भूलोक पर मानव जीवन जीने के लिए मर्यादा, धर्म, त्याग, तपस्या का जो संदेश चित्रकूट से दुनिया को मिला है, वह आपको कहीं और ढूंढने से भी नहीं मिल सकता। यह कथन उतना ही सत्य है, जितना सत्य यह है कि आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं। चित्रकूट के कण-कण में भगवत वास है। बस आपको उस स्तर तक जाकर उसको समझने, परखने और महसूस करने की जरूरत है। चित्रकूट की महिमा के बारे में किताबों के साथ-साथ घर में बुजुर्गों से मैं हमेशा सुनता रहा हूं।
ऐसा दूसरा मौका था जब मैं चित्रकूट गया। साल 2020 के आखरी दिनों में चित्रकूट में था। तीन दिन की चित्रकूट धाम की यात्रा के बाद मैं पुनः अयोध्या धाम अपने निवास वापस आ गया। लेकिन अपने बीते हुए कुछ दिनों के अनुभव को आप सबके सामने रखना बहुत जरूरी है।
चित्रकूट में वैसे तो लगभग हजारों की संख्या में मठों और मंदिरों की श्रृंखला है। लेकिन चित्रकूट के कुछ ऐसे अद्भुत, अविश्वसनीय, आकर्षक स्थान हैं, जो आज भी पर्यटकों और चित्रकूट आने वाले विभिन्न सनातन धर्मियों की पहुंच से दूर है। उसका मुख्य कारण है, चित्रकूट जिला प्रशासन का उन सभी जीवंत और पौराणिक स्थलों के प्रति घोर उदासीनता। पर वही चित्रकूट में ही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो चित्रकूट को और चित्रकूट के गौरव को सहेजने का काम निस्वार्थ भाव से वर्षों से करते आ रहे हैं। उसमें एक नाम ‘अनुज हनुमंत’ का भी है जो पेशे से एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और शानदार व्यक्तित्व के वाले इंसान हैं। अनुज हनुमंत विगत कई वर्षों से चित्रकूट के जंगलों और पहाड़ों में खाक छान रहे हैं। अनुज हनुमंत चित्रकूट में चित्रकूट को बड़ी शिद्दत से ढूंढने का प्रयत्न कर रहे हैं। अनुज को मैं पिछले 6 वर्षों से जानता हूं और जब भी मैं अनुज को पढ़ता हूं तो उनकी लेखन में चित्रकूट का जिक्र होता है और हर बार कोई नई खोज के साथ यह सामने उपस्थित होते हैं। कभी गुप्तगोदावरी के पहाड़ों में नई गुफाओं की खोज की खबर हो या चर गांव के सोमनाथ महादेव के मंदिर की कहानी हो। जिसके अस्तित्व की लड़ाई का बीड़ा अपने सर पर लेकर चल रहे हों । ऐसी बहुत सी कहानियां हैं, जिनका मैं खुद गवाह हूं । आज मैं सोमनाथ मंदिर पहुंचा। जहां पहुंचने के लिए बेहद दुर्गम रास्तों का सफर तय करना पड़ा। सोमनाथ मंदिर कर्वी से लगभग 10 या 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर एक पहाड़ पर स्थित है। जहां जाने के लिए रास्ता भी सही नहीं है। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि यह मंदिर लगभग 15 सौ से 16 सौ वर्ष पुराना है।

दुर्गम रास्तों का सफर तय कर के जब मैं सोमनाथ मंदिर के करीब पहुंचा तो दंग रह गया। वैसे तो मैं मंदिरों के शहर अयोध्या में रहता हूं, लेकिन प्रकृति की गोद में बसा यह मंदिर अवर्णीय है। चित्रकूट को करीब से देखने का अनुभव शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता। चित्रकूट अद्भुत है, अतुलनीय है, अद्वितीय है। सोमनाथ मंदिर के द्वार के सामने गाड़ी रुकते ही मेरे मुंह से पहला शब्द यही निकला ‘अद्भुत जगह है’।

जैसे ही मैंने अपना पहला कदम सोमनाथ मंदिर की सीढ़ी पर रखा। मेरे अंदर एक अजीब सी उर्जा की अनुभूति हुई ,जैसे-जैसे मैं सीढ़ियों पर चढ़ता गया। मुझे हर एक सीढ़ी पर उस प्राचीन सोमनाथ मंदिर की दिव्यता और भव्यता की अनुभूति होती गई। सीढ़ियों के किनारे रखी हुई एक-एक पत्थरों की टूटी-फूटी मूर्तियां,

