अगर पूरी दुनिया में इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ लामबंदी हो रही है और इस्लाम को इंसानियत के लिए खतरा बताया जा रहा है तो इसमें सबसे ज्यादा दोष इस्लाम के मताबलंबियों और उनके उन धार्मिक नेताओं का है, जिन्होंने समय के अनुसार इस्लाम को बदलने का प्रयास नहीं किया। यदि यही चलता रहा तो फ्रांस से उठी क्रांति आने वाले सालों में पूरे संसार को इस्लाम के खिलाफ लामबंद कर देगा।

फ्रांस में एक शिक्षक की एक जेहादी मानसिकता के मुस्लिम युवक ने गला काटकर हत्या कर दी। उसके कुछ दिन एक बार फिर मुस्लिम जेहादी युवक ने फ्रांस में चर्च में एक महिला की गला काटकर हत्या कर दी और दो लोगों को घायल कर दिया। इन घटनाओं की पूरी दुनिया में कड़ी निंदा की जा रही है। लेकिन दुर्भाग्य से इस्लामिक देश इन घटनाओं की निंदा करने की अपेक्षा इस्लामिक जेहाद को समर्थन दे रहा है। और इसके लिए वे फ्रासिसी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं। आतंकवाद और इस्लाम के बारे बुद्धिजीवी लाख सफाई दें कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है, लेकिन देखे हुए, जाने हुए, अनुभव किए तथ्यों को कोई झुठला सकता है। एक यूरोपीय देश के सांसद संसद में कुरान हाथ में लेते हुए ठीक ही कहते हैं कि उन्हें तो मारने का लाइसेंस मिला हुआ है।

हर पंथ और मजहब यदि समय के अनुसार खुद को बदलता नहीं है तो उसमें लगा जंग, असल में भी जंग में बदल जाता है। और पिछली कई सदियों से यह देखने और अनुभव करने को मिल रहा है। भारत तो कई शताब्दियों से झेल रहा है, लेकिन उदारवाद और बहुसंस्कृतिवाद की बात करने वाला यूरोप भी पिछले कई दशकों से इस्लामिक चरमपंथ का शिकार बन रहा है। फ्रांस का उदाहरण ताजा है। फ्रांस यूरोप का वह देश है जहां सबसे मुस्लिमों की संख्या बहुतायत में है। फ्रांस ने सीरिया और अन्य मुस्लिम मुल्कों से भगाए या भागे मुस्लिमों को उस समय शरण दी थी जब मुस्लिम मुल्क भी उन्हें अपने यहां शरणार्थी बनाने के लिए तैयार नहीं थे। यह इस्लाम का एक अलग ही तरह का चेहरा है। बहरहाल, राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ अत्यधिक उदारवाद हमेशा नुकसान का कारण होता है। फ्रांस इसे भुगत रहा है। और आने वाले कुछ वर्षों में यूरोप के ज्यादातर देश इसका शिकार होंगे। भारत भी रोहिंग्याओं से इसी तरह जूझ रहा है और संभव है आने वाले दिनों में वे लोग भारत के लिए नासूर बन जाए।

भारत ने आतंकवाद से लड़ाई में फ्रांस का समर्थन किया है। भले ही भारत की प्रतिक्रिया देर से थी, लेकिन भारत सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। लेकिन दुर्भाग्य से देश की सबसे पुरानी पार्टी के किसी नुमाइंदे ने इस घटना की निंदा नहीं की है। निंदा करने के लिए उनके फैफड़ों में दम भी नहीं है। भारत में मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने हत्या की निंदा करने के स्थान पर फ्रांस की आलोचना की है। यही उनका इस्लामिक धर्म है। वह अपनी कौम को नई दुनिया से साक्षात ही नहीं करवाना चाहते। उन्हें इस्लाम की जड़ों में चेतना लाने की कोई चिंता नहीं है।  

