अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आचार्य श्री अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी के इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष चुने जाने पर आचार्य श्री ने साझा किए अपने अनुभव।

इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष चुने जाने और इसके 105 वें अधिवेशन में रांची में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देने को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि, सम्मान और गौरव मानता हूं। मैं प्रायः यह सोचता था कि लाइफ टाइम अचीवमेंट क्या होता है? लेकिन आज मुझे यह अनुभव हो रहा है कि जिस उपलब्धि के लिए आप जीवन भर तपस्या करते हैं, साधना करते हैं और वह जब आपको प्राप्त होती है तो वही सही मायने में लाइफ टाइम अचीवमेंट होता है ।
मेरे लिए इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष होना वास्तव में एक अघोषित, अलिखित लाइफ टाइम अचीवमेंट ही है।
मुझे स्मरण है कि सबसे पहले मैंने पुणे अथवा सूरत कॉन्फ्रेंस में इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन की सदस्यता ली थी और कॉन्फ्रेंस मैं सहभागिता दी थी। 1980 में जबलपुर अधिवेशन में काफी सक्रिय रहा जिसमें प्रोफेसर डीएस अवस्थी, सचिव और कोषाध्यक्ष और प्रोफेसर कामता प्रसाद अध्यक्ष चुने गए। मुझे याद है कि जबलपुर अधिवेशन में प्रोफेसर मनमोहन सिंह जो कि उस समय भी आरबीआई के गवर्नर थे उन्हें अध्यक्ष के रूप में नहीं चुना गया था। इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन में मुझे सक्रिय रूप से जोड़ने का का काम प्रोफेसर पी दी हजेला जी का रहा है जो भारतवर्ष के बहुत बड़े मौद्रिक अर्थशास्त्र थे इसके अध्यक्ष भी।
उसके बाद में निरंतर अधिवेशन में भाग लेता रहा और विभिन्न अर्थशास्त्रियों के साथ में निकटता स्थापित करता रहा। जिन अर्थशास्त्रियों ने मुझे सबसे अधिक स्नेह दिया उनमें प्रोफेसर पीआर ब्रह्मानंद , प्रोफेसर गौतम माथुर, प्रोफेसर डीएम नानजुंडप्पा , प्रोफेसर सुखमय चक्रवर्ती , प्रोफेसर अलक घोष, प्रोफेसर सी रंगराजन, प्रोफेसर अमर्त्य सेन, प्रोफेसर ए एम खुसरो , प्रोफेसर वाईवी षणमुगसुंदरम , प्रोफेसर वीआर पंचमुखी, प्रोफेसर दीपक नय्यर , प्रोफेसर जीएस बल्ला, प्रोफेसर सी टी कुरियन , प्रोफेसर मनमोहन सिंह है। इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का इसलिए मैं आभारी हूं कि इसने मुझे अपनी अर्थशास्त्र संबंधित समझ विकसित करने और पाश्चात्य अर्थशास्त्र से हटकर भारतीय अर्थशास्त्र की ओर उन्मुख होने का अवसर प्रदान किया। 1988 में सबसे पहले मैंने एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव काउंसिल का चुनाव कोलकाता अधिवेशन में लड़ा ।उसमें अमर्त्य सेन इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। वह पहले से ही इंटरनेशनल इकोनॉमिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे फिर भी उन्हें इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट के रूप में इसलिए चुना गया जिससे उनके नोबेल प्राइज के लिए दावेदारी को प्रबलता मिल सके। कोलकाता अधिवेशन में ही बहुत सारे मित्रों से घनिष्ठता हुई जिनमें प्रोफ़ेसर एनके तनेजा, प्रोफेसर एसके जी सुंदरम, प्रोफेसर श्याम कार्तिक मिश्रा, प्रोफेसर अजीत कुमार सिन्हा प्रमुख है। 1991 में फिर से मुजफ्फरपुर में एग्जीक्यूटिव काउंसिल के लिए चुना गया 1994 में फिर मुंबई कॉन्फ्रेंस में मुझे निर्विरोध चुना गया। इस तरह लगभग 9 वर्ष एग्जीक्यूटिव काउंसिल में लगातार काम करने का मुझे सौसर प्राप्त हुआ। मुझे ध्यान है 1997 में हैदराबाद की कॉन्फ्रेंस में मैंने कांफ्रेंस के सचिव और कोषाध्यक्ष के पद के लिए चुनाव लड़ा और 6 वोटों से मैं प्रोफेसर राजकुमार सेन से हार गया था ।लेकिन 2000 में जम्मू कॉन्फ्रेंस में मैं बहुत अधिक मतों से सचिव और कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया।
