IAS और उसका रुतबा और उस रुतबे के पीछे की सड़ांध, खोखलापन। आजादी के बाद से ही ये सड़न बढ़ती जा रही है, इसकी जकड़ इस देश के नागरिकों का ही दम घोंट रही है, उनके जीवन स्तर को गिरा रही है, भारत के लोकतंत्र के प्रति क्रोधित कर रही है और भारत जैसे युवा देश की प्रगति के मार्ग के आड़े आ रही है।
जिस तरह श्रीराम के बाणों के भय ने समुद्र को उद्द्ण्ड से विनम्र बना दिया था, ठीक उसी तरह आज भारत के आध्यात्मिक, राजनैतिक, न्यायिक, प्रशासनिक, सामाजिक संस्थानों एवं व्यवस्था को सनातनियों की एकीकृत हुंकार के भय से सही मार्ग पर लाने की आवश्यकता है।
जीवन कितना क्षणभंगुर है नश्वर है क्षणिक है, सब जानते हुए भी, मानव मन एक यायावर सा इधर से उधर , सुखों की खोज में भटकता रहता है । इस कविता के माध्यम से अपन मन केे उसी आवारापन को व्यक्त करने का प्रयास किया है।
आपके प्रोत्साहन की भी आकांक्षा है इस यायावर को।
एक साधे सब सधे , सब साधे सब जाये।
प्रधानसेवक मोदी का भी कुछ यही हिसाब रहा है अब तक। वो भी बिचारे समाज के हर वर्ग को लेकर चलना चाहते हैं लेकिन ये देश और समाज है की उन्हें सांस भी नहीं लेने देता।
करने कुछ जाते हैं और होता कुछ और है।
इसकी वजह है की निर्णय लेते समय वो अपने देशवासियों की एक विषेशता का ध्यान नहीं रखते !
हमारी कृतघ्नता !