भारत ही नही पूरे विश्व मे काशी की अपनी एक पहचान है। इस नगर की अपनी ही एक अनूठी संस्कृति है। बनारस के गंगा के घाट , विश्वनाथ ,संकटमोचन या हो यहाँ का खानपान सबकी अपनी विशेषताएं हैं। पर यह कोई साधारण सी नगरी नही है। यह काशी है, विश्वनाथ की नगरी है, गंगा की नगरी है। गंगा मैया है , पापों से मुक्ति देने वाली जीवनदायिनी गंगा। पर आज वो आस्था नही दिखती ।

गंगा के हर घाट का अपना महत्व और इतिहास है । पर क्या आज घाट मात्र पिकनिकस्पॉट बन कर नही राह गए है? आज गंगा आरती में महत्वपूर्ण यह नही की आप पूरी श्रद्धा से मंत्रो को सुने, आरती को सुने और उस समय के लिए बिल्कुल शांतचित्त होकर माँ से प्राथना करे परंतु आरती के समय होड़ सी लग जाती है की कौन ज्यादा पास जाकर आरती को अपने कैमरा से कैद करेगा। हम उस भक्तिमय वातावरण को इस होड़ में खो देते है।

आज भी गंगा किनारे चित्रकार जब चित्र बनाते है तो अपने अंदर उस दृश्य को समाहित कर लेते है पर आधुनिक समय के इन उपकरणों में यह संभव ही नही है। हम व्यंजनों के चित्रों को पूरे जगत को बाटने में उसके ताज़ा स्वाद और सुगंध को खो बैठते है। हम गंगा किनारे बैठके भी उसी होड़ में लगे रहते है। और गंगा को छूकर आने वाली उस हवा के स्पर्श का हमे आभास ही नही होता।

मैं इस पक्ष के बिल्कुल भी विरुद्ध नही हूँ , उन कैमरा से निकले गए चित्रों का महत्व है परंतु उस कारण हम प्रत्यक्ष में आनंद न ले पाए तो वह सब चित्र व्यर्थ ही होंगे। और ये काशी ही नही हर स्थल की कहानी है। हमे मन से जुड़ने की कला सीखनी होगी। 

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