कॉन्वेंट विद्यालयों में विशिष्ट शर्तें रखकर शिक्षा दी जाती है; परंतु कॉन्वेंट विद्यालयों में शिक्षा लेने वाले बहुतांश बच्चे हिन्दू होते हैं । कॉन्वेंट विद्यालयों में बहुतांश विद्यार्थी हिन्दू होने से शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें हिन्दू संस्कृति का अंतर्भाव हो । इसमें यदि भेदभाव हो, तो हिन्दू बच्चों के अभिभावकों को उस विद्यालय के प्रशासन से इसका उत्तर मांगना चाहिए । कॉन्वेंट में पढे विद्यार्थी हिन्दू संस्कृति से दूर जा रहे हैं । अभिभावकों को अपनी यह गलत धारणा दूर करनी होगी कि कॉन्वेंट विद्यालयों में पढ़ा हुआ विद्यार्थी ही सफल बनेगा, अपितु उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ‘विद्यार्थी संस्कारी होने पर ही सफल होगा’, यह ध्यान में रखना चाहिए । आधुनिक शिक्षा देने के साथ ही संस्कारों की शिक्षा देनेवाले विद्यालय ही अपने बच्चों के लिए चुनें, ऐसा आवाहन प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के ‘रुद्रप्रयाग विद्यामंदिर’की मुख्याध्यापिका गौरी द्विवेदी ने किया । वे हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘कॉन्वेंट विद्यालयों का विरोध बिंदी को है या हिन्दू धर्म को ?’ इस विषय पर आयोजित विशेष संवाद में बोल रहे थे ।
इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के पुणे के समन्वयक श्री. नागेश जोशी बोले, झारखंड में कॉन्वेंट विद्यालय में माथे पर बिंदी लगाने से शिक्षिका ने थप्पड मारा । इस अपमान के कारण उषा कुमारी नामक हिन्दू विद्यार्थिनी ने आत्महत्या कर ली । यह प्रताड़ना का कोई पहला उदाहरण नहीं है । इससे पूर्व देशभर में विविध कॉन्वेंट विद्यालयों में हिन्दू विद्यार्थियों के साथ ऐसा हो रहा है । भारत स्वतंत्र होने पर हिन्दू विद्यार्थियों को विद्यालयों से अपने हिन्दू धर्म की शिक्षा देना आरंभ करना चाहिए था; परंतु ऐसा नहीं हुआ । आज अनेक कॉन्वेंट विद्यालयों से केवल ईसाई पंथ की शिक्षा दी जाती है । हिन्दू धर्म पर टीका–टिप्पणी की जाती है । इन कॉन्वेंट विद्यालयों से भी हिन्दू विद्यार्थियों के धर्मांतरण का प्रयत्न किया जाता है । अत: कॉन्वेंट विद्यालय भी हिन्दुओं के धर्मांतर के केंद्र हो रहे हैं । बहुतांश कॉन्वेंट विद्यालयों में 50 प्रतिशत से भी अधिक हिन्दू विद्यार्थी पढते हैं । इसलिए कॉन्वेंट विद्यालयों का ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ सरकार को निरस्त कर देना चाहिए ।
धोरी, झारखंड में ‘कस्तूरबा विद्यानिकेतन’की संयुक्त अध्यक्ष डॉ. पूजा बोलीं, कॉन्वेंट विद्यालयों में पढे विद्यार्थी विदेशी संस्कृति का अनुकरण करते हैं । ऐसा देखा गया है कि कॉन्वेंट विद्यालयों में पढनेवाले बच्चे निराशा की बलि चढ जाते हैं । कॉन्वेंट विद्यालयों में जानेवाले बच्चे अपनी भारतीय संस्कृति भूल जाते हैं; इसके विपरीत सनातन हिन्दू धर्म की शिक्षा एवं आचरण करने से वे आत्मबल से युक्त होते हैं । ऐसे बच्चे निराशा के शिकार नहीं होते । यह ध्यान में रखना चाहिए । कॉन्वेंट के अतिरिक्त अनेक विद्यालयों में अंग्रेजी भाषा भी अच्छी सिखाई जाती है । हमारे देश के विद्या भारती विद्यालयों में ये प्रयत्न शुरू हैं ।
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