सच जानने और समझने की भूख को पेट की भूख में दबा दिया जाता है अपने यहां। अब महज ५० साल पहले की घटनाओं पर बात तक करने से आप रूढ़िवादी और RSS के दलाल, संघी और भक्त बना दिए जाते हैं।

हमारी याददाश्त इतनी कमजोर है की जिस यूपी और बिहार से मुस्लिम लीग को पाकिस्तान बनने के समर्थन में सबसे जयादा वोट मिले, आज फिर एक बार बिहार चुनाव में वहीं से ओवैसी की AIMIM जैसी कटटर निजामी इस्लामी पार्टी को ५ सीटें मिली और बीजेपी और मोदी मुश्किल से अपनी सरकार बचा पाए हैं |

अप्रत्याशित जीत के बाद सहयोगियों के
साथ Victory sign दिखाते ओवैसी

जिन नेताओं ने बिहारियों को दशकों तक बेदर्दी के साथ लूटा और बिहार को इतना बदहाल कर दिया की अब वहां से कुछ गिने चुने आईएएस/आईपीएस अफसर छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ रोजगार के लिए पलायन कर रहे युवा व् मजदूर दिखाई देते हैं, बिहार की जनता आज के चुनावों में भी उन भ्र्ष्ट नेताओं के वंशजों को लगभग जीता चुकी थी। आखिर वहां की जनता ने ऐसा क्यों चाहती थी ? क्यों बिहार की जनता अपने भविष्य से एक बार फिर खेलने की कोशिश में थे ? बिहार इतना मंदबुद्धि कैसे हो गया ये समझ से परे लगता है |

लेकिन इसके पीछे भी कहीं न कहीं स्वार्थ है। स्वार्थ रोजगार और नए लाभ और सुविधाएं रियायतें पाने का – नई सरकार बनने के बाद। और वो नई सरकार बनाने वाले वही भ्र्ष्ट लोग होते जो पहले बिहारियों शोषण कर चुके हैं।
बिहारी जनता के ऐसे मानसिक पतन को देख कर ये सवाल बार-बार जेहन में आता है की क्या ये वही बिहार है ? पाटलिपुत्र, नालंदा और राजगीर जैसे महान नगरों वाला बिहार |

वर्तमान नितीश सरकार की अकर्मण्यता से लड़ने और विरोध जताने का यही एकमात्र रास्ता सूझा बिहार की जनता को ? चलिए इसे ठीक से समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं |

फ़र्ज़ कीजिये, आपका वर्तमान नौकर अपना काम ठीक से नहीं करता तो आप क्या करेंगे ? क्या आप उसे उसकी औकात बताने के चक्कर में या उसे निकाल बाहर करने की शक्ति प्रदर्शन में अपने घर में शहर के किसी चोर उचक्के को उठा ले आएंगे जिसकी चोरी की आदत पूरी दुनिया जानती है ? नहीं ना ? अच्छा तो ये होगा की आप अपने पुराने नौकर को समझायें, अच्छा काम करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे या हद से हद एक डांट लगाएं क्योंकि नौकर भले ही कामचोर हो लेकिन कम से कम ज्यादा ईमानदार तो है या उसपर कोई चोरी का इल्जाम तो नहीं है।

लेकिन नहीं हमारी जनता इतनी मेहनत क्यों करे। वो तो सीधा सरकार बदल देगी और फिर औंधे मुँह करवट लेकर सो जाएगी ये सोचते हुए की चलो पिछली सरकार को सबक सीखा आये। वाह रे मूर्ख जनता !

अगर आपके भी राज्य की सरकारें निकम्मी हैं, आपके विधायक आपके नेता आपके वार्ड पार्षद आपके अधिकारी निकम्मे हैं तो आपको एक होना होगा उनसे काम करवाने के लिए और काम का हिसाब लेने के लिए। अपने बेटे बेटियों को सशक्त करना होगा ये लड़ाई लड़ने के लिए और गलत को सही करवाने के लिए । आप नए नेता और सरकारें लाते रहेंगे और वो फिर से आपका समय बर्बाद करके चले जायेंगे। फिर से आएंगे और झूठ बोल बोल कर बार बार सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक गिरते रहेंगे। उससे आपका भला नहीं होगा।

माo मुख्यमंत्री जी संग अन्ना हजारे जी
लोकपाल बिल लाते हुए

दिल्ली की AAP सरकार उसका बहुत अच्छा उदाहरण है। इस सरकार, इसके नेताओं और इसके मुखिया के उत्थान-पतन का अगर थोड़ा भी विश्लेषण कर लेंगे तो आप समझ पाएंगे की राजनीती में सिर्फ सोच से कुछ नहीं होता, अच्छी नियत का होना बहोत जरूरी है। देशव्यापी धरने प्रदर्शन के जोर पर एक कमज़ोर भ्र्ष्ट और लाचार कांग्रेस की सरकार को बाहर करके अनशन-शिरोमणि श्री अन्ना हज़ारे जी ने देश को जो एक अनमोल तोहफा माo मुख्यमंत्री के रूप में दिया वो कोई कैसे भूल सकता है।

