टीआरपी हेरफेर मामले में हंसा रिसर्च ग्रुप ने मुंबई पुलिस पर बेहद संगीन आरोप लगाए हैं। ग्रुप ने कहा है कि मुंबई पुलिस द्वारा उन्हें रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के खिलाफ गलत बयान देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, BARC के बार-ओ-मीटर (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) का संचालन करने वाली कंपनी ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख करते हुए इस मामले की जाँच मुंबई पुलिस के बजाय केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) को सौंपने की माँग की है।

बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में हंसा रिसर्च ने आरोप लगाया है कि पुलिस उनके कर्मचारियों को फर्जी बयान जारी करने के लिए दबाव बनाने की रणनीति अपना रही है। साथ ही रिपब्लिक टीवी द्वारा जारी एक डॉक्यूमेंट को फर्जी करार देने के लिए कह रही है।

हंसा रिसर्च की रिपोर्ट, जिसके आधार पर टीआरपी मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी, उसमे सिर्फ इंडिया टुडे के नाम का उल्लेख करते हुए कहा गया था कि इंडिया टुडे चैनल को देखने के लिए बार-ओ-मीटर वाले ने घरों को रिश्वत दिया था। वहीं पुलिस द्वारा लगाए गए आरोप के विपरीत इसमें रिपब्लिक का नाम नहीं था। इसके अलावा एफआईआर में भी इसका जिक्र नहीं है।

याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ताओं को लगातार क्राइम ब्रांच में लंबे समय तक रखा जाता है और गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है और बार-बार झूठे बयान देने के लिए दबाव बनाया जाता है।”

याचिका हंसा समूह के निदेशक नरसिम्हन के स्वामी, सीईओ प्रवीण ओमप्रकाश और नितिन काशीनाथ देवकर की तरफ से दायर किया गया है। याचिका में कहा गया कि पुलिस को पहले ही बताया जा चुका है कि तथ्यों के आधार पर निर्णय लिया जा रहा है कि रिपब्लिक द्वारा दिखाए गए डॉक्यूमेंट सही है या नहीं।

हंसा द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि उनके अधिकारियों से बिना लिखित सूचना के पूछताछ की जा रही है और उन्हें दस्तावेज तैयार करने का समय भी नहीं दिया गया है। याचिकर्ताओ पर इसके लिए दबाव भी बनाया गया।

मुंबई के पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह, सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाज़े और एसीपी शशांक संभल को याचिका में उत्तरदाताओं के रूप में नामित किया गया है। हंसा रिसर्च के कर्मचारियों को 12 अक्टूबर के बाद से बार-बार अपराध शाखा के कार्यालय में बुलाया गया और फिर घंटों इंतजार करवाया गया है।

कंपनी का कहना है कि उसके कर्मचारियों को मुंबई पुलिस द्वारा परेशान किया गया, क्योंकि उन्होंने रिपब्लिक टीवी के खिलाफ गलत बयान देने से इनकार कर दिया था। हंसा रिसर्च ने यह भी बताया है कि यह टीआरपी हेरफेर मामले में वे शिकायतकर्ता थे और अब उन्हें ही पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है।

याचिका में कहा गया, “यह एक अनोखी स्थिति है, जहाँ किसी अपराध में पहले मुखबिर को जाँच एजेंसी द्वारा परेशान किया जा रहा है और एक आरोपित की तरह ट्रीट किया जा रहा। यह पूरी तरह से कानून और कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के खिलाफ है। यह एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और इसमें माननीय उच्च न्यायालय द्वारा तत्काल हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।”

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि हंसा रिसर्च ने अपने एक कर्मचारी विशाल भंडारी के खिलाफ मामला दायर किया था, जिसने 2 घंटे प्रतिदिन इंडिया टुडे चैनल देखने के लिए BARC पैनल हाउसों को पैसे देने की बात कबूल की थी। यह पैसे उसे चैनल द्वारा भुगतान किया गया था।

हालाँकि, परम बीर सिंह द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान टीआरपी मामले में रिपब्लिक टीवी का नाम लिया गया था, और उन्होंने इंडिया टुडे के नाम का उल्लेख नहीं किया। जिसके बाद हंसा रिसर्च की मूल शिकायत और मामले में पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में देखा गया कि इंडिया टुडे को मामले में कई बार नामित किया गया था जबकि उसमें रिपब्लिक टीवी का नाम नहीं था।

तभी से परम बीर सिंह और सचिन वाजे के नेतृत्व में मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी को फँसाने के लिए उसके खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। चैनल के अधिकारियों और पत्रकारों को रोजाना पुलिस स्टेशन में बुलाया जाता है और उनसे घंटों पूछताछ की जाती है।

अब हंसा रिसर्च का कहना है कि उनके कर्मचारियों को भी उसी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर उन्हें लगभग 200 घंटों तक बिना किसी उचित कारण के हिरासत में रखा गया। याचिकाकर्ता का कहना है कि याचिकाकर्ताओं और अन्य अधिकारियों को बुलाने और हिरासत में लेने का एकमात्र उद्देश्य उन पर दबाव डालना और उन्हें निराश करना है ताकि वे सचिन वाजे की इच्छा के अनुसार गलत बयान दे सकें।

हंसा रिसर्च का कहना है कि पुलिस और मीडिया उन्हें आपसी हमला करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसका नुकसान उन्हें झेलना पड़ रहा है।

कंपनी का कहना है कि वह यह नहीं कह सकते है कि रिपब्लिक ने बिना किसी फिजिकल डॉक्यूमेंट को दिखाए एक नकली दस्तावेज़ प्रदर्शित किया, क्योंकि टीवी पर जो दिखाया गया था, उससे इसकी प्रामाणिकता निर्धारित करना मुश्किल है। लेकिन इसके बावजूद पुलिस उन्हें यह बयान देने के लिए परेशान कर रही है कि दस्तावेज नकली है।

उन्होंने यह भी कहा है कि वाज़े और क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने झूठे और असत्यापित तथ्यों के आधार पर मीडिया स्टेटमेंट बनाने का अभियान शुरू किया है।

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