रघुकुल नंदन के 11 वर्ष 11 माह और 11 दिनों के कठोर वनवास का साक्षी रहा कामदगिरि पर्वत। त्रेता युग में 11 वर्षों तक जिस पर्वत पर जीवन व्यतीत किया है स्वयं प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने। आज कलयुग में जब उनके भव्य मंदिर का निर्माण होने जा रहा है तो विश्व हिंदू परिषद और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य निर्माणकार्य कराने वाले जिम्मेदार लोग कामदगिरि पर्वत को कैसे भुला सकते हैं।
लगभग 500 वर्षों के भीषण संघर्ष के उपरांत उन्हीं रघुकुल नंदन की जन्मभूमि पर, उन्हीं के भव्य मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। ऐसे में कामदगिरि पर्वत की शिलाओं को भी मंदिर निर्माण में सहयोग करने का निमंत्रण दिया गया है। इसीलिए कामदगिरि पर्वत की शिला लेकर संतों की एक टोली आज अयोध्या धाम पहुंची है।
कहां है कामदगिरि पर्वत?
मध्यप्रदेश और उत्तर-प्रदेश की सीमा पर बसी संतों की नगरी को चित्रकूट कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के तट पर बसा चित्रकूट धाम भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम अपने 14 वर्ष के बनवास के दौरान माता सीता और अनुज लक्ष्मण के संग 11 वर्ष 11 माह 11 दिन चित्रकूट की पावन धरा पर बिराजे थे। अब जब सैकड़ों वर्षो के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर की नींव को रखने का काम आरंभ हुआ है। ऐसे में देश और विदेश में स्थित हजारों और सैकड़ों तीर्थ स्थलों से पवित्र जल, शिलाएं और मिट्टी को राम मंदिर की नींव में अर्पित किया जा रहा है। दरअसल विश्व हिंदू परिषद और ट्रस्ट के सदस्यों का कहना है कि राम सबके हैं और राम से सबका लगाव है। लिहाजा सबके हृदय में वास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म भूमि पर सैकड़ों वर्ष संघर्ष के बाद न्यायालय द्वारा जब भव्य राम मंदिर के निर्माण का शुभारंभ हो चुका है, ऐसे में उन सभी राम भक्तों को सीधे अयोध्या से जोड़ने के लिए इससे नायाब तरीका और क्या हो सकता है!
चित्रकूट धाम से कामदगिरि की शिला को लेकर संतों की एक टोली राम नगरी अयोध्या पहुंची। जिसको नाम दिया गया “कामदगिरि शिला यात्रा” ट्रस्ट के महासचिव और कार्यकर्ताओं के द्वारा शिला यात्रा में शामिल संतों का कारसेवकपुरम में भव्य स्वागत किया गया। जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने चित्रकूट के कामदगिरि की शिला का पूजन अर्चन किया और आरती उतारी । जिसके बाद शिला को लेकर राम जन्मभूमि परिसर पहुुँचें और श्री रामलला के दरबार में अर्पित किया गया। रामायण पुराण में भगवान राम के वनवास काल में चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत का विशेष उल्लेख है।
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