गुरु की महिमा अंनत
इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी तुलना श्री गुरु से की जा सके । गुरु की तुलना यदि सागर से करें तो सागर में लवणता है; सागर में ज्वार हैं; लेकिन सद्गुरु अखंड आनंद है। सद्गुरु की तुलना यदि कल्पवृक्ष से करें तो कल्पवृक्ष वह प्रदान करता है जिसकी हम कल्पना करते हैं ; लेकिन सद्गुरु शिष्य के विचार को मिटा देते हैं और उसे एक अकल्पनीय वस्तु की प्राप्ति करवा देते हैं; यह वाणी भी गुरु का वर्णन करने में असमर्थ है।’
गुरु की महिमा का वर्णन संतों ने इस प्रकार किया है :-
- पिता केवल पुत्र को जन्म देता है, जबकि गुरुउसेजन्म और मृत्यु चक्र से छुडाते हैं; इसलिए गुरु को पिता से श्रेष्ठ माना गया है। – संत तुकाराम
- एक बद्ध जीव दूसरे बद्ध जीव का उद्धार नहीं कर सकता । गुरुस्वयं मुक्त होते हैं, इसलिए शिष्य का उद्धार कर सकते है। – संत तुकाराम
- सद्गुरुके सिवाय कोई आश्रय नहीं इसलिए पहले उनके चरण पकड़ने चाहिए । वे तुरंत अपने जैसा बना देते हैं । इसके लिए उन्हें कोई समय नहीं लगता । सद्गुरुको लोहा व पारस की उपमा भी नहीं दे सकते। सद्गुरु-महिमा अनमोल है । तुकाराम महाराज जी कहते है कि ऐसे लोग अंधे होते हैं जो खरे ईश्वर को भूल जाते हैं ।
- भगवान कृष्णने भी कहा है कि गुरु की भक्ति भगवान की भक्ति से श्रेष्ठ है। मुझे अपने भक्त प्रिय हैं परंतु गुरु भक्त बहुत अधिक प्रिय हैं । – श्री एकनाथी भागवत अर्थात भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘मैं अपने भक्तों से अधिक गुरु भक्त को प्रेम करता हूं।
- ‘मुझे जो चाहिए था वो एक ही स्थान पर, श्री तुकामाई के पास मिला । मुझे निर्गुण का साक्षात्कार, सगुण का अपार प्रेम और अखंड नाम एकत्र चाहिए था , ये सब उनके पास मिल गया । – श्री ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज’
- श्री शंकराचार्य जीने कहा है, ‘इस त्रिभुवन में कहीं भी सद्गुरु को सुशोभित कर सके ऐसी उपमा नहीं है । उनकी तुलना पारस से भी की जाए तो वह भी कम होगी; क्योंकि पारस लोहे को सोना बना देता है, परंतु वह उसे अपना पारसत्व नहीं दे सकता ।’ समर्थ रामदास स्वामी जी ने दास बोध में भी कहा है, शिष्य को गुरुत्व प्राप्त होता है । स्वर्ण से स्वर्ण नहीं बनता, इसलिए सद्गुरु को पारस की उपमा नहीं दिया जा सकता ।
- यदि हम गुरुकी उपमा कल्पतरु से करें तो कल्पतरु, कल्पना करने के बाद ही इच्छित वस्तु प्रदान करती है, परंतु श्री गुरु कल्पना करने से पूर्व ही इच्छा पूर्ण करते हैं । श्रीगुरु कामधेनु ही है । – श्री गुरुचरित्र
चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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