एक-दो दिन पहले की बात है। राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने यह कहा कि हम डीजल पेट्रोल पर वैट की दर नहीं घटाएंगे क्योंकि इससे हमें करोड़ों का नुकसान होगा।
अब मेरा मानना यह है कि जिस कांग्रेस ने और बाकी विपक्षी पार्टियों ने पेट्रोल डीजल की महंगाई का रोना रोकर चुनावों में भाजपा की ऐसी तैसी की आज पेट्रोल डीजल पर लगा वैट क्यों नहीं घटा रही है।
साथ में ही सवाल यह भी है की केंद्र सरकार से जीएसटी के अंतर्गत क्यों नहीं ला रही है?
अगर आप थोड़ी सी मीमांसा करें तो जान जाएंगे कि इन पार्टियों के लिए इन राजनीतिक दलों के लिए आप यानी कि आम जनता सिर्फ चारा है जिसका इस्तेमाल यह नेतागण अपनी जरूरतों के शेर के आगे पेश करके कभी भी कर सकते हैं।
अगर केंद्रीय सत्ता में बैठे भाजपा के लिए महंगाई कम करना उसका दायित्व है तो राज्य सत्ता में काबिज वा पिक बाकी विपक्षी दल इस दायित्व से कैसे मुंह मोड़ सकते हैं?
परंतु मजे की बात यह है कि पेट्रोल डीजल की महंगाई के मुद्दे को अगर आप बहुत बड़ा मुद्दा नहीं मानते हैं तो यह बुद्धिजीवी लोग आपको भक्त बता देंगे और दूसरी तरफ अगर आप पेट्रोल डीजल के मुद्दे को बुलंदियों तक उछालेंगे तो एक समर्थन धड़ा ऐसा भी है जो आपको वामपंथी कहेगा।
परंतु मजबूरी यह है कि भारत के कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग सरकार विरोधी वक्तव्य भी जारी करने पर अपना कॉपीराइट मानते हैं और खुद को सदैव वामपंथ मानते हैं चाहे ये लोग खुद सत्ता में क्यों न आ जाएँ परंतु अपने विरोधी राजनीतिक विचारधारा को सांप्रदायिक या पूंजीवादी विचारधारा कहते हैं वामपंथी नहीं। यह एक इंटेलेक्चुअल अन्याय हैं जो विरोध करने का हक सिर्फ अपने जिम्मे रखना चाहता है।
याद रखें सत्ता वामपंथी हो या दक्षिणपंथी , कांग्रेसी हो या समाजवादी , पूंजीवादी हो या साम्यवादी … सबका लक्ष्य सिर्फ आपको लूटना होता है।
अगर ऐसा नहीं होता तो चाहे वह डीजल पेट्रोल की कीमतें हो रसोई गैस की कीमतें हो या अन्य जरूरी उत्पादों पर लगे हुए टैक्स की वजह से उनकी बढ़ती कीमतें हो यह सरकारें उन पर लगे अपने हिस्से के टैक्स को कम करके एक नजीर प्रस्तुत कर सकती थी परंतु क्योंकि बढ़ती हुई महंगाई इन्हें भी केंद्रीय सत्ता को कोसने का मौका देता है इसीलिए ये लोग भी मंहगाई को अपनी ओर से कम नहीं करते।
इसीलिए सरकार को कोसिए, ऊँच टैक्स के कारण बढ़ी हुई महंगाई दरअसल सत्ता को भी बहुत भाती है और विपक्ष को भी क्योंकि हर जगह डबल इंजन की सरकार नहीं होती और अगर यहां विपक्ष को कोसने का मौका मिलता है तो दूसरी ओर पक्ष सत्ता पक्ष को भी राज्यों में विपक्ष की प्रांतीय सरकारों को कोसने का मौका मिल जाता है और इस तरह नूरा कुश्ती चलती रहती है।
मैथिली भाषा की एक कहावत है कि समधी ने खाया तुरुक का भात पर हमने तो खाया समधी का बात,
इसलिए जाति जाएगी तो समधी की, हमारी नहीं।
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