असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए, इसलिए यम देवता का पूजन करने के तीन दिनों में से कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्व का समापन दिन है । `यमद्वितीया’ एवं `भैय्यादूज’ के नाम से भी यह पर्व प्रसिद्द है । इन तीन दिनों में से यह एक दिन है । इन दिनों में भूलोक में यम तरंगें अधिक मात्रा में आती हैं । इन दिनों यमादि देवताओं के निमित्त किया गया कोई भी कर्म अल्प समय में फलित होता है । इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यम देव का पूजन करते हैं । चौकी पर रखे चावल के तीन पुंजों पर तीन सुपारियां रखते हैं । चौपाए पर चावल के तीन छोटे छोटे पूंजों पर तीन सुपारियां रखी जाती हैं ।

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को `यमद्वितीया‘ और `भैय्यादूज‘ कहने के कारण – कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर वायुमंडल में यम तरंगों के संचार के कारण वातावरण तप्त ऊर्जा से प्रभारित रहता है । ये तरंगें नीचे की दिशा में प्रवाहित होती हैं । इन तरंगों के कारण विविध कष्ट हो सकते हैं, जैसे अपमृत्यु होना, दुर्घटना होना, स्मृतिभ्रंश होने से अचानक पागलपन का दौरा पडना, मिरगी समान दौरे पडना अर्थात फिट्स आना अथवा कार्य में अनेक बाधाएं आना । भूलोक में संचार करने वाली यम तरंगों को प्रतिबंधित करने के लिए यमादि देवताओं का पूजन करते हैं । पृथ्वी यम की बहन का रूप है । इस दिन यम तरंगें पृथ्वी की कक्षा में आती हैं । इसलिए पृथ्वी की कक्षा में यम तरंगों के प्रवेश के संबंध में कहते हैं कि, कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर यम अपने घर से बहन के घर अर्थात पृथ्वी रूपी भूलोक में प्रवेश करते हैं । इसलिए इस दिन को यम– द्वितीया के नाम से जानते हैं । यम देवता के अपनी बहन के घर जाने के प्रतीक स्वरूप प्रत्येक घर का पुरुष अपने ही घर पर पत्नी द्वारा बनाए गए भोजन का न सेवन कर बहन के घर जाकर भोजन करता है । बहन द्वारा यम देवता का सम्मान करने के प्रतीक स्वरूप यह दिन `भैय्यादूज‘के नाम से भी प्रचलित है ।

बहन द्वारा भाई का औक्षण करने की पद्धति – भोजन से पूर्व बहन भाई का औक्षण करती है । इसमें वह प्रथम भाई को कुमकुम तिलक एवं अक्षत लगाती है । तदुपरांत भाई के मुख के चारों ओर अर्धगोलाकार आकृति में तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाती है । इसके उपरांत अर्धगोलाकार में तीन बार आरती उतारती है । उपरांत उपहार देकर भाई का सम्मान करती है ।शास्त्रकी जानकारी हो, तो कोई भी धार्मिक कृति मन:पूर्वक एवं श्रद्धा पूर्वक की जाती है । परिणामत: उससे लाभ भी अधिक प्राप्त होता है ।

यमादि देवताओं का पूजन करने के उपरांत  बहन द्वारा भाव सहित भाई का औक्षण करने से होनेवाले लाभ – इस दिन बहनें भाई के रूप में यम देव का औक्षण कर उनका आवाहन करती हैं । उनका यथोचित आदर सहित सम्मान करती हैं और भूलोक में संचार करने वाली यम तरंगों पर तथा पितृलोक की अतृप्त आत्माओं को प्रतिबंधित करने के लिए उनसे प्रार्थना करती हैं । परिजनों को यम तरंगों के कारण होने वाले कष्ट घटते हैं । यम तरंगों से परिजनों की रक्षा होती है । वास्तु का वायुमंडल शुद्ध बनता है । पृथ्वी का वातावरण सीमित समय के लिए यातना रहित अर्थात आनंददायी रहता है । औक्षण के उपरांत भाई बहन के हाथ से बना भोजन ग्रहण करता है । ऐसा बताया गया है, कि सगी बहन न हो, तो भाई दूज के दिन चचेरी, ममेरी किसी भी बहन के घर जाकर अथवा किसी परिचित स्त्री को बहन मानकर उसके घर भोजन करना चाहिए ।

