नवंबर 1966 को गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून बनाने की मांग के लिए संसद के बाहर जुटी साधु-संतों की भीड़ पर गोलियां चलाई गई थीं। इस गोलीबारी में कितने साधुओं की मौत हुई थी, इस पर आज भी विवाद है। यह संख्या आठ-दस से लेकर सैकड़ों के बीच बताई जाती है, लेकिन यह भारतीय इतिहास की एक बड़ी घटना थी, जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर दी थी।

आइए जानते हैं क्या था पूरा मामला:
पचास के दशक के प्रसिद्ध संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून की मांग कर रहे थे लेकिन केंद्र सरकार इस तरह का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी परिणाम स्वरूप संतों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था। उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर इकट्ठे होने लगे।

संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरीकेडिंग कर दी गई थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह खतरा लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरीकेडिंग तोड़कर संसद पर हमला कर सकती है। कथित रुप से इस खतरे को टालने के लिए ही पुलिस को संतों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को इस बात का अहसास था कि वे बातचीत से हालात को संभाल लेंगे, लेकिन मामला हाथ से निकल गया और गोलीबारी तक पहुंच गई। नंदा को इस घटना के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। फिर भी सवाल यही है कि गौ रक्षकों के पास ना ही हथियार थे ना ही वह हिंसक आंदोलन कर रहे थे।
अगर इस घटना को हाल के दिनों में नागरिकता कानून के हिसाब से तुलना की जाय तो आपको पता लगेगा उस वक्त की इंदिरा गांधी की सरकार एक दिन के आंदोलन में कई लाशें बिछा दी थी पर नागरिकता कानून जो सदन में संविधान अनुसार पारित हुआ उसके वाबजूद 3 महीनों से भी ज्यादा एक अराजक आंदोलन हुआ और अंततः दिल्ली के दंगो पर जा कर भी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कोरोना के कारण बहुत मुश्किल से आंदोलन को समाप्त किया गया।
फर्क आप समझ सकते हैं उस वक्त की इंदिरा गांधी की सरकार और मौजूदा नरेंद्र मोदी की सरकार में।

इस घटना के पीछे कुछ लोग तत्कालीन राजनीति को भी जिम्मेदार बताते हैं। जानकारी के मुताबिक इंदिरा गांधी को सत्ता संभाले कुछ ही समय हुआ था। कई दूसरे दलों के नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस के भी कुछ लोग उनके नेतृत्व से असहज थे, स्वामी करपात्री जी महाराज के इस आंदोलन को आरएसएस और जनसंघ का भी पूरा समर्थन हासिल था।

हरियाणा के करनाल के सांसद स्वामी रामेश्वरानंद इस आंदोलन का पूरा समर्थन कर रहे थे। आंदोलन के बाद कई सालों तक संघ ने इस मुद्दे को उठाया , लेकिन यह एक बड़ा मुद्दा नहीं बन सका। इस घटना की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई थी। इस कमेटी में कई हिंदूवादी नेता शामिल थे, लेकिन इसका भी कोई बड़ा परिणाम नहीं निकला। बाद में इस कमेटी को भंग कर दिया गया।

देश में कई नरसंहार हुए हैं जिसमे गांधी हत्या के बाद महाराष्ट्र में ब्राह्मणों का नरसंहार, इंदिरा गांधी हत्या के बाद सिक्ख नरसंहार, कश्मीर में पंडितों का नरसंहार।
कितनों को सजा मिली आज तक।
क्या इस देश का आम नागरिक होने के नाते हमारी जिम्मेदारी नहीं कि हम सवाल पूछ सकें।
ना ही मै नेता हूं ना ही कानून का जानकर पर मेरा यह सवाल है उन सभी से जो छाती पीट पीट कर कहते हैं मैं बुद्धजीवी हूं।
बुद्धजीवियों है कोई जवाब तुम्हारे पास।

जन जन की बात
अमित कुमार के साथ।

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