उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास आघाड़ी सरकार ने सब कुछ रामभरोसे छोड़ दिया है। अब स्थिति यह हो गई कि उन्हें अपने ग्रामीण और आदिवासी स्वास्थ्य की देखरेख के लिए अपने सभी अस्पताल रेड क्रॉस समेत कई ईसाई एवं गैर सरकारी संगठनों को सौंप दिए है। ये न केवल वर्तमान सरकार की अकर्मण्यता को जगजाहिर करता है, अपितु भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक भी सिद्ध होने वाला है।

ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन से पूर्व ऐसे कई राज्य थे, जैसे झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, मिजोरम इत्यादि, जहां ईसाई धर्म से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। लेकिन आज इन राज्यों से धड़ल्ले से ईसाई सामने आ रहे हैं, क्योंकि ईसाई मिशनरी आदिवासियों, गरीबों और पिछड़े वर्ग के लोगों पर प्रमुख तौर पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात भी इनके अवैध गतिविधियों पर कोई रोक नहीं लगी, क्योंकि धर्मांतरण को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर काँग्रेस ने खूब बढ़ावा दिया है, और वही आज महाराष्ट्र में हो रहा है।

महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी ने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्थित अस्पतालों को रेड क्रॉस संस्था को सौंप दिया है। अब प्रश्न यह उठता है कि यदि आधे से अधिक महाराष्ट्र की आबादी गांवों में रहती है, तो फिर रेड क्रॉस सोसाइटी को विशेष तौर पर केवल आदिवासी बहुल क्षेत्रों में क्यों भेजा जा रहा है? परंतु स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को केवल इस बात से मतलब है कि कैसे जल्द से जल्द रेड क्रॉस को ये अस्पताल सौंपे जाएं, न कि इन बातों का जवाब से कि आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि महाराष्ट्र सरकार ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र के अस्पतालों को ही नहीं संभाल पा रही है?

दरअसल, मूल समस्या है आदिवासियों का अवैध धर्मांतरण, जिसे महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस बेतुके निर्णय से बढ़ावा दे रही है। केन्द्र सरकार जहां एक ओर प्रयास कर रही है कि एनजीओ द्वारा सेवा के नाम पर अवैध धर्मांतरण या किसी भी आपराधिक गतिविधि को बढ़ावा न मिले, तो वहीं महाराष्ट्र सरकार इसके ठीक उलट न केवल इन एनजीओ को बढ़ावा दे रही है, बल्कि उन्हें सक्रिय तौर पर सहायता भी दे रही है।

दो वर्ष पहले गृह मंत्रालय ने एक वेबसाइट लॉन्च की थी, जिसका प्रमुख उद्देश्य था FCRA के अंतर्गत सरकार एनजीओ द्वारा उपयोग में लाए जा रहे विदेशी धन के इस्तेमाल का निरीक्षण करना और उस अनुसार अपनी नीतियाँ तय करना। पिछले वर्ष मोदी सरकार ने करीब 1807 ऐसे एनजीओ पर प्रतिबंध लगवाया जिनपर FCRA के नीतियों के उल्लंघन का आरोप लगा था।

इस कार्रवाई का नेतृत्व स्वयं पीएम मोदी कर रहे हैं, जिन्होंने एक समय उच्चाधिकारियों को दिए सम्बोधन में कहा था, “यदि ऐसे संगठन में निवेश सामाजिक उत्थान और राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से किया जा रहा है, तो कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन यदि विदेश से आने वाला धन का प्रयोग, देश में विदेशी ताकतों का प्रभाव बढ़ाने और लोकतान्त्रिक संस्थाओं को नष्ट करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, तो ये अस्वीकार्य है और हमें इस चुनौती का हर हाल में सामना करना पड़ेगा।”

इस वर्ष सितंबर माह में अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय ने 13 एनजीओ का लाइसेंस रद्द किया, जो आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर रहीं थीं । नियमानुसार उन्हें पहले कारण बताओ नोटिस दिया गया, परंतु जब इन एनजीओ ने उनकी एक न सुनी, तो गृह मंत्रालय ने उन एनजीओ के लाइसेंस पूर्णतया रद्द कर दिया । लेकिन जब तक राजेश टोपे जैसे स्वार्थी राजनेता एनजीओ का पालन पोषण करते रहेंगे, मोदी सरकार की नीतियों का वास्तव में कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा।

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