भाई का बहन को उपहार देना – भोजन के उपरांत भाई यथाशक्ति वस्त्राभूषण, द्रव्य इत्यादि उपहार देकर बहन का सम्मान करता है । यह उपहार सात्त्विक हो, तो अधिक योग्य है । जैसे साधना संबंधी, धर्म संबंधी ग्रंथ, देवता पूजन हेतु उपयुक्त वस्त्र इत्यादि । कुछ स्थानों पर स्त्रियां सायंकाल में चंद्रमा का औक्षण कर उसके उपरांत ही भाई का औक्षण करती हैं । भाई न हो, तो कुछ स्थानों पर बहन चंद्रमा को भाई मानकर उनका औक्षण करती है ।

भाई दूजके दिन स्त्रियों द्वारा चंद्रमा का औक्षण करने के परिणाम – स्त्री द्वारा चंद्रमा का आवाहन करने से चंद्र तरंगें कार्यरत होती हैं । ये तरंगें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं । इन तरंगों की शीतलता के कारण ऊर्जामयी यम तरंगें शांत होती हैं तथा वातावरण की दाहकता घटती है । इससे यमदेव का क्षोभ भी मिटता है । इसके उपरांत वातावरण प्रसन्न अर्थात सुखद बनता है । वातावरण की इस प्रसन्नता के कारण स्त्रियों के अनाहत चक्र की जागृति होती है । परिणामस्वरूप यमदेवताके उद्देश्य से भाई के पूजन की विधि द्वारा भाव बढने में सहायता मिलती है तथा इष्ट फल प्राप्ति होती है ।

भाई दूज मनाने से भाई एवं बहन को प्राप्त लाभ – यमद्वितीया अर्थात भाई दूज के दिन ब्रह्मांड से आनंद की तरंगों का प्रक्षेपण होता है । इन तरंगों का सभी जीवों को अन्य दिनों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक लाभ होता है । इसलिए सर्वत्र आनंद का वातावरण रहता है ।

बहन में जागृत देवी तत्त्व का लाभ भाई को मिलना – इस दिन स्त्री में देवी तत्त्व जागृत रहता है । इसका लाभ भाई को उसके भावानुसार मिलता है । भाई साधना करता हो, तो उसे आध्यात्मिक स्तर पर लाभ मिलता है । वह साधना न करता हो, तो उसे व्यावहारिक लाभ मिलता है । भाई कामकाज संभालते हुए साधना करता हो, तो उसे दोनों स्तर पर पचास–पचास प्रतिशत लाभ मिलता है ।


बहन द्वारा की गई प्रार्थना के कारण भाई-बहन का लेन-देन घट जाना-
यमद्वितीया की तिथि पर बहन अपने भाई के कल्याण के लिए प्रार्थना करती है । इसका फल भाई को बहन के भावानुसार प्राप्त होता है । इसलिए बहन का भाई के साथ लेन-देन अंशतः घट जाता है । इसलिए यह दिन एक अर्थ से लेन-देन घटाने के लिए होता है ।
भाई दूज के कारण बहन को प्राप्त लाभ – बहन का प्रारब्ध घट जाना । भाई दूज के दिन भाई में शिवतत्त्व जागृत होता है । इससे बहन का प्रारब्ध एक सहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है । भाई दूज के दिन शास्त्र में बताए अनुसार कृति करने के लाभ हमने समझ लिए । इन सूत्रों से हिंदु धर्म में बताए पर्वो व उत्सवों का महत्त्व समझ में आता है ।संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’

चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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