कुछ मूर्ख अब होली बीतने के बाद कई सारे वीडियो शेयर करके ये साबित करने की कोशिश करेंगे की कैसे हिंदुओं के इस पावन पर्व के दिन नारियों के सम्मान को तार-तार किया गया, लेकिन वीडियो बनाते वक्त ना उन्हें रोकेंगे न वीडियो के सहारे कानून की मदद लेंगे।
वीडियो तो वो भी वायरल हैं जिसमें होली मनाने वालों पर पुलिस ताबड़तोड़ डंडे बरसाती दिख रही है , तो क्या माना जाए की इतनी बड़ी आबादी वाले देश में जहां करोड़ों लोग होली मनाते हैं, सबने बदसुलूकी की या सबके साथ पुलिस ने सख्ती की ? क्या ये बोलना सही होगा ?
अगर करोड़ों लोग एक ही दिन बदसुलूकी करने पर आमादा हों जाएं तो 1947 वाली स्थिति से भी बदतर हालात पैदा हो जायेंगे जिसे कानून भी संभाल नहीं पाएगा लेकिन शुक्र करो की ये हिंदुस्तान है जहां बहुसंख्यक समाज की 99.9% आबादी अभी भी कानून का डर मानती है और दायरे में रहती है।
इसलिए जो बात जितनी है उसे उतना ही रखें और समाज को बदनाम करने के इस षड्यंत्र का हिस्सा ना बनें । जिन्हें लगता है की उनके साथ गलत हुआ है वो कानून की मदद लें और शिकायत दर्ज कराएं और जिन्हें वो दोषी मानते हैं उनके लिए दंड की मांग करें, पूरे त्योहार और समाज को नहीं।
उनपर कोई 80 करोड़ लोगों ने रंग नहीं लगा दिया की एक पूरे त्योहार को बदनाम करने निकल पड़े। जब आप कहते हो की आतंक का कोई मजहब नहीं होता, तो फिर यहां वो उदारता वो महानता वो सहिष्णुता कहां चली जाती है ? सिर्फ धर्म और अवसर देखकर ही क्यों मानवता जागती है आपकी ?
इस समाज के कुछ लोग आतंकवाद, कई अन्य रिवाजों को, और उनसे उपजे सामाजिक द्वेष पर चुप रहते हैं लेकिन बहुसंख्यकों के एक त्योहार को बदनाम करने के लिए, हर रंग लगाए 20-25 साल के लड़के को, जिसे अभी पूरी जिंदगी देखनी है, आतंकी या उससे भी बड़ा गुनहगार साबित करने में लगे रहते हैं।
हमारे वकील छोटी बच्चियों की रेप करके हत्या कर देने वालों के भी मुकदमे लड़ते हैं और अदालतें उन्हें रिहा भी कर देती हैं इसी समाज में रहने के लिए: “Every Sinner Has A Future” बोलकर, तो होली की वायरल इन विडियोज में ये युवक उनसे भी दुर्दांत हैं जिस पर उनका अपना समाज शर्मसार हो रहा है?

मैं उनसे बात नहीं कर रहा जो एक षड़यंत्र और बहुसंख्यक समाज से या उसकी कुछ प्रथाओं से नफरत के कारण होली दिवाली दशहरा और लगभग अन्य हर पर्व त्यौहार पर ऐसे ही मौकों की तलाश में रहते हैं। मैं बहुसख्यक समाज के उन लोगों से मुखातिब हूँ जो खुद को निष्पक्ष न्यायप्रिय और जागरूक मानते हैं। क्या उन्हें बहुसंख्यक समाज के हर त्यौहार पर ऐसे मसले खड़े करने वालों का मकसद दिखाई नहीं देता ?
क्या उन्हें नहीं समझ आता की त्योहारों पर नारी सम्मान और अधिकारों की बात करने वाले ये लोग, बहुसंख्यक समाज की, हर साल हज़ारों की तादाद में हो रही लड़कियों के बलात्कार और सरेआम की जा रही निर्मम हत्याओं पर चुप रहते हैं , कई बार हत्यारों के पक्ष में, छद्म रूप से बोलते भी दिखाई देते हैं अगर वो वर्ग या जाती विशेष से ताल्लुक रखता हो तो |
क्या उन्हें इस 130 + करोड़ से भी ऊपर की आबादी वाले देश में , पूरे साल में, बहुसंख्यक समाज के कुछ त्योहारों के दिन ही , नारी उत्पीड़न की समस्या से समस्या होती है और बाकी के साल हो रही सामूहिक बलात्कार, अगवा कर बलात्कार, नाम बदलकर बलात्कार फिर जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह, गोली मारकर हत्या, चाकुओं से गोदकर हत्या, टुकड़ो में काटकर हत्या, अपहरण , घरेलु हिंसा आदि की घटनाओं , से कोई समस्या नहीं होती ?
ये अपराध किसी एक समाज के लोग ही करते हैं ऐसा भी नहीं है ? हर समाज के लोग इसमें होते हैं, किसी में ज्यादा , किसी में कम , लेकिन जो लोग बहुसंख्यक वर्ग के त्योहारों और उनके हर्ष और उल्लास से मनाने के तरीकों से नफरत करते हैं , उन्हें हर जगह वही दिखाई देगा जो वे देखना चाहते हैं।