भारत के इस्लाम मतावलंबियों के लिए फ्रांस की घटना एक अच्छा अवसर हो सकती थी कि वे इस्लाम में आतंकवाद और चरमपंथ का विरोध करते हुए फ्रांस का समर्थन करते, लेकिन इस्लामिक ब्रदरहुड में वे इतने अंधे हैं कि उन्हें इस्लाम के आगे गला रेतने, दुष्कर्म करने, बम फोड़ने जैसी घटनाएं नजर नहीं आती। भारत के मुंबई और भोपाल में हजारों की संख्या में मुस्लिम फ्रांस और वहां के राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन शिक्षक की गला रेत कर हत्या करने की घटना को लेकर उन्हें अफसोस नहीं है। क्या उन लोगों को मित्र देश के खिलाफ इस तरह का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की अनुमति दी जानी चाहिए? इस्लाम की दुर्दशा का अंदाजा उनके नेताओँ की जुबान से पता चलता है। मलेशिया के उम्रदराज पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद जैसे लोग कहते हैं कि मुस्लिमों को लाखों की संख्या में फ्रांस के लोगों को सबक सिखाने की जरूरत है। वह भूल जाते हैं कि खराब दिनों में इस्लामिक मतावलंबियों को शरण देने वाला देश फ्रांस ही है।  

क्या इस्लाम इतना खोखला हो गया है कि उन्हें कोई इंसानियत के पहलुओं के बारे में बताने वाला लीडर नहीं मिल रहा है। दुर्भाग्य की बात है कि महाथिर मोहम्मद को नहीं पता कि वे अपने बयानों से इस्लाम का कितना नुकसान कर चुके हैं। बांग्लादेश की ख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन सच ही कहती हैं कि इस्लाम में रिफॉर्म यानी सुधार की जरूरत है। आज से चौदह सौ पहले की परिस्थितियां और आज की परिस्थितियां में हजारों साल का अंतर आ गया है, लेकिन इस्लाम के अनुयाइयों का रवैया अभी भी जस का तस है। जिस मजहब की नींव ही दूसरों के धर्म, देवताओं और ईश्वरों के अपमान पर आधारित है उसको मानने वाले दूसरों को सिखा रहे है कि हमारे ईष्ट का अपमान न करो। इस्लाम का कलमा क्या कहता है- ला इलाहा इल्लल्लाह यानी नहीं है कोई ईश्वर/ देवता सिवाए अल्लाह के। इस्लाम का पहला ही स्टेटमेंट सारे धर्मों, सभी पंथों, सभी मान्यताओं का अपमान है। अगर इसी तरह हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध अपना कलमा बनाएं और कहें कि नहीं है कोई ईश्वर सिवाय राम के या नहीं है कोई ईश्वर सिवाय नानक के…। आपको कैसा लगेगा। आपके हिसाब से तो कई अल्लाह के सिवाय कोई ईश्वर ही नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि आप किसी अन्य धर्म की किसी भी मान्यता को नहीं मानते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं। लेकिन आप कहते हैं कि हमारा सम्मान करो। यह कैसा अजीब विरोधाभास है? पहले दूसरों का सम्मान करना तो सीखिए। आपको पैगम्बर मोहम्मद की तस्वीर पर आपत्ति है, लेकिन इस्लाम के अनुयायी जो दिन रात दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं का अपमान करते हैं उस पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं।
अगर पूरी दुनिया में इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ लामबंदी हो रही है और इस्लाम को इंसानियत के लिए खतरा बताया जा रहा है तो इसमें सबसे ज्यादा दोष इस्लाम के मताबलंबियों और उनके उन धार्मिक नेताओं का है, जिन्होंने समय के अनुसार इस्लाम को बदलने का प्रयास नहीं किया। यदि यही चलता रहा तो फ्रांस से उठी क्रांति आने वाले सालों में पूरे संसार को इस्लाम के खिलाफ लामबंद कर देगा।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.