लॉक डाउन के वक़्त, प्रवासी मज़दूरों पर आए खाने, पीने व रहने के संकट को अवसर में बदलने हेतु, पहले इंदिरा गांधी की नाक बोलती है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इजाज़त दें, कांग्रेस की हज़ार बसें, राज्य की सीमाओं से मज़दूरों को निशुल्क उनके घर पहुंचाएंगी। चलिए ठीक है, योगी जी ने इजाज़त भी दे दी। अब क्या? कांग्रेस है भइया, अब फैमिली है, तो ड्रामा भी बनता है न। 

फिर आयी बारी फेक न्यूज़ की, कांग्रेस इकोसिस्टम का  सबसे मजबूत, टिकाऊ (बुद्धिजीवी चाचा की कलम से) एवं हमेशा लतिया जाने वाला स्तम्भ। कुम्भ के मेले में खड़ी बसों की कतारों की एक पुरानी तस्वीर कांग्रेस के भाड़े के टट्टू और भारत में पल रहे चीन के प्रवक्ता, एक वामी न्यूज़ चैनल ने वायरल करने की कोशिश की, पर बेचारा खुद बुरी तरह एक्सपोज़ हो गया, हमेशा ही होता है। खैर, झूठ के पैर तो होते नहीं। 

हाँ अब आती है बारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा मांगी वाहनों व उनके चालकों की लिस्ट देने की, उसमें भी कांग्रेस के घपले सामने आये। क्योंकि बसें होंगी, तो लिस्ट होगी न, RTO से जल्दबाज़ी में निकलवाई लिस्ट में तो बसें, स्कूटर, कार, ट्रैक्टर सभी निकलेंगे। तो इस तरह तीसरा बुलबुला भी फूट गया। 

अब आईं आगे खुद इंदिरा गांधी की नाक, फिर से एक बार हाथ से फिसलती पार्टी की इज़्ज़त बचाने जो 2014 से हर रोज़ कोई न कोई उतार दे रहा है। और यह है अबतक की सबसे ताज़ी व नई चाल, बड़ी ही बेशर्मी से फ्रंटलाइन पर खेलते हुए अपनी औकात दिखाने की और आउट हो जाने की। “हम बसें देंगे” से ले कर “बसें भेजना समय की बर्बादी” तक के सफर को ही शास्त्रों में “कांग्रेसी बेशर्मी कहा गया है। 

मानना पड़ेगा योगी जी की कूटनीतिक समझ को, हम तो कायल हो गए। देखने लायक बात यह है कि भारत का चीनी/वामी/कांग्रेसी (चोर चोर मौसेरे भाई) मीडिया अब भी एक वफादार श्वान की भांति, अपने मालिक मालकिन द्वारा फैलाये रायते को समेटने का भरसक प्रयास कर रहा है, हाँ वो बात अलग है कि उसे आभास नहीं, रायते को समेटा कहाँ जाएगा। दोने के पैकेट्स में घोटाला कर के ही तो शायद “प्राइम टाइम” को फण्ड जाता रहा होगा, एक हिसाब से। इंतज़ार रहेगा कि डिज़ाइनर पत्रकार, चाट कर फैलाई हुई गन्दगी समेटने व उससे जुड़ी सकारात्मकता, साम्प्रदायिकता और डर के माहौल पर कब तक प्राइम टाइम करते हैं।

हाँ, तो अब आयी बात उन महानुभवों की, जिनमें पिछले कुछ दिनों अचानक से, 20-25 साल पुराना सोता हुआ सो कॉल्ड ‘इंसान/मानव’ जाग गया था, सड़क पर मज़दूरों को देख कर। गौर फरमाइए, यह वही मज़दूर था, जिसे वह अपने विलायती फर्नीचर से दूर रखते हैं। जिसके बच्चों को गैराज में बिठाते हैं और बड़ा मन मार कर किसी पुराने अलग रखे कप में दो घूंट चाय पिलाते हैं, जिसे धोता भी वही है। 

इनका मानव यदि ऐसी ओछी राजनीति पर जागता है और अंग्रेज्जी अखबारों के पन्ने भरता है, तो इतना समझे यह वर्ग कि एक “मॉर्टिन” जला कर उसको सोने दे, वही बेहतर है, कम से कम सरकार और समाज के लिए। क्योंकि सरकार को और भी कई देश विरोधी ताकतों से निपटना है महामारी के बीच। उसमें इतनी हिम्मत नहीं भइया जो इनके अंदर के “Circumstancial and opportunistic socialist humanity” से निपट सके, अभी तो नहीं ही।
 

उम्मीद है अब तक होती राजनीति और गैर भाजपा शासित प्रदेशों का तैयार किया प्रोपगैंडा सबकी समझ में आ गया होगा। यदि आ गया है, तो मुबारक हो, आपका अवसरवादी, क्रांति लाने की सोच में जागा हुआ मानव सो गया है और एक ज़िम्मेदार व समझदार नागरिक लौट आया है। और अगर अब भी समझ नहीं आया है, तो भइया, यह वर्ग भी उसी प्रजाति का है जिसे हम लिबरल/लेफ्टिस्ट कहते हैं। तथ्यों व सच से एलर्जिक, एवं नफरत के प्रोपगैंडा पर पलने वाले एक बेहद निर्लज्ज व विस्मयकारी जीव जंतु।

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