इन त्योहारों को नापसंद करने वाले आज ही पैदा हुए हों ऐसा नहीं है। इन त्यहारों पर हिंदुस्तान की गुलामी के कारण लगते रहे निषेध और बंदिशों का इतिहास पुराना है मगर 1000 सालों की ग़ुलामी के दौरान इतने जुल्म सहकर भी जिस समाज ने इन त्योहारों को मनाना नहीं छोड़ा, आज लोकतंत्र, नारी सुरक्षा, कल्याण और मानवतावाद की आड़ में कुछ कुबुद्धि लोग उन त्योहारों को एक बार फिर से जाहिलाना और अराजकतापूर्ण साबित करके उनपर बंदिश लगाना चाहते हैं। बहुसंख्यक समाज के स्वयं को सभ्रांत और ज्ञानी समझने वाले लोग ये भूल जाते हैं की जिन प्रथाओं को ज़िंदा रखने के लिए करोडो पूर्वजों ने मौत को गले लगा लिया, अगर ये प्रथाएं न हों तो ये हिन्दू कही जाने वाली वो कौम , जिसे आदि गुरु शंकराचार्य ने अकल्पनीय यात्राएं करके , धर्म प्रचार करके और देश के कोने कोने में मठों की स्थापना करके पूरी तरह भटकने से बचाया और फिर से वेदोन्मुख बनाया, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा और रामायण जैसी कालजयी रचनायें देकर राम और हनुमान की भक्ति से फिर से जोड़ा, वो कौम जाने कितने मजहबों, पंथों, समुदायों की भीड़ में बंटकर कब की विलीन हो गयी होती।

अगर आज के नवयुवक इन त्योहारों को उत्साह से मनाते हैं तो समर्थ बहुसंख्यक न्यायप्रिय विभूतियों को इसे ईश्वर का वरदान मानकर सहर्ष अपना समर्थन देना चाहिए। धर्मो रक्षति रक्षितः को समझते हुए , दुसरे सम्प्रदायों की तरह उन्हें भी भविष्य के अपने इन धर्म पताका वाहकों के मार्गदर्शन और सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए , अगल उनसे गलतियां हो तो उनपर रोष व्यक्त करके उन्हें भेड़ियों के आगे परोसने की बजाय , अपने घर की बात की तरह देखते हुए तथ्य और षड्यंत्र में भेद करते हुए न्यायोचित कर्म करना चाहिए जिससे न्याय भी हो और अपने समाज के किसी युवा का भविष्य या समाज पर से उसका विश्वास छिन्न-भिन्न न हो जाये।

सोशल मीडिया पर कुछ दुर्भावना से ग्रसित कुछ लोगों के अपने ही विरुद्ध गहरी चाल को न समझते हुए दो चार वीडियोज देखकर शर्मिंदा हुए बिना , उद्वेलित हुए बिना, क्या हम समाज और व्यक्ति दोनों के प्रति न्यायपूर्ण व्यव्हार कर सकते हैं ? अरे जब कानून भी नन्ही बच्चियों के बलात्कारी और कातिल लोगों को मौका देकर फिर से इसी समाज में रहने और फलने-फूलने के लिए छोड़ देता है तो तुम्हारे इन युवको का कृत्य क्या उससे जघन्य है ? क्या छेड़-छाड़ की घटनाएं आये दिन होते नहीं रहतीं ? क्या उन घटनाओं में आम आदमी से लेकर स्वयं नेता, पुलिस , वकील , जज , मजिस्ट्रेट, सेना के लोगों पर आरोप नहीं लगते ? सजाएं नहीं पाते ? क्या उन मामलों में पूरे समाज या पूरी नौकरशाही या न्यायिक व्यवस्था को घसीट लिया जाता है ? नहीं ना ? तो फिर क्या ऐसी घटनाओं के पीड़ितों को इस न्यायिक प्रक्रिया का प्रयोग करते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग और कानून की मदद नहीं लेनी चाहिए ?

