प्रस्तावना – मकर संक्रांति यह अयन वाचक त्यौहार होने पर भी हिंदू धर्म में उसे अनेक दृष्टिकोणों से महत्व प्राप्त हुआ है । त्यौहार, उत्सव एवं व्रत को अध्यात्म शास्त्रीय आधार होने के कारण वे मनाए जाते हैं एवं उनसे चैतन्य का निर्माण होता है और उससे सर्वसाधारण मनुष्य को भी ईश्वर की ओर जाने में मदद मिलती है । ऐसे महत्वपूर्ण त्यौहार मनाने के पीछे का अध्यात्म शास्त्र समझकर त्यौहार मनाने से उसकी फल निष्पत्ति (लाभ की मात्रा) अधिक होती है। मकर संक्रांति का महत्व कुछ सूत्रों के द्वारा समझ कर लेंगे।
मकर संक्रांति – इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है । सूर्य भ्रमण के कारण होने वाले अंतर को पूरा करने के लिए हर 80 वर्षों के बाद संक्रांति का दिन एक दिन आगे हो जाता है। इस दिन सूर्य का उत्तरायण शुरू होता है। कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को दक्षिणायन कहते हैं।
मकर संक्रांति का व्यावहारिक महत्व – भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति का त्यौहार आपस के द्वेष, मतभेद भूलकर प्रेम भाव बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन तिल व गुड, प्रत्येक व्यक्ति को मीठा बोलने का सन्देश देता है। इस दिन अन्यों को तिल गुुड़ देने से पहले भगवान को अर्पित किया जाता है । इससे तिल ,गुड़ की शक्ति एवं चैतन्य टिका रहता है । तिल गुड़ देते समय हममें चैतन्य एवं अलग भाव जागृत होता है ।व्यावहारिक स्तर पर व्यक्ति को घर के वातावरण के चैतन्य का लाभ होता है । उसमें प्रेम भाव की वृद्धि होती है तथा नकारात्मक दृष्टिकोण से सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर जाने में सहायता मिलती है।
तिलगुड़ का महत्व – तिल में सात्विक लहरियों को ग्रहण एवं प्रक्षेपण करने की क्षमता अधिक होने के कारण तिल गुड़ का सेवन करने से अंतर्शुद्धि होकर साधना अच्छी तरह होती है।
मकर संक्रान्ति का साधना की दृष्टि से महत्व – मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है । साधना करने वाले जीव को (व्यक्ति को) इस चैतन्य का सर्वाधिक लाभ होता है ।इस चैतन्य के कारण उस जीव (व्यक्ति) का तेज तत्व वृद्धिंगत होने में सहायता होती है। इस दिन प्रत्येक जीव को (व्यक्ति ने) वातावरण में रज,तम न बढ़ाते हुए अधिकाधिक सात्विकता निर्माण करके उस चैतन्य का लाभ लेना चाहिए। मकर संक्रांति का दिन साधना के लिए अनुकूल है। इसलिए इस काल में (समय में) अधिकाधिक प्रमाण में साधना करके ईश्वर एवं गुरु से चैतन्य प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।
साधना के लिए अनुकूल काल – संक्रांति का काल साधना के लिए अनुकूल होता है, क्योंकि इस काल में ब्रह्मांड में आप तथा तेज इन तत्वों से संबंधित कार्य करने वाली ईश्वरीय क्रिया लहरियों का प्रमाण अधिक होता है।
एक ब्रह्म की ओर जाने का मार्ग दिखाना – संक्रांति का त्यौहार मिट्टी के घड़े का पूजन एवं उपायन (दान) देने की विधि द्वारा पंच तत्वों से निर्मित जीव को देह द्वारा साधना करके त्रिगुणों का त्याग करके द्वैत से अद्वैत अर्थात एक ब्रह्म की ओर जाने का मार्ग दिखलाता है।
