★|| ऊँ श्री परमात्मने नमः ||★

◆ गीता मानवमात्र का धर्मशास्त्र है ◆
– श्रीकृष्णकालीन महर्षि वेदव्यास

महर्षि वेदव्यास से पूर्व कोई भी शास्त्र पुस्तक के रूप में उपलब्ध नहीं था। श्रुतज्ञान की इस परंपरा को तोड़ते हुए उन्होंने चार वेद, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, भागवत एवं गीता जैसे- ग्रंथों में पूर्व संचित भौतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञानराशि को संकलित कर अंत में स्वयं ही निर्णय दिया कि ‘सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः’- सारे वेदों के प्राण उपनिषदों का भी सार है गीता, जिसे गोपाल श्रीकृष्ण ने दूहा और अशांत जीव को परमात्मा के दर्शन और साधन की स्थिति से शाश्वत शांति की स्थिति तक पहुंचाया। उन महापुरुष ने अपनी कृतियों में से गीता को शास्त्र की संज्ञा देते हुए स्तुति की और कहा- ‘गीता सुगीता कर्तव्या’ गीता भली प्रकार मनन करके हृदय में धारण करने योग्य है, जो भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निःसृत वाणी है फिर अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवश्यकता?
गीता का सारांश इस श्लोक से प्रकट होता है- ‘एकं शास्त्रं देवकीपुत्र गीतम्, एको देवो देवकीपुत्र एव। एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि, कर्माप्येको तस्य देवस्य सेवा।’ अर्थात् एक ही शास्त्र है जो देवकीपुत्र भगवान् ने श्रीमुख से गायन किया- गीता! एक ही प्राप्त करने योग्य देव है। उस गायन में जो सत्य बताया- आत्मा! सिवाय आत्मा के कुछ भी शाश्वत नहीं है। उस गायन में उन महायोगेश्वर ने क्या जपने के लिए कहा? ओम्! अर्जुन! ओम् अक्षय परमात्मा का नाम है। उसका जप कर और ध्यान में धर। एक ही कर्म है गीता में वर्णित परमदेव, एक परमात्मा की सेवा। उन्हें श्रद्धा से अपने हृदय में धारण करो। अस्तु, आरंभ से ही गीता आपका शास्त्र रहा है। भगवान् श्रीकृष्ण के हजारों वर्ष पश्चात् परवर्ती जिन महापुरुषों ने एक ईश्वर को सत्य बताया, गीता के ही संदेशवाहक हैं। ईश्वर से ही लौकिक, पारलौकिक सुखों की कामना, ईश्वर से डरना, अन्य किसी को ईश्वर न मानना- यहां तक तो सभी महापुरुषों ने बताया, किंतु ईश्वरीय साधना, ईश्वर तक की दूरी तय करना- यह केवल गीता में ही सांगोपांग क्रमबद्ध सुरक्षित है। देखिए- ‘यथार्थ गीता’! गीता से सुख, शांति, समृद्धि तो मिलती ही है किंतु यह अक्षय, अनामय परमपद भी देती है।
यद्यपि विश्व में सर्वत्र गीता का समादर है फिर भी यह किसी मजहब या संप्रदाय का साहित्य नहीं बन सका, क्योंकि संप्रदाय किसी न किसी रूढ़ि से जकड़े हैं। भारत में प्रकट हुई गीता विश्व- मनीषा की धरोहर है। गीता आध्यात्मिक देश भारत एवं नेपाल की आध्यात्मिक धरोहर है। अतः इसे राष्ट्रीय शास्त्र का मान देकर ऊंच-नीच, भेदभाव तथा कलह परंपरा से पीड़ित विश्व की संपूर्ण जनता को शांति देने का सत्प्रयास करें। .

★ ऊँ श्री सद्गुरूदेवाय नमः ★

[ यथार्थगीता के प्रणेता परम पूज्य सद्गुरुश्री द्वारा विरचित ‘प्रेरणा श्रोत’ से लोकहित में साभार प्रस्तुत! ]

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