2020 दो बातों के लिए अवश्य याद रखा जाएगा। इस वर्ष चीन में जन्में कोरोना के कारण दुनिया महामारी के संकट से जूझ रही है और इस महामारी का लाभ उठाकर चीन, सही या गलत, किसी भी तरीके से अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। महामारी की शुरुआत में चीन ने मास्क डिप्लोमेसी के जरिये दुनिया को शांत रखने की कोशिश की। अधिकांश देश चीन की चालबाजियों को लेकर असंतुष्ट थे, किंतु कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक PPE किट, मास्क, वेंटिलेटर जैसी मूलभूत वस्तुओं की आपूर्ति पर नियंत्रण से चीन ने दुनिया में अपने विरुद्ध विरोध बढ़ने नहीं दिया। चीन को उम्मीद थी कि दुनिया को वैक्सीन आपूर्ति भी वही करेगा और मास्क डिप्लोमेसी के बाद वैक्सीन डिप्लोमेसी से अपना प्रभाव और बढ़ाएगा। किंतु भारत और रूस की वैक्सीन ने चीन के मंसूबो को नाकाम बना दिया है। एक ओर जहाँ चीन अपनी वैक्सीन की विश्वसनीयता को लेकर संघर्ष कर रहा है, भारत और रूस की वैक्सीन की मांग तेजी से बढ़ रही है।

भारत की वैक्सीन की सफलता इन दिनों मीडिया में चर्चा का मुख्य विषय है। भारत ने एशिया, अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका और विभिन्न देशों को वैक्सीन की खेप पहुंचाई है। भारत ने पड़ोसी देशों को बड़ी संख्या में मुफ्त वैक्सीन भी दी है।

अब स्पूतनिक V को Lancet medical journal ने A+ सर्टिफिकेट दिया है जिसके बाद इसने चीनी वैक्सीन को विश्वनीयता के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में चीनी वैक्सीन डिप्लोमेसी को और नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि भारत और रूसी वैक्सीन उसके विकल्प के रूप में सामने आए हैं।

या रिपोर्ट के अनुसार कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, Sputnik V के साथ टीकाकरण अभियान चलाने वाले हैं। सर्वविदित है कि चीन और रूस में मध्य एशिया क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है, अब अपनी घटिया वैक्सीन के कारण चीन इसमें पिछड़ रहा है।

देखा जाए तो मध्य एशिया के देश पारंपरिक रूप से रूस के निकट सहयोगी रहे हैं। अब जबकि Lancet medical journal ने भी रूसी वैक्सीन को A+ रेटिंग दी है, इसकी पूरी उम्मीद है कि रूस इस क्षेत्र में चीनी वैक्सीन को बाहर कर दे। इस समय मध्य एशिया में केवल उज्बेकिस्तान ही एकमात्र देश है जो चीनी वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहा है, किंतु अब लग रहा है कि वह भी अपने पड़ोसी देशों, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, की तरह स्पूतनिक V को अपने टीकाकरण अभियान में शामिल करेगा।

इसके अतिरिक्त अब यूरोपीय देश भी Vaccine को लेकर रूस से सहयोग करने को तैयार हैं। फाइजर वैक्सीन के साथ नॉर्वे में हुई दुर्घटना ने यूरोपीय देशों को मजबूर किया कि वह के विश्वसनीय विकल्पों की ओर ध्यान दें। इसमें एक विकल्प तो भारतीय वैक्सीन है ही, साथ ही रूस की स्पूतनिक V को भी फ्रांस जैसे देशों में मान्यता मिल रही है।

कोरोना के फैलाव के बाद, सबसे पहले यूरोप ही इसकी चपेट में आया था। उस समय इटली, जर्मनी आदि देशों में इस महामारी ने कई लोगों की जान ली थी। लेकिन कोई देश मुखर होकर चीन के खिलाफ नहीं बोल रहा था क्योंकि उस समय टेस्टिंग किट, PPE आदि की आपूर्ति भी चीन से ही होनी थी। किंतु अब जो हालात बन रहे हैं तथा वैक्सीन आपूर्ति में चीन जिस तरह पिछड़ रहा है, उसके कारण अब चीन की प्रासंगिकता भी समाप्त हो रही है। यह चीन की बड़ी कूटनीतिक हार होगी।

इतना तय है कि यदि चीन वैक्सीन की दौड़ में पिछड़ा तो इसका असर भूराजनीतिक समीकरणों पर भी होगा। 2020 में चीन की आक्रमक नीति का विरोध नहीं हुआ, इसका बड़ा कारण उसकी मास्क डिप्लोमेसी थी। किंतु वैक्सीन डिप्लोमेसी की असफलता चीन को निश्चित ही काफी नुकसान पहुंचाएगी।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.