देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने कोरोना महामारी का भयावह रूप देखा है. उस महामारी ने कितने लोगों की जान ले ली , हमारी आंखों के सामने हमारे अपनों ने दम तोड़ दिया . 2020-2021 तक किस तरह से कोरोना ने तबाही मचाई है सोच कर भी रुह कांप जाती है . इस बीच केंद्र सरकार से लेकर तमाम फ्रंट वारियर्स ने हर कदम पर कोरोना से लड़ाई जारी रखी. स्वास्थय कर्मियों ने अपनी जान को दाव पर लगाकर कोरोना पीड़ित लोगों का इलाज किया. लेकिन बड़े शर्म की बात है कि कुछ राज्यों की सरकारों ने उस वक्त भी अपनी ओछी राजनीति का परिचय दिया. दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र और केरल की सरकारों ने उस समय भी केंद्र सरकार की महामारी से लड़ने की तैयारियों पर सवाल उठाए, और तो और जब वैक्सीन की शुरूआत हुई उस समय भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए गए. लेकिन कहते हैं ना झूठ के दिन ज्यादा लंबे नहीं होते . कुछ यही हुआ है केरल की पिनाराई सरकार के साथ .

आपको याद होगा कि केरल की सरकार ने कथित तौर पर 2021 में कोविड-19 टीकों की शून्य बर्बादी हासिल करने का दावा किया था। लेकिन अब सरकार अपने ही झूठ के चक्रव्यूह में उलझ गयी है. क्योंकि पिनाराई सरकार का झूठ पकड़ा गया है। दरअसल TOI की रिपोर्ट के मुताबिक केरल वास्तव में लगभग 20 फीसदी वैक्सीन की बर्बादी के लिए जिम्मेदार है। रिपोर्ट के अनुसार, केरल में खास तौर से प्राइवेट अस्पतालों में, टीकों के लिए कोई खरीदार नहीं था जिसके कारण टीकों की बर्बादी हो चुकी है। यहां तक ​​कि सरकार की ओर से मुहैया कराए जा रहे मुफ्त टीके भी खत्म हो चुके हैं। केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ अनवर एम अली ने कहा, ”सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद अब टीकों की ज्यादा मांग नहीं है, कुछ अस्पताल लोगों को मुफ्त टीकाकरण के लिए भी आकर्षित नहीं कर सके। जिसकी वजह से वैक्सीन का कुछ स्टॉक खत्म हो जाने पर उसे डंप कर दिया गया। नतीजतन, अस्पतालों को भारी नुकसान हुआ है और हमने कोविड के टीके की खरीद में और निवेश नहीं करने का फैसला किया है।”

क्वालिफाइड प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के सचिव अब्दुल वहाब के अनुसार, केरल के निजी अस्पतालों में वैक्सीन की बर्बादी एक वास्तविकता है। अब्दुल वहाब ने कहा, “जब सरकारी अस्पतालों में टीके आसानी से फ्री में मौजूद हैं, तो लोग उनके लिए भुगतान करने को क्यों तैयार होंगे? इसलिए या तो सरकार को सभी टीके वापस खरीद लेने चाहिए या वैक्सीन बनाने वालों को इसे निजी अस्पतालों को नहीं बेचने चाहिए, नहीं तो वैक्सीन की बर्बादी जारी रहेगी।” रिपोर्ट के मुताबिक केरल के निजी अस्पतालों ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब टीकों की भारी मांग बढ़ गई थी, तब टीकों का स्टॉक कर लिया था। निजी अस्पतालों ने निर्माताओं से 20 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के टीके खरीदने के लिए 5 फीसदी ब्याज पर बैंक से कर्ज लिया।

कई अस्पतालों में लगभग-एक्सपायरी टीकों को बदलने के सरकार की कोशिशों के बावजूद 10% से 20% टीके बर्बाद हो गए। केरल के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “इसका मुख्य कारण यह है कि हम बदले हुए टीकों का क्या करते हैं?

कोविड-19 महामारी की दोनों लहरों के दौरान केरल और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। यहां तक कि एक वक्त पर दोनों राज्यों में देश के कुल मामलों का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा था। लेकिन जब पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी तब केरल की पिनाराई सरकार ने अपने खराब मैनेजमेंट की वजह से करीब 20% टिके बर्बाद कर दिए। केरल सरकार ने लोगों को उस महामारी में मरता हुआ छोड़ दिया.

आपको याद होगा कि उस समय कई राज्य सरकारें, वामपंथी और तथाकथित लिबरल मीडिया ने मोदी सरकार को वैक्सीन के मामले पर कितना कोसा था लेकिन जल्दी ही उन लोगों को जवाब भी मिल गया. क्योंकि वैक्सीन के उत्पादन को लेकर मोदी सरकार ने पूरी दुनिया को भारत की ताकत दिखा दी. जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार हमारे वारियर्स के साथ मिलकर सबके लिए फ्री वैक्सीन की कोशिश में लगे थे तो दूसरी तरफ केरल की पिनाराई सरकार ने न सिर्फ अपने राज्य के लोगों को वैक्सीन की कमी की वजह से मरता हुआ छोड़ दिया, बल्कि वैक्सीन ना होने का बहाना बनाकर टीकों को भी बर्बाद कर दिया।

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