सेक्युलरवाद बतानेवाले भारत में इस्लामी मत पर आधारित हलाल सर्टिफिकेट की अनिवार्यता के विषय में बडा विवाद चालू हुआ था । भारत के अर्थव्यवस्था पर यह हलाल सर्टिफिकेट किस प्रकार से संकट बन सकता है, इस पर अनेक लेख लिखे गए, सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलाई गयी तथा ‘हिंदु विश्व’ मैगजीन में यह विषय विस्तारपूर्वक प्रस्तुत भी किया जा चुका है । इस सब मंथन का परिणाम 4 जनवरी 2021 को देखने के लिए मिला, और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले ‘कृषि एवं प्रक्रियायुक्त खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण’ (APEDA – अपेडा) ने मांस निर्यातकों के लिए हलाल सर्टिफिकेट को लेना जो अनिवार्य किया था, उसे हटाकर जिसे जिस देश में निर्यात करना है, उस देश के कानून के आधारपर सर्टिफिकेट लेने के विषय में संशोधन किया है । हिंदु समाज के लिए यह बड़ी विजय है ।

किस मुद्दे पर विवाद था ?

            स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलानेवाले भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले कृषि एवं प्रक्रियायुक्त खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने एक नियमावली बनाई थी, जिसमें लाल मांस उत्पादक एवं निर्यातक को हलाल प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य किया गया था । केवल इतना ही नहीं, अपितु हलाल सर्टिफिकेट देनेवाली इस्लामी संस्था के एक मुस्लिम निरीक्षक को वहां पर नियुक्त करना भी अनिवार्य किया गया था । उस निरीक्षक की देखरेख में हलाल पद्धति से ही पशु की हत्या करना अनिवार्य किया गया था  । संविधान में विद्यमान ‘सेक्युलर’ शब्द का यह सीधा-सीधा अनादर ही था । भारत से निर्यात होनेवाले मांस में से 46 प्रतिशत (6  लाख टन) मांस का निर्यात गैरइस्लामी विएतनाम देश में होता है । तो क्या ‘वास्तव में उसके लिए हलाल प्रमाणपत्र की आवश्यकता है ?’, यह प्रश्न उपस्थित होता है; परंतु पिछले सरकारों की इस इस्लामवादी नीति के कारण वार्षिक 23 सहस्र 646 करोड रुपए के मांस का यह व्यापार हलाल अर्थव्यवस्था को बल दे रहा था । अब यह बंद हो जाएगा ।

खाटीक समाज के निर्धन हिन्दू बंधुओ के व्यवसाय की हानि !

            हिन्दू धर्म की अलग-अलग जातियों को उनकी कुशलता के आधार पर जीविका चलाने के साधन उपलब्ध थे और उसके अनुसार हिन्दू खाटीक समाज मांस का व्यापार कर अपनी जीविका चलाता था । लेकिन सरकारी प्रतिष्ठानों सहित निजी व्यावसायियों द्वारा केवल इस्लामी पद्धतिवाले हलाल मांस की मांग किए जाने तथा हिन्दू खाटीक समाज के द्वारा उत्पादित मांस को हलाल न मानने से इस समुदाय का व्यवसाय धीरे-धीरे मुसलमानों के नियंत्रण में जा रहा है । हलाल मांस के संदर्भ में सरकार की अयोग्य नीतियों के कारण वार्षिक 23 सहस्र 646 करोड रुपए के मांस का निर्यात, साथ ही देश का लगभग 40 सहस्र करोड से भी अधिक रुपए के मांस का व्यापार अल्पसंख्यक मुसलमानों के हाथ में था । इससे पहले ही निर्धन और पिछडा हिन्दू खाटीक समाज आर्थिक रूप से नष्ट होने की कगार पर आ गया था । लेकीन सरकार के इस निर्णय के कारण अब निर्यात के क्षेत्र में उन्हे निश्चित लाभ हो सकता है।

अल्पसंख्यकों की तानाशाही अब बंद हो सकती है!

            नसीम निकोलस तालेब नामक एक सुप्रसिद्ध लेखक ने इसे ‘अल्पसंख्यकों की तानाशाही’ कहा है । अल्पसंख्यक मुसलमान ‘हलाल’ मांस के लिए दबाव बनाता है । उसका बहुसंख्यक हिन्दू विरोध नहीं करते; इसलिए धीरे-धीरे उन्हें भी हलाल ही खाना पडता है । यह इस्लामीकरण का ही एक प्रकार है ।

सेकुलरवादी सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं पर हलाल मांस खाने की सक्ती पर निर्णय होना आवश्यक !

            ‘अपेडा’द्वारा किए गये बदलाव पर भी भारत का सेक्युलरवादी जमात चुप नही बैठेगी । संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता के संदर्भ में तो वह सदैव आक्रोश करते रहते हैं; परंतु सेक्युलर भारत के भारतीय पर्यटन विकास मंडल (ITDC), एयर इंडिया, साथ ही रेलवे का आय.आर.सी.टी.सी. यह कैटरिंग, ये सभी संस्थाएं केवल हलाल मांस की आपूर्ति करनेवालों को ही ठेके देती हैं । भारतीय लोकतंत्र का सर्वाेच्च स्थान माने जानेवाले संसद की भोजन व्यवस्था भी रेलवे कैटरिंग के पास है । वहां पर भी हलाल मांस ही परोसा जाने के कारण बहुसंख्यक हिन्दुओं को स्वयं के धार्मिक आधार पर मांस खाने की स्वतंत्रता नहीं है ।  इस पर कटाक्ष करने की आज आवश्यकता है ।

हिंदु और सिखों की धर्ममान्यताओं का भी आदर हो ।

             हिन्दू और सिख धर्मियों के लिए हलाल मांस निषिद्ध माना गया है । हिन्दू एवं सिख में ‘झटका’ अर्थात तलवार के एक ही घाव में गर्दन को अलग कर निकाला जानेवाला मांस स्वीकार्य है । सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंहजी ने खालसा पंथ के नियमों में झटका मांस को वैध प्रमाणित किया है । उन्होंने ‘हलाल अथवा कुथा’ मांस वर्ज्य करने के लिए कहा है । इसलिए सरकार ने अब अन्य सरकारी संस्थाओं के द्वारा हलाल के लिए की जानेवाली अनिवार्यता को हटाने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है । 

श्री. रमेश शिंदे, राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता, हिन्‍दू जनजागृति समिति.  

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