मुझे मुझसे हजारों साल पीछे लेकर चली गई और मैं अपने मस्तिष्क को इन सभी टूटी हुई मूर्तियों को जोड़कर उस भव्य सोमनाथ के मंदिर का आकार देने से नहीं रोक पाया। धीरे-धीरे मैं सीढ़ियों पर चढ़ता गया और मुख्य मंदिर के द्वार तक आ पहुंचा। जहां पर चारों तरफ हजारों की संख्या में, एक के ऊपर एक रखी हुई देवी देवताओं की मूर्तियां, जिनकी संख्या शब्दों में बयां करना बेहद मुश्किल होगा। सोमनाथ का मंदिर पहाड़ी के शिखर पर विराजमान है। जहां से आप चारों ओर का नजारा ले सकते हैं। मुख्य मंदिर के द्वार पर पहुंचने पर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उस अनुभूति का वर्णन करना मेरे या किसी लेखक के लिए असंभव होगा। वह दृश्य आपकी आंखों से कभी ओझल ही नहीं होगा मुख्य मंदिर के नाम पर एक छोटा सा ढांचा है ऊपर। जिसको टूटे हुए पुराने सोमनाथ मंदिर के बिखरे पत्थरों को सहेज कर एक आकार दिया गया है। मंदिर के चारों तरफ हजारों वर्ष पहले मुगल शासकों के द्वारा विध्वंस किए गए इस विशाल अद्भुत सोमनाथ मंदिर के दीवारों में उकेरे हुए अद्भुत कलाकृति पत्थरों का संग्रह लगा हुआ है। मंदिर के इर्द-गिर्द रखी हुई कलाकृति, शिलाएं, टूटी हुई मूर्तियां आज भी दुनिया को अपने अदम्य साहस वा वजूद का प्रमाण प्रस्तुत कर रही हैं।

शिलाओं का अवलोकन करते-करते काफी समय व्यतीत हो गया। तभी पीछे से किसी ने मुझसे सवाल किया कि ‘साहब कहां से आए हैं?’ जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो मैंने देखा एक साधु मुझसे यह सवाल कर रहे थे। उनको देखते ही मैंने उनको प्रणाम किया और मैंने जवाब दिया कि ‘मैं अयोध्या धाम से आया हूं’। अयोध्या का नाम सुनते ही वह खुश हो गए और बोले ‘अरे वाह! क्या बात है आइए आइए आइए बहुत अच्छा लगा आप यहां आए’। तो मैंने उनसे पूछा ‘बाबा यहां लोग नहीं आते क्या?’ तो उन्होंने कहा कि ‘बहुत कम लोग आते हैं’ आस-पास के गांव के लोग सोमवार को कभी-कभी आते हैं। बातचीत हो रही थी कि तभी उन्होंने कहा हनुमंत अनुज भैया बहुत मदद करते हैं। तब मैंने उनसे बताया कि उन्हीं ने बताया है इस मंदिर के बारे में मुझको तभी मैं यहां आया हूं दर्शन करने के लिए। तो वह बहुत खुश हुए। बाबा लगभग 18 वर्षों से सोमनाथ जी की सेवा में लगे हैं लेकिन अफसोस इन 18 वर्षों में सोमनाथ मंदिर की दशा वैसी की वैसी ही है। कई सरकारें आयीं, कई सरकारें गईं, लेकिन अभी तक सोमनाथ को अपने वजूद की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ रही है। देश में धर्म के ठेकेदार, मंदिरों के नाम पर कुछ तथाकथित लोग आज भी सिर्फ कागजों और न्यूज़ चैनलों पर ही धर्म स्थलों और संस्कृतियों को संवारने-सहेजने के वादों को दोहराते रहते हैं। आज के समय में जरूरत है, बदलाव के सोच की और नव निर्माण की। जिसको लेकर अनुज हनुमंत जैसे कुछ चुनिंदा लोग आज भी सिस्टम और हालात से एक लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं।
देखिए कब तक सोमनाथ मंदिर के बिखरे हुए पत्थरों को न्याय मिलता है! इंतजार रहेगा..

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