किसान आंदोलन की आड़ में..

जब से केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली नरेन्द्र मोदी सरकार बनी है तब से देश में आंदोलनों की बाढ़ आ गई है तथा यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी से देश संभल नहीं रहा। वर्तमान का तथाकथित किसान आंदोलन इसी पृष्ठभूमि में पैदा हुआ है और यह भस्मासुर की तरह बढ़कर पूरे देश को अपनी चपेट में लेने की तैयारी में है। लोकतंत्र में आंदोलन करना जनता का अधिकार है किंतु राजनीतिक पार्टियों द्वारा जनआंदोलनों को षड़यंत्र के रूप में खड़ा करना, देश के लोकतंत्र का अपहरण करने जैसा है। वर्तमान किसान आंदोलन के विविध आयाम हैं, यह किसान की गरीबी, कर्ज की स्थिति और बढ़ती हुई आत्महत्याओं तक सीमित नहीं हैं। देश में सर्वव्यापी भ्रष्टाचार, रातों-रात बड़ा नेता बनने की लालसा, चुनावी समर में जीत प्राप्त करने की ललक, शहरों में खड़ी हो रही कोठियों का चमचमाता जंगल, नेताओं, व्यापारियों, ठेकेदारों, पूंजीपतियों के मोटे-मोटे बैंक बैलेंस, सड़कों पर दौड़ती महंगी गाड़ियों के काफिले, सरकारी नौकरों के काले कारनामे और ऐसे ही सैंकड़ों कारणों का मिलाजुला परिणाम है आज के किसान आंदोलन!

जब किसी रोग का उपचार किया जाता है तो पहला चरण उस रोग को ढंग से पहचानने का होता है। किसान आंदोलनों को भी ढंग से समझना होगा। रोग के उपचार का दूसरा चरण रोग के विषाणुओं, पीप-मवाद, कील-कांटे आदि को शरीर से निकालने के लिए ऑपरेशन करना, दवा देना, इंजेक्शन लगाना आदि उपायों का होता है। किसान आंदोलनों में भी जो विषाणु, पीप और मवाद हैं उन्हें निकालकर दूर करने की आवश्यकता है। रोग उपचार का तीसर चरण सुपथ्य तथा पौष्टिक आहार होता है। किसान आंदोलनों का अंतिम चरण भी किसानों को हर तरह से मजबूत बनाने का होना चाहिए।

क्या इस देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी में इतना साहस है जो किसान आंदोलन की वास्तविकता को पहचानकर, उसका इलाज कर सके! जब तक पहले दो चरण नहीं होंगे, तब तक तीसरा चरण नहीं आएगा। अर्थात् जिस प्रकार रोगी के घाव में मवाद पड़ा हो तो उसकी चमड़ी की प्लास्टिक थेरेपी करने से या प्लास्टर से ढंक देने से जो परिणाम आएंगे, वैसे ही परिणाम किसान आंदोलनों को शांत करने के प्रयासों के आएंगे। सबसे पहले तो किसानों की ही बात करें कि सरकारें उनके लिए क्या करती रही हैं! मैं यहा कुछ उदाहरण दे रहा हूँ।

फसल बीमा योजना

नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई फसल बीमा योजना अब तक की सबसे सफल योजना है,तथा देश के शत प्रतिशत किसान इस योजना से लाभान्वित हुए हैं,
किसानों की आय दुगुनी करने में यह एक क्रांतिकारी कदम है,

किसान दुर्घटना बीमा

किसानों को खेतों में काम करते हुए घायल हो जाने या मृत्यु हो जाने पर अलग से बीमा योजनाएं हैं जिनमें राज्य सरकारें किसान परिवारों को समुचित मुआवजा देती हैं।

शून्य ब्याज दर पर किसानों को ऋण

पिछले लगभग एक दशक से विभिन्न राज्यों के किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से ब्याज-मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। यदि कोई किसान ऋण लेकर समय पर चुका देता है तो उसे ब्याज नहीं देना होता है।

मनरेगा

किसान जिन दिनों में खाली होता है, उसके परिवार को मनरेगा योजना में प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। कोई भी किसान परिवार इस योजना में रोजगार मांग सकता है। यदि सरकार रोजगार नहीं दे पाती है तो उसे घर बैठे भुगतान किया जाता है। यह कानूनन अनिवार्य है।

अपना खेत अपना काम योजना

इस योजना में सरकार सीमांत एवं लघु कृषकों के खेतों पर साढ़े तीन लाख रुपए तक के कार्य अपनी लागत पर करवाती है। किसान अपने खेत पर मेंढबंदी, भूमि सुधार, टांका निर्माण आदि कार्य करवा सकते हैं। तीन-चार किसान मिलकर अपने लिए अलग से कुंआ खुदवा सकते हैं।

अन्य योजनाएं

जब किसान अपना माल लेकर मण्डी में जाता है तो उसके लिए कृषि मण्डी एवं कृषि विभाग के माध्यम से कलेवा योजना, अक्षत योजना, किसान हॉस्टल आदि योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनका लाभ देश के करोड़ों किसान उठाते रहे हैं। किसानों को भी आम नागरिक की तरह सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क उपचार एवं दवाएं मिलती हैं।

वर्तमान परिदृश्य

इस किसान आंदोलन के तार कहीं न कहीं खालिस्तान से जुड़े हुए हैं,हमेशा से ही अलगाववादी सोच के नेता रहे प्रकाश बादल इसका नेतृत्व कर रहें हैं, इतना सत्ता सुख भोगने के बावजूद भी इनका खालिस्तान वाला कीड़ा अभी भी कुलबुला रहा है,
जो केजरीवाल किसान की पराली को प्रदूषण से जोड़ कर पानी पी पी कर विरोध करता था किसानों को प्रदूषण का जिम्मेदार बताता था वही केजरीवाल उग्र किसानों के लिए रेड कारपेट बिछा रहा है,ये राजनीतिक दोगलापन नहीं है,तो और क्या है,
एक साधारण आंदोलन की जड़े विश्व पटल पर जुड़ना आशंकित करता है,
कनाडा हमेशा से ही खालिस्तान समर्थक रहा है,कनाडा पीएम जस्टिन टुड्रो का हालिया आंदोलन के समर्थन में बयान पूरी दाल को ही काला कर रहा है, भारत के आंतरिक मामलों में यह बयान अक्षम्य और बर्दाश्त के बाहर है,
ब्रिटिश लेबर पार्टी के सांसद तनमनजित सिंह व अन्य 35 सांसदों द्वारा राष्ट्र मंडल सचिव को चिट्ठी लिखना इनकी मानसिकता को उजागर करता है..।।
डॉ.राम सारस्वत

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