यूं तो गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस अपने आप में एक अद्भुत रचना है और हर काल में प्रासंगिक है किन्तु सुंदरकांड के ये कुछ दोहे चौपाई वर्तमान परिस्थिति में सनातन समाज के लिए बहुत ही सटीक है।

हुआ यूं की सीता मां के लंका में होने की सूचना मिलने के उपरांत प्रभु राम अपने स्वभाव के अनुरूप भ्राता लक्ष्मण के साथ लंका जाने के मार्ग का अनुरोध करते हुए विशाल समुद्र के समक्ष अनशन करते हुए वहीं बैठ गए और समुद्र से मार्ग दिए जाने की प्रतीक्षा करने लगे।

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥

अर्थात: तीन दिन का समय व्यतीत हो जाने के पश्चात भी जब समुद्र ने मार्ग नहीं दिया तब श्रीराम को बहुत क्षोभ हुआ और उन्होंने लक्ष्मण से कहा: “बिना भय के अब समुद्र को सद्बुद्धि नहीं आनेवाली।”

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥

“हे लक्ष्मण ! मेरा बाण ले आओ ताकि मैं इस समस्त समुद्र को ही सूखा डालूं । किसी मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रेम व्यवहार, स्वभावतः कंजूस से उदारता व् दर्शन का उपदेश, ममता से ग्रसित मनुष्य के सम्मुख ज्ञान-कथा, अत्यंत लोभी को वैराग्य का ज्ञान, क्रोधी से शांतिवार्ता और वासना से युक्त व्यक्ति से ईश्वर की कथा, इनका फल ऊसर में बीज बोने जैसा होता है, अर्थात यह सम्पूर्णतः व्यर्थ होता है।

ऐसा कह जब प्रभु बाण संधान कर समुद्र पर प्रहार करने को उद्यत हुए, समुद्रदेव अपने और समस्त जीवों के प्राणों की दुहाई देते हुए, श्रीराम से क्षमायाचना करते हुए ब्राह्मण वेश में प्रकट हुए। तब जाकर मार्ग प्रशष्त हुआ और आगे की कहानी तो आपको ज्ञात ही है।

आपको इतनी लम्बी इस भूमिका पढ़ाने का मतलब क्या है ?
ये घटना आज के सनातनियों के लिए कैसे उपयुक्त है ?
आज तो भारत में तथाकथित रूप से हिन्दुओं की सरकार है तो फिर इसका क्या अर्थ है ?

शायद आप में से कई लोग इन सवालों के जवाब जानते भी होंगे लेकिन जो नहीं जानते उनके लिए आगे लिख रहा हू।

भारत का हर वर्ग खासकर गृहस्थ सामान्य (General)मध्यमवर्ग इस समय पेट्रोल, डीजल , गैस व् अन्य सामान्य मंहगाई के कारण बहुत क्षुब्ध है वर्तमान सरकार से। पिछला साल यूं तो हम सब पर भारी रहा है और ऐसे में सरकार की छोटी से छोटी बात भी अन्याय ही लगती है और हमें पूरा हक है उन बातों पर विरोध दर्ज कराने का लेकिन एक ओर जहां सनातनी सिर्फ मंहगाई के मुद्दों पर ध्यान लगा रहे हैं, देख रहे हैं, आवाज़ उठा रहे हैं, वहीं उनका ध्यान देश पर किये जा रहे स्थायी नुकसान से जरा हटता हुआ सा है।

ताजा उदाहरण है राहुल गाँधी जिन्होंने कर्नल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और अन्य स्टाफ के साथ एक साक्षात्कार के दौरान सरकार, चंद बड़े पूँजीपत्ती घरानों पर आरएसएस के साथ सांठ-गाँठ के कपोलकल्पित सिद्धांत को जन्म देते हुए ये कहा की भारत के शैक्षणिक संस्थानों में संघ विचारधारा को सुनियोजित तरीके से थोपा जा रहा है और आरएसएस संचालित विद्यालय (शिशु विद्या मंदिर) पाकिस्तान में मदरसों के समान हैं जो एक अतिवादी विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं और जो राष्ट्र के लिए घातक है।

आपमें से कितने लोग इस पर गंभीर हैं और इसके परिणामों को लेकर चिंतित हैं या समझते भी हैं ?