प्रकाशमय कालावधि – इस दिन, यज्ञ में हवन के पदार्थ ग्रहण करने के लिए पृथ्वी पर भगवान अवतरित होते हैं । इसी प्रकाशमय मार्ग से पुण्य आत्मा पुरुष शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करते हैं । इसलिए यह कालावधि प्रकाशमय मानी गई है।
इस दिन महादेव को तिल – चावल अर्पित करने का महत्व – इस दिन महादेव को (शंकर जी को) तिल चावल अर्पित करने का अथवा तिल चावल मिश्रित अर्घ्य अर्पित करने का भी विधान है। इस पर्व के दिन तिल का विशेष महत्व माना गया है । तिल का उबटन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल पीना, तिल का हवन करना, भोजन बनाते समय तिल का प्रयोग तथा तिल का दान, ये सब पाप नाशक प्रयोग हैं। इसलिए इस दिन तिल गुड़ तथा शक्कर मिश्रित लड्डू खाने तथा दान करने का अपार महत्व है । जीवन में सम्यक क्रांति लाना यह मकर संक्रांति का आध्यात्मिक तात्पर्य है।
मकर संक्रान्ति को दिए गए दान का महत्व – धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठान का अत्यंत महत्व बताया गया है। इस दिन दिया गया दान पुनर्जन्म होने पर सौ गुना अधिक प्राप्त होता है।
प्राकृतिक उत्सव – यह प्राकृतिक उत्सव है। प्रकृति से तालमेल बिठाने वाला उत्सव है । दक्षिण भारत में तमिल वर्ष का प्रारंभ इस दिन से ही होता है । वहां यह पर्व ‘थई पोंगल’ नाम से जाना जाता है । सिंधी लोग इस पर्व को तिलमौरी कहते हैं, महाराष्ट्र में तथा हिंदी भाषी लोग मकर संक्रांति कहते हैं एवं गुजरात में यह पर्व उत्तरायण नाम से जाना जाता है।
हल्दी कुमकुम के पंचोपचार : –
हल्दी कुमकुम लगाना – हल्दी कुमकुम लगाने से सुहागन में स्थित श्री दुर्गा देवी का सुप्त तत्व जागृत होकर हल्दी कुमकुम लगाने वाली सुहागन का कल्याण करता है।
इत्र लगाना – इत्र से प्रक्षेपित होने वाले गंंध कणों से देवता का तत्व प्रसन्न होकर उस सुहागन के लिए कार्य करता है। (उस सुहागन का कल्याण करता है)।
गुलाब जल छिड़कना – गुलाब जल से प्रक्षेपित होने वाली सुगंधित लहरियों के कारण देवता की लहरियां कार्यरत होने से वातावरण की शुद्धि होती है एवं सुहागिनों को कार्यरत देवता के सगुण तत्व का अधिक लाभ मिलता है।
दान देना – दान देते समय हमेशा आंंचल के किनारे का आधार देते हैं । दान देना अर्थात दूसरे जीव में स्थित देवत्व को तन, मन एवं धन त्याग के शरण आना। आंचल के किनारे का आधार देना अर्थात शरीर के वस्त्रों की आसक्ति का भी त्याग करके देह बुद्धि त्याग करने की शिक्षा देना। संक्रांति का काल साधना के लिए पोषक होने के कारण दिए गए दान से देवता शीघ्र प्रसन्न होते हैं एवं दान देने वाली सुहागिनों को इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
दान क्या देना चाहिए? – साबुन, प्लास्टिक की चीजें देने की अपेक्षा सुहाग का सामान, अगरबत्ती उबटन, देवताओं के चित्र,धार्मिक ग्रंथ,पोथियां आदि अध्यात्म की पूरक वस्तुओं का दान देना चाहिए। संक्रांति के दूसरे दिन को किंक्रांति, अथवा करि दिन कहा जाता है । इस दिन देवी ने किंंकरासुर का वध किया था।
संदर्भ- सनातन का ग्रंथ त्यौहार, उत्सव एवं व्रत.
श्री. चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था
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