बात सिर्फ देखने और संस्कार मैं लौटने तक की ही नहीं है, ये ३० साल पहले जिन्होंने देखा था उसके बाद आज की हालत और हालात देखो। ये जो स्थिति उत्पन्न हुई है वो देखो, जो प्रदुषण था वो सोचो, जो अतिक्रमण किया वो सोचो, जो आज की मनोदशा है वो सोचो और अभी भी नहीं समझे तो ये कोरोना के माध्यम से ये प्रकिति की चेतावनी है – अपने आप को बदलो अपने तौर तरीके बदलो, नहीं तो खुद बदल दिए जाओगे।
पिछली बार जिन्होंने रामायण और महाभारत देखी थी उनमे से अधिकतर मांसाहारी और मदिरा पान करने वाले हो गए। प्रकृति से जितने की जरूरत थी उससे अधिक दोहन करने वाले हो गए चाहे वह जल हो, थल हो या कुछ और हो। पाया क्या अधिक क्रोध, अहंकार, तृष्णा और इन सबके फलस्वरूप दुःख एवं हताशा।
अब इसको केवल देखने तक ही सीमित न रखो इससे सीखो और उसका अनुसरण करने का समय है। जैसे महाभारत के एपिसोड ५३ मैं ही ५ मिनट के बाद युधिस्टर – नकुल और सहदेव को प्रकृति से ज्यादा न लेने की सलाह देते हैं। ऐसे न जाने कितनी शिक्षाएं हमें इससे मिलती हैं ये हमको सोचने और विचारने की जरूरत है।
ये करोना वायरस हमको सबको बदलने का संकेत दे रहा है, वापस अपने संस्कारो मैं लौट जाओ। अभी केवल हाथ धोना और नमस्कार करना ही शुरू किया है, योगा करना, अंतःकरण से विचार करना एकांत मैं या अध्यात्म कह लो इसे, जूते चप्पल बहार उतरना और जो हमारे बड़े ३०-४० साल पहले करते थे, उदार और सरल रहना, परोपकार मैं लीन रहना, हिंदुत्व का अनुसरण करना, इत्यादि। बाकि हमारे ग्रन्थ जो की अधिकतर scientific journal हैं उनको पढ़ें और समझें। वैसे ये काम हिंदुस्तान से ज्यादा विदेशों मैं हो रहा है, अध्यन्न का, परन्तु हमारे पास तो अध्यन के साथ अनुभव भी है।
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