ये सब करने के स्थान पर, सोशल मीडिया पर एक पूरे समाज के विरुद्ध अभियान चलाने वाले ये बताएं की आज से 20 वर्ष पहले अगर अपने बचपन की याद करो तो उन्हें याद आएगा की तब स्थिति इतनी गंभीर नहीं थी। हर धर्म और मजहब के लोग भली भाँती जानते थे की होली दिवाली जैसे त्यौहार घरों में नहीं बल्कि बाहर निकलकर खुले में खेले जाने वाले त्यौहार हैं, गलियों मुहल्लों में होने वाले उत्सव हैं जिनके बहाने पूरा बहुसंख्यक समाज एकत्रित होता है, जुड़ता है | जिन्हें इससे समस्या नहीं होती थी वो इनमें शामिल होकर उसका आनंद भी लेते थे और जो ये त्यौहार नापसंद करते थे वो उतने समय के लिए वो रास्ते बदल लिया करते थे , जैसे अब आप सड़क पे हो रही नमाजों के लिए बदलते हैं , दो-दो साल कानून के संरक्षण में चलने वाले धरने प्रदर्शनों के लिए बदलते हैं , नेताओं की और अन्य प्रकार की राजनैतिक सामाजिक रैलियों के लिए बदलते हैं या चुपचाप उस दिन अपने घर में पड़े रहते हैं ।
तो फिर होली जैसे बड़े त्यौहार के दिन ही कुछ लोगों का ऐसा दोगला रवैया होता है ?
इसलिए की वो भली भाँती जानते हैं की होली घर पर नहीं मनाई जा सकती तो अगर नारी सम्मान, सुरक्षा , सामाजिक सद्भावना या किसी भी तरह इन त्योहारों के बाहर निकलकर खेलने पर प्रतिबन्ध लग जाये , जैसा कभी गुलामी के दिनों में कभी रहा होगा , तो बहुसंख्यक समाज धीर धीरे इन उत्सवों को मनाना बंद ही कर देगा , भुला देगा , बस ऑनलाइन आर्डर करेगा , खायेगा , शराब पियेगा , गंदे फूहड़ गीतों पर नाचकर नचाकर क्लबों में पैसे खर्च करेगा और वो सब कुछ करेगा जिससे दूसरों का तो फायदा होगा लेकिन उसके अपने समाज और लोगों से मिलने जुलने और भेद-भाव मिटाकर , मंडली जमाकर , नुक्कड़ चौराहों और चौपालों पर प्रेमपूर्वक होली नहीं गायेगा, अबीर और गुलाल की फुहारों के बीच ठुमके नहीं लगाएगा , भाईचारा नहीं दिखायेगा , अपनी एकता नहीं समझ पायेगा, एक नहीं हो पायेगा। ध्यान रहे , ऐसा होने से न सिर्फ उनका फायदा है जो चाहते हैं की बहुसंख्यक समाज बंटा रहे , एक दुसरे से पृथक रहे बल्कि इस देश की कई व्यवस्थाएं भी यही चाहेंगी की लोग एक न हों क्यों एकता में बल होता है और ऐसा होने पर उनपर नियंत्रण कठिन होगा।

अंत में मैं उस हतवीर्य कायर पुरुष को धिक्कारता हूँ जो एक-दो बार नहीं बल्कि कई बार अज्ञात पुरुषों द्वारा अपनी स्त्री को गले लगाते हुए देखता है , फिर भी उसी रास्ते से चलता चला जाता है, एक बार भी उन युवकों से इसका विरोध नहीं करता , उन्हें नहीं रोकता या प्रतिकार नहीं करता , बस वीडियो बनाकर बाद में सोशल मीडिया पर वायरल करके एक समाज के खिलाफ षड़यंत्र करता है। धिक्कार है तुझे कापुरुष !
आपमें से बहुत लोग ये भी बोल सकते हैं की उन्हें डर लग रहा होगा ये इतने लोगों की भीड़ में वो क्या कर लेते , वगैरा वगैरा। मैं यही कहूंगा की ऐसे नपुंसकों को पत्नी रखने का कोई अधिकार नहीं है। उसे कोई जान देने के लिए नहीं कह रहा लेकिन जब तुम अपनी औरत के लिए बोलने के बजाय वीडियो बना कर दुहाई दोगे तो मेरी तुमसे कोई सहानुभूति नहीं हो सकती। उसपर भी अगर मर्द नपुंसक हो तो औरत को तो अपनी इज़्ज़त के लिए बोलना चाहिए , अगर वो असुरक्षित महसूस कर रही हो तो। वीडियो में ऐसा कहीं कुछ नज़र नहीं आता। फिर भी अगर आपको लगता है की युवकों ने जो किया वो बलात्कार जैसा अपराध है तो आप जो वीडियो शेयर करके बैठ रहे हो , खुद जाकर इसकी रिपोर्ट करें, लेकिन समाज और त्योहारों को बदनाम न करें क्योंकि इन त्योहारों को मनाने के लिए बहुसंख्यक समाज ने बहोत क़ुर्बानियां दी हैं , गुलामी का दंश झेलकर भी इन्हें बचाये रखा है।

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