सवाल- क्या किसानों का आंदोलन सही है ?
जवाब- संविधान के दायरे में शांतिपूर्ण तरीके से किए जाने वाला हर आंदोलन सही है..अगर किसानों को लग रहा है कि नए कानून से उन्हें नुकसान हो रहा है तो आंदोलन करना बनता है

सवाल- क्या किसानों को दिल्ली आने से रोकने की जो कोशिश की गई..वो सही थी ?
जवाब- हां..क्योंकि सरकार और इंसान की सोच अलग होती है..इंसान कई बार मानवीयता को ध्यान में रखकर सोचता है और सरकार को कई बार कानून-व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं…फिर चाहे वो हाथरस में आधी रात को शव जलाना हो या फिर किसानों को रोकने की कोशिश करना..हाथरस में सरकार बस इतना कर सकती थी कि लड़की के अंतिम संस्कार के वक्त उसके परिवार को मौके पर मौजूद रहने देती..जहां तक आधी रात को अंतिम संस्कार करने की बात है..अगर सरकार वैसा नहीं करती तो बहुत तमाशा होता..शव को जलाने नहीं दिया जाता..जबरदस्त हिंसा होती..ठीक इसी तरह किसानों को भी दिल्ली के रामलीला मैदान या जंतर-मंतर नहीं आने देना का फैसला सही है..क्योंकि ये किसान…आंदोलन करने नहीं बल्कि शाहीनबाग-2 की तर्ज पर दिल्ली के किसी इलाके को बंधक बनाने आ रहे थे..6 महीने के राशन-पानी के साथ दिल्ली आना ही दर्शाता है कि इरादा क्या था ? एक बार अगर इन्हें रामलीला मैदान या फिर जंतर-मंतर में धरने-प्रदर्शन की इजाजत दी जाती तो फिर यहां से दिल्ली को आसानी से बंधक बनाया जा सकता है..क्योंकि ये दोनों ही इलाके घनी आबादी वाले क्षेत्र में हैं…वीआईपी इलाके में हैं..इस आंदोलन के बहाने एंटी सीएए प्रोटेस्ट वाले भी मोर्चा खोल देते..शाहीनबाग की जली सरकार को पूरा हक है कि वो किसान आंदोलन की छांछ भी फूंक-फूंककर पीये..आज ही किसान संगठन के अध्यक्ष का बयान सुन रहा था..कह रहा था कि दिल्ली के पांचों एंट्री प्वाइंट बंद कर देंगे..क्या ये आंदोलन का तरीका है ?

सवाल- क्या मौजूदा किसान आंदोलन सफल होगा ?
जवाब- नहीं…क्योंकि अब ये किसान आंदोलन नहीं रहा..इस आंदोलन को हाईजैक कर लिया गया है..अब ये ताकत दिखाने का जरिया बन गया है..अब बात कांग्रेस और अकाली दल के हाथ से भी बाहर निकल चुकी है..एंटी सीएए प्रोटेस्ट में मुंह की खा चुके कुछ गद्दार अब किसान आंदोलन के बहाने इसे हिंदू बनाम सिख की जंग बनाने की कोशिश कर रहे हैं..सरकार की अब तक की प्रतिक्रिया सयंमित है…वो इस आंदोलन को लेबल करने से बच रही है..बीजेपी आईटी सेल/भक्तों को भी चाहिए कि वो किसान आंदोलन की आड़ में देशविरोधी काम कर रहे कुछ Black Sheeps को पहचाने और उनका पर्दाफाश करे लेकिन अति उत्साह में पूरी सिख कौम को खालिस्तानी कहने से बचे..जरनैल सिंह भिंडरावले और उसके दौर को अगर छोड़ दिया जाए तो देश के प्रति..हिंदू धर्म के प्रति सिखों की निष्ठा संदेह से परे रही है..लेकिन जिनकी निष्ठा देश को लेकर संदिग्ध रही है..वो लोग अब इस आंदोलन के बहाने अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे..इसलिए किसान आंदोलन को हिंदू Vs सिख या भारत Vs खालिस्तान नहीं होने देना है

सवाल- पंजाब के किसान ही नए कृषि कानून का विरोध क्यों कर रहे हैं ?
जवाब- क्योंकि पंजाब में अढ़ातियों का..बिचौलियों का..राजनीतिक दलों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क है..जो खेती-किसानी के बहाने करोड़ों के वारे-न्यारे करता है..किसानी से होने वाली आय पर टैक्स भी नहीं देना पड़ता..इसलिए वो नहीं चाहते कि किसानी पर उनकी पकड़ खत्म हो..