Rahul Gandhi in an interview blaming RSS for infiltrating educational institutions.

समझिये की ये कितनी खतरनाक साजिश है जिसमें हर शिशु मंदिर के छात्र और RSS समर्थक को RADICALIZED और TERRORIST के बराबर खड़ा किया जा रहा है । अगर यही हाल रहा तो शिशु मंदिर से पढ़कर निकल रहे बच्चों को उच्च शिक्षा और रोजगार अवसरों में पूरे देश में वाम-पंथी संस्थानों में अपने धर्म और संस्कृति के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ेगा | लोग शिशु मंदिरों से मुंह मोड़ लेंगे और आने वाली पीढ़ियां कभी अपने देश का सच्चा इतिहास जान या समझ नहीं पाएंगी। अपनी संस्कृति से नफरत करेंगीं और अपने आप को निकृष्ट मानने लगेंगी और अंततः भारत एक बार फिर मानसिक गुलामी से विदेशी उपनिवेश बन कर रह जायेगा। इसका परिणाम इतना दूरगामी है।

इसी बोई हुयी नफरत के कारण, नस्लभेद का आरोप लगाते हुए एक हिन्दू छात्र रश्मि सामन्त को OXFORD यूनिवर्सिटी के छात्र संघ से इस्तीफा दिलवाया गया ।

https://hindi.opindia.com/reports/international/rashmi-samant-president-oxford-students-union-resigns-online-attacks-hindu-roots-jai-shri-ram

कनाडा के मेपल में भारत के समर्थन में तिरंगा लहरा रहे एक आदमी को खालिस्तान समर्थकों ने धक्का देकर गिरा दिया और गोमूत्र और गोबर का उलाहना देकर गालियां दी। कनाडा और US में हिन्दू अब वैचारिक रूप से खुलकर रह नहीं पा रहे।

https://www.opindia.com/2021/03/canada-pro-khalistanis-disrupt-tiranga-and-maple-rally-in-brampton-insult-indian-flag/

कल ही बीबीसी के एक live के दौरान प्रधानमंत्री की मां को एक अत्यंत ही निकृष्ट गाली दी गयी।

https://theprint.in/world/bbc-apologises-edits-episode-after-caller-abuses-pm-modi-on-live-podcast/615256/

वामी-कौमी गिरोह इस राष्ट्र के सवर्ण वर्ग की छवि को धूमिल कर उसे नीचे गिराने के लिए CONGRESS की सत्तालोलुपता का पूरा इस्तेमाल कर रहा है । इन्हें अच्छे से पता है कि अब इस देश का प्रबुद्ध वर्ग इनकी सच्चाई को समझ चुका है और कभी इनके झांसे में नहीं आएगा इसीलिए हमारे पहले से बंटे हुए समाज को ये गिरोह कभी मंहगाई से डराता है, कभी RSS से और कभी शिशु मंदिरों से।

इस देश की आसुरिक शक्तियां भारत के समाज को कभी एक नहीं होने देना चाहती इसीलिए मनुवाद और ब्राह्मणवाद का भय दिखाकर सिर्फ मुस्लिम, दलित, अनुसूचित, भीम, वाल्मीकि, धर्मान्तरित और एक नए सिनेमाई Web-Series व् McDonalds और KFC पर जीवित पथभ्रष्ट वर्ग को अपना नया वोट बैंक बनाकर लेकर राज़ करने के मंसूबे बना रही हैं।

हम दो पैसे के पेट्रोल डीजल सिलिंडर के झंझटों में फंसे हैं और वहां हमारे बच्चों की तुलना पाकिस्तानी मदरसों से कर के उसने हम सबको एक साथ आतंकवादी बना दिया।
मानता हूँ मध्यमवर्ग पर लोड बढ़ रहा है, लेकिन Corona में शराब की दुकान खुलने पर हमारा यही मध्यमवर्ग लाइन लगा कर शराब की बोतलें खरीदने दौड़ पड़ा था। तब मंहगाई नहीं हुई ?
रोज पैकेट के पैकेट Cigarette की खपत करने वाला मध्यमवर्गी कभी उसके दाम बढ़ने का विरोध नहीं करता, जो महज 10 साल में 5 से 20 रुपये तक हो गयी।
पान, गांजा, गुटका, तम्बाकू, जुआ, नाच में हजारों फूंकने वाला मध्यमवर्ग बस स्वार्थी होकर जिन्दा रहना चाहता है, हर हाल में |