मेरे लिए यह अत्यंत सम्मान का विषय था कि 2001 में मैंने इंटरनेशनल इकोनामिक एसोसिएशन के लिस्बन पुर्तगाल में होने वाले अधिवेशन इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व किया और इसमें लगभग 21 अर्थशास्त्री भारत वर्ष के थे ।यहीं पर ही प्रोफेसर आरएम सोलो के साथ पाश्चात्य पॉजिटिव इकोनॉमिक्स और भारतीय मूल्य आधारित इकोनॉमिक्स पर लंबी चर्चा हुई थी।
2003 में कोल्हापुर की कॉन्फ्रेंस में इंडियन इकोनॉमिक जर्नल के संपादक के रूप में मेरा सर्वसम्मति से चुनाव हुआ। 2003 में ही अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुआ था। यह इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के प्रत्येक सदस्य के लिए प्रसन्नता का विषय था ।मुझे कई बार सत्र की अध्यक्षता करने, प्रतिवेदक के रूप में काम करने, पैनलिस्ट के रूप में और विशेष व्याख्यान देने का अवसर भी इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दिया। सचिव और कोषाध्यक्ष रूप में प्रोफेसर डी एस अवस्थी जी ने लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी । प्रोफेसर राजकुमार सेन भी लगभग 6 वर्ष तक सचिव और कोषाध्यक्ष रहे परंतु सबसे अधिक समय सचिव और कोषाध्यक्ष रहने का श्रेय प्रोफेसर अनिल ठाकुर को प्राप्त होता है। प्रोफेसर अनिल ठाकुर ने 2003 से सचिव और कोषाध्यक्ष का कार्यभार संभाला है तबसे इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन बहुत अधिक ऊंचाइयों प्राप्त हुई है। इसके सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई, बड़े-बड़े नए अर्थशास्त्रियों ने इसमें सहभागिता प्रदान की और इसकी संरचना में कई परिवर्तन किए गए हैं।
मेरे लिए यह बहुत बड़े सौभाग्य की बात है कि जिस एसोसिएशन के एक साधारण सदस्य के रूप में मैंने यात्रा प्रारंभ की थी उसके अध्यक्ष के रूप में कल मुझे अपना उद्बोधन देने का अवसर प्राप्त हो रहा है ।इसके लिए मैं प्रोफेसर तपन कुमार शांडिल्य ,प्रोफेसर अनिल ठाकुर, प्रोफेसर अशोक मित्तल, प्रोफेसर देवेंद्र अवस्थी, डॉक्टर अंग्रेज सिंह राणा आदि के साथ एसोसिएशन के समस्त पदाधिकारियों एवं सदस्यों का आभारी हूं।
[27/12, 8:38 am] Prof. ADN Vajpayee VC ABU Bilaspur: इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने जाने और इसके 105 वें अधिवेशन में रांची में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देने को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि, सम्मान और गौरव मानता हूं । मैं प्रायः यह सोचता था कि लाइफ टाइम अचीवमेंट क्या होता है?लेकिन आज मुझे यह अनुभव हो रहा है कि जिस उपलब्धि के लिए आप जीवन भर तपस्या करते हैं, साधना करते हैं और वह जब आपको प्राप्त होती है वही सही मायने में लाइफ टाइम अचीवमेंट होता है ।
मेरे लिए इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष होना वास्तव में एक अघोषित, अलिखित लाइफ टाइम अचीवमेंट ही है।
मुझे स्मरण है कि सबसे पहले मैंने पुणे अथवा सूरत कॉन्फ्रेंस मैं इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन की सदस्यता ली थी और कॉन्फ्रेंस मैं सहभागिता दी थी। 1980 में जबलपुर अधिवेशन में काफी सक्रिय रहा जिसमें प्रोफेसर डीएस अवस्थी, सचिव और कोषाध्यक्ष और प्रोफेसर कामता प्रसाद अध्यक्ष चुने गए। मुझे याद है किस जबलपुर अधिवेशन में प्रोफेसर मनमोहन सिंह जो कि उसमें भी आरबीआई के गवर्नर थे उन्हें अध्यक्ष के रूप में नहीं चुना गया था। इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन में मुझे सक्रिय रूप से जोड़ने का का काम प्रोफेसर पी दी हजेला जी का रहा है जो भारतवर्ष के बहुत बड़े मौद्रिक अर्थशास्त्र थे इसके अध्यक्ष भी।
