समाज का कल्याण हो तथा प्रत्येक व्यक्ति की साधना होकर समाज सात्विक बने और पुनः भारत विश्वगुरु के रूप में जाना जाए इस उद्देश्य से कार्यरत सनातन संस्था का ये लेख प्रस्तुत कर रहे हैं, इस लेख के अंतर्गत हम देखेंगे कि ब्राह्ममुहूर्त में उठने के क्या लाभ होते हैं तथा समाज का प्रत्येक व्यक्ति ब्राह्ममुहूर्त में उठकर किस प्रकार शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ उठा सकता है ।

सर्वप्रथम हम सभी को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ‘ब्रह्ममुहूर्त’ ऐसा शब्द न होकर ‘ब्राह्ममुहूर्त’ योग्य शब्द है । ब्राह्ममुहूर्त यह सवेरे 3.45 से 5.30 तक ऐसे लगभग दो घंटों का होता है । इसे रात्रि का ‘चौथा प्रहर’ अथवा ‘उत्तररात्रि’ भी कहते हैं । इस काल में अनेक बातें ऐसी होती रहती हैं कि जो दिनभर के काम के लिए लगने वाली ऊर्जा प्रदान करती हैं । इस मुहूर्त पर उठने से हमें एक ही समय पर 9 लाभ मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं :

अधिक प्रमाण में प्राणवायु प्राप्त होना : इस काल में ‘ओजोन’ नामक वायु पृथ्वी के वातावरण की सबसे निचली सतह में अधिक प्रमाण में आई होती है । ओजोन में मानव को श्वसन के लिए आवश्यक प्राणवायु (ऑक्सीजन) अधिक प्रमाण में होती है । इसलिए इस काल में उठकर दाईं नासिका से गहरी दीर्घ सांसें लेने पर रक्त शुद्धि होती है । रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढने से हिमोग्लोबिन में सुधार होता है । इसलिए 90 प्रतिशत रोगों से मुक्ति मिलती है ।

तारे होने तक उठना चाहिए : इस काल में मंद प्रकाश होता है । आंखें खोलने पर एकदम तेज प्रकाश आंखों पर पडने से कुछ समय तक हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता । ऐसा बार-बार होते रहने से आंखों में विकार आना आरंभ हो जाता है और दृष्टि क्षीण हो सकती है । वैसा न हो, इसके लिए तारे आकाश में दिख रहे हों, उस समय तक उठ जाना चाहिए ।

अपानवायु का कार्य सुलभता से होना : इस काल में पंचतत्त्वों में से वायु तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होता है और मानवीय शरीर में अपानवायु कार्यरत होती है । अपानवायु मलनिःसारण एवं शरीरशुद्धि का कार्य करती है । इस वायु के कार्यरत रहते हुए मल बाहर निकालने का कार्य सहजता से हो सकता है । जोर लगाने की आवश्यकता पडने से धीरे-धीरे मूलव्याध होने की संभावना होती है । मूलव्याध न हो और उत्तम शरीरशुद्धि हो, इस हेतु इसी काल में मलनिःसारण करना चाहिए, इसके साथ ही इस समय बडी अंतडियों में ऊर्जा कार्यरत होती है ।

ब्राह्ममुहूर्त पर शरीर से बाहर नवद्वारों द्वारा गंदगी बाहर निकाल देने का महत्त्व : अपने शरीर में दिनभर एकत्र हुई गंदगी 9 स्थानों से बाहर निकलती है । 2 आंखें, 2 नासिकाएं, 2 कान, 1 मुंह, 1 मूत्रद्वार और 1 गुदद्वार, ऐसे इन 9 स्थानों को नवद्वार कहते हैं । रात को इन 9 स्थानों पर गंदगी जमा हो जाती है । इस गंदगी में अनेक जीवाणु और विषाणु होते हैं, जो रोग उत्पन्न कर सकते हैं । इन जीवाणु और विषाणु को यदि सूर्यप्रकाश मिल जाए तो वे अधिक प्रमाण में बढ सकते हैं और हम बीमार पड सकते हैं । ऐसा न हो, इसलिए ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर यह गंदगी शरीर से बाहर निकाल देनी चाहिए ।
ब्राह्ममुहूर्त पर स्नान करने का महत्त्व : सूर्योदय से पहले ब्राह्ममुहूर्त पर स्नान करने से त्वचा के रंध्र खुल जाते हैं । इससे शुद्ध हवा अंदर जाती है और सर्व अवयवों को शुद्ध प्राणवायु मिलने से संपूर्ण शरीर दिनभर के काम के लिए तरोताजा हो जाता है । दिनभर काम करने पर भी हम एकदम उत्साही रहते हैं ।

मस्तिष्क में स्मरणशक्ति सहित अन्य शक्ति केंद्र जागृत होना : इस काल में जप करने से मस्तिष्क की स्मरण शक्ति के साथ अन्य शक्ति केंद्र भी जागृत होते हैं । इस अवसर पर विद्याध्ययन करने से अन्य समय की तुलना में अधिक काल तक स्मरण में रहता है ।

ब्राह्ममुहूर्त पर शरीरशुद्धि करने की आवश्यकता : सूर्योदय के समय अनेक प्रकार की आरोग्यदायी तरंगें वातावरण में सूर्य किरणों द्वारा आती हैं । अपनी त्वचा के रंध्र खुले होंगे, तो वे अवशोषित हो जाती हैं । उसके लिए ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर शरीरशुद्धि करनी चाहिए ।

साधना करने से सप्तचक्र जागृत होना : इस काल में मंत्रजप साधना करने से सप्त चक्र जागृत होते हैं; इसलिए कि इस मुहूर्त पर वातावरण शुद्ध होने से अधिक प्रमाण में कंपन निर्माण होकर इससे कुंडलिनी की जागृति होती है ।

पुण्यात्मा एवं सिद्धात्माओं से मार्गदर्शन मिलना: इस मुहूर्त पर अनेक पुण्यात्मा एवं सिद्धात्मा परलोक से पृथ्वी तल पर आए होते हैं । इन पुण्यात्माओं और सिद्धात्माओं से हम साधना द्वारा मिलकर उत्तम मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं ।

ऐसे 9 लाभ हम ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर स्नानादि कर्म करने से प्राप्त कर सकते हैं ।

चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

 

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