सवाल- क्या पंजाब के किसानों को महान बताने के चक्कर में दूसरे राज्यों के किसानों का अपमान करना सही है ?
जवाब- नहीं..पिछले 3-4 दिन से ऐसी कई पोस्ट और लेख देखे-पढ़े..जिसमें कहा गया है कि असली किसान तो पंजाब और हरियाणा के हैं..बाकी राज्यों के किसान मजदूरी में ही खुश है इसलिए वो आंदोलन में शामिल नहीं हो रहे..पहली बात..पंजाब और हरियाणा के किसान सिर्फ गेहूं और धान उगाते हैं..और सिर्फ यही फसल उगाना खेती नहीं है..गेहूं और धान के अलावा कई तरह की सब्जियों और फलों की भी खेती होती..वो सब भी किसान हैं..फिर चाहे वो महाराष्ट्र के किसान हों या फिर दक्षिण इंडिया के…दूसरी बात- पंजाब और हरियाणा के किसान भले ही ज्यादा गेहूं और धान उगाते हों लेकिन वो सबसे निम्नतम क्वालिटी का होता है..कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल से पंजाब के किसानों की फसल ज़हरीली होती है…गूगल में जाकर चेक कर लीजिए..मध्यप्रदेश का गेहूं सबसे उच्चतम क्वालिटी का होता है..छत्तीसगढ़ का चावल सबसे अच्छा होता है..इसी तरह फल हो या फिर सब्जी…क्वालिटी के मामले में पंजाब सबसे नीचे आता है..इसलिए ये कहना है कि पंजाब के किसान महान है..बाकी राज्यों के चिरकुट..तो फिर ये बाकी किसानों के साथ अन्याय होगा..किसान चाहे कहीं का भी हो सम्मान का अधिकारी है..

सवाल – तो क्या किसान बनाम सरकार का ये स्टेलमेट (टकराव) बना रहेगा
जवाब- कुछ महीनों तक को बना रहेगा..क्योंकि सरकार तो पीछे हटेगी नहीं…पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों के किसान विरोध नहीं कर रहे..पंजाब में बीजेपी का पॉलिटिकल स्टेक बहुत ज्यादा नहीं है..इसलिए सरकार..पंजाब के किसानों की नाराज़गी मोल लेने का रिस्क उठा सकती है..आंदोलन कर रहे किसान भी फिलहाल पीछे नहीं हटेंगे क्योंकि जैसा कि मैंने पहले कहा इस आंदोलन को अब हाईजैक कर लिया गया है..किसान आंदोलन को शाहीनबाग-2 बनाने की पूरी प्लानिंग हो गई है..जो लोग एंटी सीएए प्रोटेस्ट के पीछे थे..उन्होंने अब अपने सारे रिसोर्सेज इस आंदोलन के पीछे लगा दिए हैं…आंदोलन को फंड करने के लिए पैसों की कमी रहेगी नहीं..अगले 4-5 महीने तक फसल पकनी नहीं है..अब अगली फसल मार्च-अप्रैल में ही तैयार होगी..इसलिए किसानों के पास वक्त भी है और आंदोलन करने के लिए पैसा भी मिलता रहेगा..

सवाल- अब सवाल ये है कि आंदोलन खत्म कैसे होगा ?
जवाब- सरकार को लगातार उन लोगों को एक्सपोज करते रहना होगा..जो इस आंदोलन की आड़ में अपना देशविरोधी एजेंडा चला रहे हैं..साथ ही सरकार को ये कोशिश करनी होगी कि वो अपने नेताओं और आईटी सेल को कहे कि अति-उत्साह में इसे हिंदू बनाम सिख और भारत बनाम खालिस्तान ना बनाएं..

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