ठीक उस तरह जैसे गजनी से युद्ध करते वक़्त जितने लोग मैदान में लड़ रहे थे उससे ज्यादा तादाद में स्वार्थी, भीरु और धर्मच्युत भारतीय उस युद्ध के फैसले का इंतज़ार कर रहे थे कि अगला बादशाह कौन होगा, लेकिन हिन्दू समाज कभी राजा के साथ लड़ने को उद्यत नहीं हुआ। जो राजा है वो लड़े । चाहे हमारे मंदिर तोड़े जाएं, देवताओं का अपमान हो, हमारे घर जला दिए जाएं, हमारे बच्चों को मार दिया जाये, स्त्रियों का मान-मर्दन हो, उनकी नीलामी हो, भूखे भेड़ियों के हाथों सरे बाजार बेच दिया जाये लेकिन हम बस मूकदर्शक बन कर देखेंगे, और गुलाम होते ही दासता पूर्ण जीवन स्वीकार लेंगे। धिम्मी कहे जाएंगे। जजिया चुका देंगे। नील की खेती कर लेंगे। अपने देशवासियों पर जलियांवाला, चौरा चौरी में गोलियां चला देंगे, देश अलग करवा लेंगे, इलाके पर इलाके छोड़ते जायेंगे, पलायन कर जायेंगे, फिर से दुसरे इलाकों की तलाश में ।

हालत आज भी अलग नहीं हैं |आकाश मेहरा, श्रीनगर में शाकाहारी वैष्णव ढाबा चलता था। 17 फरवरी को उसे गोली मार दी गयी बिना-किसी-मजहब वाले आतंकवादी द्वारा । न कोई देशव्यापी आंदोलन हुआ न कोई प्रदर्शन न किसी गणमान्य व्यक्ति से कोई टिप्पणी।
रिंकू शर्मा ,कमलेश तिवारी, अंकित शर्मा, निकिता तोमर, पालघर साधु और जाने कितने ऐसे लोग जिन्हें योजनाबद्ध तरीके से मार दिया गया मगर हमारा देश चलता जा रहा है, चुनाव लड़े जा रहा है ।

एक बेकसूर ब्राह्मण, विष्णु तिवारी, SC/ST Act के कारण झूठे केस में सजा काट कर अपने जीवन के २० साल की गंवा देता है, 17 से 37 का हो जाता है, अपने पिता को अंतिम समय में देख भी नहीं पाता है लेकिन इस देश में किसी बुद्धिजीवी को इसकी चर्चा करने की सुध नहीं होती। कोई मानवाधिकार आयोग उसके पक्ष में मुआवजे की मांग और दोषियों को सजा दिलाने की मांग करता नजर नहीं आता।
इस देश के इतने माननीयों में से कोई भी इस अन्याय के खिलाफ दो टूक शब्दों में इसकी निंदा नहीं करता।
आखिर क्यों करे ? वो कोई अख़लाक़ या तबरेज़ थोड़े है। वो कोई कफील खान थोड़े ही है।
इस देश का ब्राह्मणविरोध इस चरम पर आ चुका है की २१ साल की टूलकिट बनाने वाली वामपंथ की लाड़ली दिशा रवि के लिए पूरा देश और न्यायिक व्यवस्था एक साँस में खड़ा हो उठता है लेकिन दिशा रवि की उम्र से महज एक वर्ष कम समय जेल में काट चुके ब्राह्मण के लिए उतने सालों तक किसी को उसे न्याय दिलाने की सुध नहीं रही।

https://timesofindia.indiatimes.com/city/agra/after-20-years-in-jail-on-rape-charges-man-found-not-guilty-by-hc/articleshow/81279278.cms

ऐसे हजारों मुद्दे हैं और जब तक इन मुद्दों पर सनातनी एक नहीं होंगे तब तक मंहगाई व् अन्य मुद्दों पर भी हमारी कोई बात नहीं मानी जायेगी | इन सबका मतलब समझो और फिर सोचों आने वाले 40 साल कैसे जियोगे क्या बनाओगे आने वाली पीढ़ियों के लिए, अपने बेटे-बेटियों के लिए।

पढ़ने के लिए आभार। जुड़े रहिये।

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