र जेष्ठ थे; परन्तु जन्मान्ध थे तो उन्हें राज्य नहीं सौंपा गया । मगध नरेश राजा नन्द जनता पर अत्याचार करने लगा तो चाणक्य ने विरोध कर सम्राट चन्द्रगुप्त को राजगद्दी पर बैठाया । इस प्रकार उन्मत्त राजा को निकाल बाहर करने की व्यवस्था भी भारतीय परम्परा में थी । आज भ्रष्ट नेताओं का 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण हुए बिना नागरिक उसे पदच्युत नहीं कर सकते । ‘राइट टू रिकॉल’ का अधिकार जनता को नहीं । भारत की संसद में जनहित के विधान गठन करने वाले राजनेताओं में 34.5 % लोग अपराधी पार्श्वभूमि के हैं ।
न्यायव्यवस्था : आज भी भारत में अंग्रेजी शासनकाल के विधान लागू हैं । वन्दे मातरम अथवा जन गण मन राष्ट्रगीत के समय खडे रहने का विरोध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होने की घटनाएं भी हुई हैं । देश विरोधी शक्तियों को त्वरित शिक्षा करने वाले अथवा उन में भय व्याप्त करने वाले विधान ‘इंडियन पीनल कोड1860 में नहीं हैं । देश में 2022 तक विविध न्यायालयों में 4.7अभियोग प्रलम्बित थे तथा 30 वर्ष से अधिक प्रलम्बित अभियोगों की संख्या 1 लाख 82 सहस्त्र थी । विलम्ब से मिलता न्याय, अन्याय ही है, ऐसा कहा जाता है । इसके विपरीत प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में त्वरित निष्पक्ष निर्णय होते थे ।
व्यापार-व्यवस्था : कहते थे कि भारत से सोने का धुंआ निकलता था । आज भारत का घरेलू उत्पादन अर्थात ‘जीडीपी’ 8% के निकट है । इसकी वृद्धि हेतु बहुत कष्ट लेने होंगे । इसके विपरीत 15वी शती में भारत की ‘जीडीपी’ 24% थी । ऐसा ब्रिटिश अर्थशास्त्री अंगस मेडिसन ने अपनी पुस्तक में लिखा है । इससे ज्ञात होता है कि वैश्विक व्यापार में भारत किस स्थान पर था, भारत वैभव के शिखर पर था ।
शिक्षण व्यवस्था, राज्य व्यवस्था, विधान, न्याय व्यवस्था हमारी मूल परम्परानुसार न चलें तो क्या भारत खरे अर्थ में स्वतंत्र है ? डॉ बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी श्रेष्ठ हो उसे चलाने वाले व्यक्ति अक्षम हों तो, लोकतंत्र अपयशी होगा । अतः सत्ताधारी राजनेता निस्वार्थ, प्रजाहितदक्ष व कर्तव्यनिष्ठ होने चाहिए ।
वर्तमान स्थिति : आज हमें प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस सुरक्षा व्यवस्था में मनाना पडता है । प्रत्येक राष्ट्रीय त्योहार पर आतंकियों के कारण ‘अलर्ट’ घोषित किया जाता है ।
आज सर्वत्र असुरक्षा का वातावरण है । नक्सलग्रस्त भागों में नागरिकों का जीवन असुरक्षित है । धारा 370 हटने पर भी कश्मीर में अशान्ति है । कश्मीरी हिन्दुओं को चुन-चुन कर मारा जा रहा है । तमिलनाडु में द्रविड़ स्थान की मांग उठ रही है तो ईशान्य राज्यों को भारत से अलग करने के षड्यंत्र चल रहे हैं । सीमावर्ती भागों से घूसखोर भारत में प्रवेश कर रहे हैं । लाखों बांग्लादेशी रोहिंग्या मुसलमान भारत के विभिन्न भागों में बसकर देश विरोधी कृत्यों में सहभागी हो रहे हैं । देश के कुछ भागों में खालिस्तानी शक्तियां आतंकी ‘स्लीपर सेल्स’ को बल प्रदान कर रही हैं ।
आधुनिकतावादियों की अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर देश हित के विधानों का विरोध करना चलन में है । ‘सी.ए.ए.’, ‘एन.आर.सी’.,कॄषि विधान इनका मार्ग अवरोध कर विरोध किया गया । परिणाम यह हुआ कि यह सुधार पारित होने पर भी लागू नहीं की गई। भारत में मानवाधिकार हनन का कोलाहल किया जाता है उसमें शत्रु राष्ट्र का हाथ होता है । भारत के प्रति आस्था न रखने वाले लोग ही ऐसे हिंसक आंदोलन करते हैं । बस, वाहन, दुकानें जलाकर सार्वजनिक सम्पत्ति की हानि करते हैं ।
