प्रशांत किशोर राजनीतिक पार्टियों को अपनी रणनीति से जिताने का दम भरते हैं, 2014 में पीएम मोदी और 2015 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की जीत के बाद वो खुद को बहुत बड़ा चुनावी रणनीतिज्ञ मानने लगे हैं। इसलिए वो बंगाल में गिरते मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक किले को बचाने पहुंच गए हैं, लेकिन असल में वो टीएमसी के लिए ही मुसीबत का सबब बन गए हैं और उनके ही कैंपेन के नतीजे ये बता रहे हैं कि बंगाल में ममता दीदी की कुर्सी का जाना अब तय हो गया है। इससे न केवल ममता बनर्जी की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी बल्कि पीके की असफलता भी उजागर होगी।

ममता बनर्जी के कई बड़े नेता उनसे अंदरखाने नाराज चल रहे हैं। सुवेंदु अधिकारी के बाद उसे ही एक और नेता सामने आए हैं जो है मिहिर गोस्वामी। उन्होंने अपने एक पोस्ट में कहा, “अब ये ममता दीदी की पार्टी नहीं रही है। ये अब उन लोगों की पार्टी है, जो जी हुजूरी करते हैं।” गोस्वामी के बीजेपी में जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। उनकी इन बातों को एक अन्य बड़े नेता और विधायक जगदीश चंद्रा का समर्थन भी मिला है। उन्होंने कहा, “पार्टी में अब वो शख्स सारे निर्णय ले रहा है जो कि पिछले चुनावों में बीजेपी को जितवा रहा था।” चंद्रा का सीधा निशाना प्रशांत किशोर की तरफ ही था।

फूट के जिम्मेदार पीके

इतना ही नहीं प्रशांत किशोर को अब मुर्शिदाबाद से भी चुनौती मिली है जो कि हरिहर पारा के विधायक नियामत शेख ने दी है। एक सार्वजनिक रैली के दौरान उन्होंने कहा, “सारे फसाद और अधिकारी के टीएमसी से जाने की मुख्य वजह केवल प्रशांत किशोर है।” ये बेहद ही दिलचस्प बात है कि प्रशांत किशोर टीएमसी को जिताने गए हैं और उनकी ही आलोचना टीएमसी वाले ही करने लगे हैं। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ये मानने लगे हैं कि पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णय ममता दीदी की जगह पीके ले रहे हैं, इससे पार्टी में फूट की स्थिति बन रही है और पीके ही पार्टी में फूट की सबसे बड़ी वजह के रुप में उभर कर सामने आए हैं।

प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में 2021 चुनाव को देखते हुए ममता बनर्जी की छवि सुधारने निकले थे, लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि टीएमसी के टूटने की मुख्य वजह प्रशांत किशोर बन गए हैं। पीके ममता के लिए लगातार कैंपेन चला रहे हैं, लेकिन उनके अपने ही कैंपेन ममता दीदी के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं। पीके का एक ऐसा ही कैंपेन था जिसका नाम “दीदी को बोलो” था। इसके जरिए प्लानिंग थी कि बंगाल की जनता सीधे सीएम ममता से बात करेगी, लेकिन बंगाल की जनता उल्टा ममता से ही सवाल पूछने लगी है और इसके चलते पीके का ये कैंपेन फ्लॉप रहा था। इस कैंपेन में लोग बीजेपी को समर्थन देने की बात करने लगे।

हिंदुत्व का ढोंग

बंगाल में ममता जिस तरह से दुर्गा पूजा पंडालों के आयोजकों को पैसा देने की बात करती है, वो असल में प्रशांत किशोर के चुनावी एजेंडे की उपज ही है। पीके इसके जरिए टीएमसी की हिंदू विरोधी छवि को खत्म करना चाहते थे। हालांकि उनको इस मुद्दे पर झटका ही मिला क्योंकि इस बार कोलकाता हाईकोर्ट ने इसे गलत ठहरा दिया। पीके के लिए दिक्कत ये है कि बंगाल का बहुसंख्यक समाज जानता है कि कौन ढोंग कर रहा है और क्या असलियत है।

इसके अलावा बंगाल की ही सांसद नुसरत जहां जिस तरह से बार-बार हिंदू रिति-रिवाजों के साथ मीडिया में पूजा करती दिखाई देती थीं वो शक पैदा करती थीं। उनकी ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की जाती थी जिससे लोगों को दिखाया जा सके कि टीएमसी और उसके सांसद हिंदुत्व समर्थक भी है लेकिन पीके का ये एजेंडा उस समय फेल हुआ जब नुसरत के खिलाफ ही फतवे निकलने लगे। इसका मतलब साफ था कि मुस्लिम समाज नुसरत के इस भगवाकरण से खुश नहीं था। उनके इस कदम से टीएमसी का ही कोर मुस्लिम वोटर नाराज हुआ है और ये पीके के लिए किसी झटके से कम नहीं था।वे बहुसंख्यकों के समर्थन की कवायद में जुटे थे लेकिन अपने अल्पसंख्यक कोर वोटरों को नाराज कर बैठे।

पीके के सेल्फ गोल

प्रशांत किशोर की ये सारी कोशिशें 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले ही शुरू हो गईं थीं। वो बीजेपी को हराने के लिए ममता दीदी की पार्टी टीएमसी के कैंपेन तो चलाने लगे लेकिन इसका नुकसान ममता दीदी को हुआ, क्योंकि ममता की लोकप्रियता बढ़ने के बजाय घटना शुरू हो गई, लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत इसका उदाहरण है। ऐसे में टीएमसी में अंदर खाने भी पीके के खिलाफ विद्रोह का जन्म हो गया है और उसी विरोध के कारण अब पार्टी में फूट पड़ती नजर आ रही है।

प्रशांत किशोर जो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पूरी तरह फ्लॉप हुए, उसके बाद जेडीयू में चले गए, लेकिन जब उन्हें वहां भी खास तवज्जो नहीं मिली, तो वो ममता दीदी के पास उन्हें जिताने का नारा लेकर बंगाल चले गए। आज बंगाल में टीएमसी की स्थिति ये है कि जो टीएमसी सबसे मजबूत दिखती थी, वो दिन-ब-दिन सियासत में कमजोर हो रही है और इस पतन का कारण प्रशांत किशोर साबित हो रहे हैं, जिसके कारण अब ये कहा जाने लगा है कि प्रशांत किशोर अब ममता की हार के साथ ही एक असफल रणनीतिज्ञ साबित होंगे और इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा बेइज्जती ममता बनर्जी की ही होगी।

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