उसके बाद में निरंतर अधिवेशन में भाग लेता रहा और विभिन्न अर्थशास्त्रियों के साथ में निकटता स्थापित करता रहा । जिन अर्थशास्त्रियों ने मुझे सबसे अधिक स्नेह दीया उनमें प्रोफेसर पीआर ब्रह्मानंद , प्रोफेसर गौतम माथुर, प्रोफेसर डीएम नानजुंडप्पा , प्रोफेसर सुखमय चक्रवर्ती , प्रोफेसर अलक घोष, प्रोफेसर सी रंगराजन, प्रोफेसर अमर्त्य सेन, प्रोफेसर ए एम खुसरो , प्रोफेसर वाईवी षणमुगसुंदरम , प्रोफेसर वीआर पंचमुखी, प्रोफेसर दीपक नय्यर , प्रोफेसर जीएस बल्ला, प्रोफेसर सी टी कुरियन , प्रोफेसर मनमोहन सिंह है। इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का इसलिए मैं आभारी हूं कि इसने मुझे अपनी अर्थशास्त्र संबंधित समझ विकसित करने और पाश्चात्य अर्थशास्त्र से हटकर भारतीय अर्थशास्त्र की ओर उन्मुख होने का अवसर प्रदान किया। 1988 में सबसे पहले मैंने एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव काउंसिल का चुनाव कोलकाता अधिवेशन में लड़ा ।उसमें अमर्त्य सेन इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। वह पहले से ही इंटरनेशनल इकोनॉमिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे फिर भी उन्हें इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट के रूप में इसलिए चुना गया जिससे उनके नोबेल प्राइज के लिए दावेदारी को प्रबलता मिल सके। कोलकाता अधिवेशन में ही बहुत सारे मित्रों से घनिष्ठता हुई जिनमें प्रोफ़ेसर एनके तनेजा, प्रोफेसर एसके जी सुंदरम, प्रोफेसर श्याम कार्तिक मिश्रा, प्रोफेसर अजीत कुमार सिन्हा प्रमुख है। 1991 में फिर से मुजफ्फरपुर में एग्जीक्यूटिव काउंसिल के लिए चुना गया 1994 में फिर मुंबई कॉन्फ्रेंस में मुझे निर्विरोध चुना गया। इस तरह लगभग 9 वर्ष एग्जीक्यूटिव काउंसिल में लगातार काम करने का मुझे सौसर प्राप्त हुआ। मुझे ध्यान है 1997 में हैदराबाद की कॉन्फ्रेंस में मैंने कांफ्रेंस के सचिव और कोषाध्यक्ष के पद के लिए चुनाव लड़ा और 6 वोटों से मैं प्रोफेसर राजकुमार सेन से हार गया था ।लेकिन 2000 में जम्मू कॉन्फ्रेंस में मैं बहुत अधिक मतों से सचिव और कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया।
मेरे लिए यह अत्यंत सम्मान का विषय था कि 2001 में मैंने इंटरनेशनल इकोनामिक एसोसिएशन के लिस्बन पुर्तगाल में होने वाले अधिवेशन इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व किया और इसमें लगभग 21 अर्थशास्त्री भारत वर्ष के थे ।यहीं पर ही प्रोफेसर आरएम सोलो के साथ पाश्चात्य पॉजिटिव इकोनॉमिक्स और भारतीय मूल्य आधारित इकोनॉमिक्स पर लंबी चर्चा हुई थी।
2003 में कोल्हापुर की कॉन्फ्रेंस में इंडियन इकोनॉमिक जर्नल के संपादक के रूप में मेरा सर्वसम्मति से चुनाव हुआ। 2003 में ही अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुआ था। यह इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के प्रत्येक सदस्य के लिए प्रसन्नता का विषय था ।मुझे कई बार सत्र की अध्यक्षता करने, प्रतिवेदक के रूप में काम करने, पैनलिस्ट के रूप में और विशेष व्याख्यान देने का अवसर भी इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दिया। सचिव और कोषाध्यक्ष रूप में प्रोफेसर डी एस अवस्थी जी ने लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी । प्रोफेसर राजकुमार सेन भी लगभग 6 वर्ष तक सचिव और कोषाध्यक्ष रहे परंतु सबसे अधिक समय सचिव और कोषाध्यक्ष रहने का श्रेय प्रोफेसर अनिल ठाकुर को प्राप्त होता है। प्रोफेसर अनिल ठाकुर ने 2003 से सचिव और कोषाध्यक्ष का कार्यभार संभाला है तबसे इंडियन इकोनामिक एसोसिएशन बहुत अधिक ऊंचाइयों प्राप्त हुई है। इसके सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई, बड़े-बड़े नए अर्थशास्त्रियों ने इसमें सहभागिता प्रदान की और इसकी संरचना में कई परिवर्तन किए गए हैं।
मेरे लिए यह बहुत बड़े सौभाग्य की बात है कि जिस एसोसिएशन के एक साधारण सदस्य के रूप में मैंने यात्रा प्रारंभ की थी उसके अध्यक्ष के रूप में कल मुझे अपना उद्बोधन देने का अवसर प्राप्त हो रहा है ।इसके लिए मैं प्रोफेसर तपन कुमार शांडिल्य ,प्रोफेसर अनिल ठाकुर, प्रोफेसर अशोक मित्तल, प्रोफेसर देवेंद्र अवस्थी, डॉक्टर अंग्रेज सिंह राणा आदि के साथ एसोसिएशन के समस्त पदाधिकारियों एवं सदस्यों का आभारी हूं।

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