यायावर सा पथच्युत बैरी अवचेतन मन,
इसे लुभाएं मूढ़ जगत के आभासी सम्मोहन,
विह्वल करते इसको रोचक कौतुक नूतन,
भीतर छुपा हुआ इक्षाओं का दुर्गम कानन ।

इसे मोहते माया के उच्छृंखल आकर्षण,
अविरल अद्भुत आडम्बर के कोमल आलिंगन,
जन्मों से आलोक से वंचित चंचल अंतर्मन,
नियति से मांगे अनवरत सुखों के अनुमोदन ।

आत्ममुग्ध इस चित्त को सोहे केवल अभिनंदन,
नश्वर कृत्रिम ऐश्वर्य शिखर का आरोहण,
कभी यहां कभी वहां नित्य कोई भौतिक स्पंदन,
करता ओझल क्षणभंगुर तृष्णाओं का अनुसरन।

पूर्वाग्रह से ग्रसित भ्रमित से अधखुले नयन,
देख न पाएं दिन बीतें कैसे क्षण-क्षण ,
वर्तमान में बैठा करता कल का अन्वेषण।
यायावर सा पथच्युत बैरी अवचेतन मन ।

पढ़ने के लिए आभार। जुड़े रहिये।

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