एक बार श्री राम कृष्ण परमहंस से ब्रह्म समाज के धुरंधर श्री केशव चंद्र सेन मिलने आये। संध्या का समय था , काली के मंदिर में भक्तों की भीड़ थी। श्री सेन ने अपने दमदार तर्कों और प्रांजल भाषा में अपने अनीश्वरवादी विचार प्रकट किए और विभिन्न तरीकों से अपने भाषण में यह सिद्ध किया कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है। ईश्वर पर आस्था रखना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ईश्वर के भरोसे बैठना अकर्मण्यता है। लोग प्रभावित थे और केशव चंद्र सेन को यह उम्मीद थी कि आचार्य रामकृष्ण परमहंस इन भाषणों से क्रुद्ध और विचलित होंगे। पर आचार्य रामकृष्ण परमहंस मंद मंद मुस्कुराते हुए पूरा भाषण सुनते रहे । अंत में भाषण समाप्त होने पर उन्होंने उठकर केशव चंद्र सेन को गले से लगा लिया और कहा कि मैं तुम्हारे इस भाषण से उस ईश्वर की महानता पर और मुग्ध हो रहा हूंँ। क्योंकि देखो तो सही , उसने तुम्हारे माध्यम से अपनी बेइज्जती कितनी शानदार भाषा में करवाई है।

शायद आस्तिकता इसे ही कहते हैं। जब सबसे ज्यादा इस पर पूरा अविश्वास का मौका हो उस समय अपने विश्वास को सबसे ज्यादा दृढ़ रखना।।

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