कठ उपनिषद में वर्णित नचिकेता की कहानी को मेरे द्वारा कविता के माध्यम से कहने का प्रयास किया गया है. किस प्रकार एक बालक अपने पिता के वचन को पूर्ण करने हेतु मृत्यु के समक्ष जाकर आत्मा से सम्बंधित रहस्यों को जानने का प्रयास कर उसमें सफलता प्राप्त करता है.
करने पूर्ण पिता का वचन,
चला बालक नचिकेता यम की शरण,
यह था पिता का दिया श्राप,
जिस पर था उनको पश्चाताप!
आज्ञाकारी था, जिज्ञासू भी,
थी दृढ़ता अपरिमित सी,
जा पहुंचा वह यम के द्वार,
कर पूर्ण यात्रा जो थी दुश्वार!
निडर खड़ा अविचल होकर,
धीर रहा यम को न पाकर,
तीन दिवस की गहन प्रतीक्षा,
तीव्र थी यम के दर्शन की इच्छा!
जब हुआ मृत्यु से साक्षात्कार,
नचिकेता था निर्भीक अपार,
किये अस्वीकार यम के दिए अन्य वर,
नहीं चाहिए था आत्मज्ञान से कुछ कमतर!
उसकी थी अगाध लगन,
मृत्यु को झुका दिया अत्यंत,
यम ने दिया समस्त अनंत ज्ञान,
नचिकेता की उत्कट जिज्ञासा को प्रणाम!!
-निधि मिश्रा
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