हाल फिलहाल में देश भर के अलग अलग हिस्सों में कई घटनाएं सामने आई है।
गौर करने की बात है अगर अपराधी कोई सवर्ण समाज से जुड़ा हो या सनातन से जुड़ा हो तो कांग्रेस , भीम आर्मी, इस्लामिक संगठन कुछ चाटुकार तक मीडिया और कांग्रेस के पिछलग्गू राजनीतिक दल मिलकर जातिवादी एजेंडा चलाते हैं पर अधिकांस घटना जिसमे सवर्णों पर किसी खास समुदाय द्वारा हमला या अपराध होता है तो उस खबर पर चुप्पी साध लेते हैं।
यह तथ्य कई जगह समाचार पत्र और मीडिया में मौजूद है जहां पर जाति विशेष का नाम अपने अपने हित में लिया गया है।
पिछले कुछ महीनों में राजस्थान में दलितों पर जो अत्याचार हुआ है शांतिदूत द्वारा उसपर भीम आर्मी या फिर अन्य राजनीतिक दल किसी ने कोई धर्म या जाति कोण नहीं निकाला पर हाथरस एैसी घटना जो अभी तक प्रेम प्रसंग का मामला दिख रहा है वैसे जांच चल रही है पर उसे जातिवाद से जोड़ दिया कुछ मीडिया हाउस, कांग्रेस , भीम आर्मी और कुछ राजनीतिक दलों ने।
राजस्थान में एक पुजारी को जिन्दा जला दिया गया, कल उनकी मृत्यु हो गई और हत्यारे आतंकवादी सवर्ण समाज से नहीं आते हैं इसलिए मीडिया का ध्यान नहीं आकर्षित कर पाया वो घटना ना ही कांग्रेस की सरकार जो राजस्थान में है उसपर कोई राजनीतिक दल ने कोई हंगामा किया है।
गांधी की हत्या करने वाला अगर आतंकवादी है तो पुजारी की हत्या करने वालों को आतंकवादी ना कहना अनुचित होगा।
पालघर में साधुओं की हत्या हो या कई और जगह प्रदेश सरकारों ने जो काम किया है प्रशाशन के साथ मिलकर वह किसी पाप से कम नहीं।
मैं स्पष्ट कह दू दलित समाज आज भी देश में शांति चाहते हैं और भीम आर्मी का समर्थन नहीं करते हैं।
भीम आर्मी के साजिश के कारण कुछ लोग बहकावे में आ रहे हैं जो कांग्रेस पार्टी और वामपंथी के समर्थन से हो रहा है।
सवर्ण में भी बहुत लोग हैं कुछ मीडिया हाउस में कुछ कांग्रेस, वामपंथ और बॉलीवुड में जो दिन रात नफरत फैलाने का काम करते हैं।
मैं दलित समाज , ओबीसी, सवर्ण ,सिक्ख ,जैन, बौद्ध सभी को एक होकर इस साजिश को नाकाम करने के मकसद से साथ आने का आवाह्न करता हूं पर हमारा तरीका संवैधानिक हो और अहिंसक हो।
पिछले कई दशकों से एक नेरेटिव बनाया गया कि बोलने और आंदोलन करने का हक सिर्फ कुछ समुदाय कुछ राजनीतिक दलों को है पर हम सवाल पूछ दें तो गोडसेवादी, आरएसएस के एजेंट घोषित कर दो।
अब यह नहीं चलने वाला , बहुत हो गया अन्याय अब इस अन्याय को रोकने के लिए क्या विकल्प है उस विकल्प को तलाशना होगा ना की मौन रह कर।

जन जन की बात
अमित कुमार के साथ।

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