यूपी बिहार सहित देश मे प्रताड़ित हो रही जर्नल कैटेगिरी ने जीत के साथ बजाया चुनावी बिगुल, आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति ने दिया था विजयश्री का आशीर्वाद :
बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों के उड़ गए होश : जनचर्चा
यूपी बिहार सहित देश मे प्रताड़ित हो रही जर्नल कैटेगिरी के युवाओं ने व्यवस्था परिवर्तन का जिम्मा अपने हाथों में लेने का फैसला लिया।
देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं और 72 वर्ष बीत चुके हैं भारत के संविधान को लागू हुए। इस दौरान कई सरकारें आई और गई, लेकिन सामन्यवर्ग की पीड़ा को समझने का किसी ने प्रयास तक नही किया। एक गहरे षड्यंत्र के तहत सरकारों ने सामन्यवर्ग से विभिन्न तरह के टैक्स लगा कर इक्कठे किए धन को अनुसूचित जाती और अल्पसंख्यकों को सहूलियतें देने के नाम पर खर्च किया। जिससे सामान्य वर्ग के मध्यमवर्गीय व गरीब वर्गीय बुरी तरह से प्रभावित हुए। बात यहीं तक सीमित नही रही, सरकारों ने देश के सामन्यवर्ग को कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी Sc St एक्ट के नाम पर प्रताड़ित करने के लिए नए नए कानून बना डाले। यह होता देख सामन्यवर्ग अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगा, क्योंकि सामन्यवर्ग से संबंधित नेताओं ने भी सामन्यवर्ग को ऊंचा उठाने की बजाए उनसे वोट हासिल कर सत्ता के नशे में उनके खिलाफ हो रहे लगातार षड्यंत्रों को होने दिया।
इन प्रताड़नाओं को देखते हुए सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता अभयकांत मिश्रा ने सामन्यवर्ग की आवाज बुलंद करनी शुरू की। देखते ही देखते देश भर का सामन्यवर्ग अधिवक्ता अभयकांत मिश्रा के नेतृत्व में चलने वाली “आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति” के बैनर तले एकजुट होने लगा और आरक्षण व ScSt एक्ट के विरुद्ध जमीनी स्तर से लेकर सविधानकी लड़ाई शुरू की।
लेकिन सामन्यवर्ग को उस वक़्त गहरा धक्का लगा जब समिति द्वारा 2018 में ScSt एक्ट के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में बड़ी जंग जीती, जिसके परिणाम स्वरूप सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैंसला आया कि ScSt एक्ट लगने से पहले उच्चाधिकारी द्वारा जांच की जाएगी, किंतु देश की तथाकथित भाजपा शासित केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सर्वोच्च न्यायालय का फैंसला पलट दिया। प्रधानमंत्री नरिंदर मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार ने नए कानून में ScSt एक्ट लगने से पहले होने वाली जांच ही बंद करवादी। नतीजन देश भर में सामन्यवर्ग पर ScSt के मुकद्दमों की बाढ़ आ गई। यहां आपको बतादें की आंकड़ों के अनुसार देश मे लगभग 75 प्रतिशत ScSt एक्ट के मुकद्दमे झूठे पाए गए। लेकिन मोदी सरकार द्वारा बनाए कानून में झूठे पाए जाने वाले ScSt एक्ट के मुकद्दमों में सामन्यवर्ग के निर्दोष व्यक्ति द्वारा पलट कर आरोप लगाने वाले पर कार्यवाही करवाने का प्रावधन ही खत्म कर दिया। जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश बिहार सहित विभिन्न राज्य में ScSt एक्ट के मुक्कदमों की तेजी ने सामन्यवर्ग को हिलाकर रख दिया।
इसके इलावा केंद्र की मोदी सरकार सहित विभिन्न राज्यों की सरकारों ने अनुसूचित जाति के वोट बैंक के लालच में सामन्यवर्ग को दरकिनार कर सर्वोच्च न्यालय में पदोन्नति में आरक्षण लागू करने की मांग रख डाली। जिसके विरुद्ध आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति की लीगल टीम सामन्यवर्ग के हितों की रक्षा हेतु सरकारों से आमने सामने की टक्कर लेने लगी।
यह सब होता देख देश के सामन्यवर्ग ने राजनीतिक पार्टियों का बहिष्कार कर आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश में हर तरह के होने वाले चुनावों में अपने प्रत्याशी निर्दियल उतारने का फैंसला किया।
इसी के चलते बिहार में हुए पंचायती चुनावों में भी आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति ने प्रयोगित तौर पर अपना पूर्ण समर्थन देकर कुछ गांवों में अपने प्रत्याशी पंचायती चुनाव मैदान में उतार दिए। जिसके नतीजे बीती रात ही आए हैं। जिसमे ग्राम पंचायत नारायणपुर प्रखंड रतनी फरीदपुर, जहानाबाद के उम्मीदवार प्रियरंजन कुमार ने सरपंच पद पर शानदार जीत हासिल कर समिति की झोली में डाल दी।
श्रोत : आरक्षण संघर्ष समन्वय समिति।
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