आज देश में गुनहगार प्रवृत्ति व भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है । ‘ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल के अनुसार 180 देशों की सूची में भारत 85 क्रमांक पर है । आज कुछ लोग देश के विकास हेतु प्रयत्नशील हैं, तब भी देश सेवा की भावना देशव्यापी होने पर ही अच्छे दिन आएंगे ।
कारणमीमांसा : 75 वर्ष पूर्ण होने पर भी सुराज्य निर्माण नहीं हो सका, इसका मुख्य कारण है राष्ट्रीय चरित्र का अभाव । आज ना अभ्यास क्रम से देश प्रेम निर्माण होता है न ही चलचित्र मलिकाओं से । देशभक्ति का सर्वत्र अभाव दिखाई देता है । इसका कारण हैं आज तक के राजनेता ! कहते हैं, ‘राजा कालस्य कारणम’ । स्वतंत्रता के उपरान्त देश प्रेमी नेतृत्व भारत को नहीं मिला,चरित्रवान नागरिक बनाने का प्रयत्न भी नहीं किया गया । इसके लिए व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन नहीं किए गए । ‘धर्म’ राष्ट्र का प्राण होता है; परन्तु स्वतंत्रता के बाद निधर्मी व्यवस्था स्वीकार कर भारत ने स्वयं के पैरों पर कुल्हाडी मार ली । धर्म का अधिष्ठान न होने से आज व्यवस्था में अनेक अपप्रवृत्तियों का समावेश हुआ है ।
उपाययोजना : व्यवस्था में व्याप्त अपप्रवृति हटाकर एक आदर्श सुराज्य स्थापित करना हो व महासत्ता होने का स्वप्न साकार करना हो तो प्रत्येक देशभक्त नागरिक को अथक प्रयत्न करने होंगे ।
- देश सेवा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सीमा पर जाकर युद्ध करने की आवश्यकता नहीं । अपने क्षेत्र में अपना कर्तव्य निभाना भी देश सेवा ही है ।
- आज देश के लिए त्याग करने की मानसिकता निर्माण करने की आवश्यकता है । ‘राष्ट्र सर्वोपरी’ यह भावना निर्माण हो तो, ‘ब्रेन ड्रेन’ (बुद्धिमान लोगों का विदेश में नौकरी हेतु गमन) थमेगा ।
- हम अपने स्तर पर भी देश हित के आंदोलन को बल दे सकते हैं । स्वदेशी का उपयोग, चीनी व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, राष्ट्रीय व धार्मिक स्थलों की स्वच्छता व रक्षण जैसी छोटी छोटी कृतियां भी राष्ट्रीय स्तर पर उच्च परिणाम साध्य करेंगी ।
- जानने का अधिकार यह प्रभावी शस्त्र हमें प्राप्त हुआ है । उसका उपयोग कर भ्रष्टाचार, अनैतिक कार्यों का विरोध करना भी देश सेवा ही है ।
- देश कार्य हेतु अपने दैनिक कार्यों से 1 घण्टा समय निकालकर उसे देश-धर्मकार्य हेतु दें !
हिन्दू राष्ट्र : रामराज्य में आर्थिक योजना हेतु उच्च स्तर का राष्ट्रीय चरित्र निर्माण किया गया था । उस समय लोग निर्लोभी, सत्यवादी, अलंपट, आस्तिक व कृतिशील थे । क्रिया शून्य नहीं थे । रामराज्य समान सुराज्य निर्माण करना हो तो, भारत के प्राण हिन्दू धर्म को राज्याश्रय देना होगा । भारत को संवैधानिक दृष्टि से हिन्दुराष्ट्र घोषित करना होगा । भारत को हिन्दुराष्ट्र घोषित करने से देश पिछड जाएगा ऐसा कुछ लोग कहते हैं जो तथ्य हीन है । आज विकसित देशों में उनका धर्म है । अमेरिका, इंग्लैंड में ईसाई धर्म को राजकीय संरक्षण है । हिन्दुराष्ट्र पर टीका करने वाले ईसाई देशों पर मौन साध लेते हैं । इससे ज्ञात होता है कि यह हिन्दू द्वेष है । धर्म यानि पंथ नहीं, सनातन हिन्दू धर्म ही एकमेव धर्म है । धर्म यानि पूजा पाठ, पोथी वाचन नहीं । उत्तम समाज व्यवस्था, प्रत्येक प्राणी मात्र की ऐहिक, पारलौकिक उन्नति जिससे साध्य हो ऐसी व्याख्या आदि शंकराचार्य ने की है । आज धर्म का लोप होने के कारण सर्वत्र अधर्म व्याप्त हो चुका है । आतंकवाद, नक्सलवाद, जिहाद, सांस्कृतिक हनन आदि सङ्कटों से भारत घिरा है । इनसे भारत को बाहर निकालने की आवश्यकता है । हिन्दवी स्वराज्यानुसार भारत में हिन्दुराष्ट्र स्थापित हो तो, ‘बलशाली भारत’ का ध्येय साध्य होगा ।
संकलक : श्री चैतन्य राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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