यह कर्नल पुरोहितकी तरह राष्ट्रवादी भी है साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की तरह हिन्दू भी, डर से बेखौफ, डराने से डर नही रहा।
सत्ता ही है जिसने कर्नल पुरोहित को नौ साल जेल में रखा,सत्ता वही है जिसने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर अमानवीय अत्याचार किए,सत्ता वही है जिसने कंगना के घर बुलडोजर चलाया,सत्ता वही है जिसने साधुओं का हाथ पकड़कर दरिंदों के हवाले किया,सत्ता वही है जिसने सुशांत की जांच करने आई बिहार पुलिस को क्वारंटाइन किया,सत्ता वही है जिसके सामने शहीद स्मारक का अपमान हुआ,सत्ता वही है जो भगवा आतंकवाद का नारा बुलंद करती थी,सत्ता वही है जिसके समय देशभर में धमाके होते थे लेकिन उसकी कान पर जूं नही रेंगती थी।
अब इतनी बड़ी सत्ता को एक अदना से पत्रकार चुनौती दे रहा है,इसने क्या पुलिस के बूट नही देखे? इसने क्या आतंकवादियों के लिए आधीरात को कोर्ट खुलते नही देखे,इसने क्या 70 सालों के नेताओं के जुल्म नही देखे?? इसने क्या 10 लाख की पेशी वाले वकील नही देखे?
देखे तो जरूर होंगे, और देखे ही क्यों, भुगते भी तो है 10 दस घण्टे थाने में बैठाकर। भुगता तो है एंटीसिपेटरी बेल के कागज लिए अपने सहयोगी की अवैध गिरफ्तारी पर। देखा तो उसने भी होगा एक नेवी के रिटायर्ड कर्मी की पिटाई, देखा तो उसने भी होगा महाबली के सेवकों द्वारा आम लोगों के मुंडन को,देखा तो उसने भी होगा एक चैनल के पत्रकार को उसको घेरते हुए, देखा तो उसने भी होगा विरोधी चैनल के पत्रकारों द्वारा उसके साथी को धमकाते हुए।
उसने देखा, सबकुछ देखा,और सालभर से सबकुछ देख रहा है फिर भी वह अपने वसूलों के लिए लड़ रहा है, देश के लिए लड़ रहा है, अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहा है।
तो फिर इसको कैसे दबाया जाए,साध्वी प्रज्ञा की तरह,कर्नल पुरोहित की तरह,पालघर के साधुओं की तरह??
नही आज यह सम्भव नही होगा।। तो फिर?? हैं सुशांत सिंह वाला रास्ता भी है।
बड़े बड़े जिम्मेदार लोग अब इसे डिप्रेस्ड कह सकते हैं,जनता में कह सकते हैं यह कभी भी आत्महत्या कर सकता है,एक जनमत बनाया जा सकता है कि यह सुसाइड कर सकता है, फिर इसका कुछ भी किया जाए तो कहानी का प्लाट तो पहले से तैयार है।
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