इसलिये आपको चाहिए की आप वर्तमान नौकर यानी की सरकार पर ही दवाब बना कर रखें और अपने काम करवाएं वरना वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी: कौवा सांप भगाने के लिए नेवला ले आया और नेवले ने ही उसके अंडे खा लिए।

जिन किसानो और गरीबों के लिए प्रधानसेवक २०१४ से एक के बाद एक योजनाएं लाता रहा, आज प्रधानसेवक के उन्हीं ट्रैक्टर-वाहक-कृपाण-लट्ठधारी तथाकथित अन्नदाताओं ने विरोध के नाम पर या बहकावे में आकर सीधा लाल किले पर चढ़ाई कर दी और देश की अस्मिता को कलंकित किया।

समाज के अंतिम छोर पर बैठे दलित गरीब-गुरबे दबे-कुचले आदमी के लिए मोदी की सरकार ने उन्हें पक्के घर, अनाज, शौचालय, बिजली, आयुष्मान भारत, सिलेंडर, बीमा, जन-धन के अंतर्गत बैंक खाता और खाते में रूपये जमा करने जैसे बुनियादी और मूलभूत काम ईमानदारी से एक यद्धस्तर पर करवाए | इतना ही नहीं, हर वर्ग के पिछड़ों को सामाजिक सम्मान व् आत्मबल देने के लिए मोदी की भाजप सरकार ने डिस्क्रिमिनेशन Bill, मुद्रा स्कीम, Skill India, Stand-Up India जैसे नवीन प्रयास किये जो दलितों के मसीहा कहे जाने वाले नेताओं ने कभी सोचा तक नहीं। फिरभी इसी दलित समाज के नेता और असामाजिक तत्व, बुढ़ाये हुए PhD धारी छात्र नेता अपनी – अपनी राजनीति चमकाने और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए मोदी को आये दिन गरियाते और धमकाते आपको चौक चौराहे मौके की तलाश में नजर आ जायेंगे ।

जिन मुस्लिमों के लिए मोदी मदरसों में लैपटॉप ,छात्रवृति, रोजगार के अवसर, महिला-हित में कानून व् अन्य योजनाएं लाते रहे वही उन्हें बदले में बद्दुआएं और लानत भेजता रहा और मुस्लिम समाज का हर वर्ग चाहे वो छात्र हो, नवयुवक हो, व्यवसायी हो, अधकारी हो, बुजुर्ग हो या महिलाएं हों, इन्होने कोई अवसर नहीं छोड़ा मोदी के लिए अपना विरोध और नफरत जताने का।

आखिर इस नफरत का कारण क्या है ? क्या भारत का एक पूरा वर्ग भटका हुआ है ? शायद हमारे यहां कुछ लोगों को आदत पड़ गयी है सरकार से रार करके, रूठके, विरोध और विद्रोह करके, धरनों के नाम पर फसाद करके अपनी बात मनवाते रहने की। अब इस बात पर सरकार और जनता दोनों को ही सोंचना है की स्वार्थ और हठ में अंधी हो चुकी फ़सादी भीड़ की कितनी बात मानी जाए और कब लगाम लगाई जाये क्योंकि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और यहां थोड़े बहोत लोग जो काम धंधे और मेहनत से अपना गुजरा कर रहे हैं, अगर उन्हें इस बात का यकीन हो गया की सरकार भीड़ के आगे झुकती है और फैसले बदलती है, तो यकीन मानिये ये लोकतंत्र का तम्बू उखड़ते देर नहीं लगेगी।

अंत में सवाल ये बनता है की क्या हमारी स्वार्थी मदांध जनता ऐसे प्रधानमंत्री, ऐसे कर्तव्यपरायण नेता के योग्य हैं ?

मेरे हिसाब से तो नहीं , बिलकुल नहीं क्योंकि हममें अभी भी गुंजाइश है, अँधेरे में ढकेले जाने की, बरगलाये जाने की, बांटे और काटे जाने की, गलतियां दोहराने की | हम तड़प रहे हैं अपने साथ ये सब होने देने के लिए। शायद हम लूटे जाने के लिए ही बने हैं। शायद हम शाषित और शोषित होने योग्य ही हैं।

ऐसे स्वार्थलोलुप कृतघ्न समाज का उत्थान कभी सम्भव नहीं है।

पढ़ने के लिए बहुत आभार ! जुड़े रहिये !

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