21 अक्तूबर 1943 के दिन सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस “आरज़ी हुकुमत-ए-आज़ाद हिन्द” की स्थापना की घोषणा करते हैं। स्वाभाविक रुप से नेताजी स्वतंत्र भारत की इस अन्तरिम सरकार (Provisional Government of Free India) के प्रधानमंत्री, युद्ध एवं विदेशी मामलों के मंत्री तथा सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने जाते हैं।

सरकार के प्रधान के रुप में नेताजी शपथ लेते हैं-

ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।”

आजाद हिन्द सरकार केवल नाम नहीं था बल्कि नेताजी के नेतृत्व में इस सरकार ने हर क्षेत्र में नई योजना बनाई थी। इस सरकार का अपना ध्वज था, अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपनी गुप्तचर सेवा थी। नेताजी ने कम संसाधन में ऐसे शासक के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया जिसका ‘सूरज नहीं ढलता था’।

यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि 21 अक्तूबर जैसा महत्वपूर्ण दिन हमारे इतिहास से लगभग मिटा दिया गया है … किसी पाठ्यक्रम मेँ इस दिन का कोई उल्लेख नहीं मिलता … कारण केवल एक … आज़ादी अहिंसा के बल पर मिली थी … बस यही माला जपते रहना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य जो निर्धारित कर दिया गया था तब के हमारे नेताओं द्वारा | आज के दिन के ऐतिहासिक महत्व को कभी भी आम जनता तक नहीं पहुँचने दिया गया और इस प्रकार एक सोची समझी रणनीति के तहत भारत के वास्तविक पहले प्रधानमंत्री को भी इस दिन की तरह इतिहास में दफ़न कर दिया गया।

आज़ाद हिन्द ज़िंदाबाद … नेताजी ज़िंदाबाद … जय हिन्द !!!

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