भगवान शिव सहज प्रसन्न होने वाले देवता हैं इसलिए शिव के भक्त पृथ्वी पर बड़े प्रमाण में है । महाशिवरात्री के अवसर पर व्रत का महत्त्व, व्रत करने की पद्धति और महाशिवरात्री व्रत की विधि के विषय में शास्त्रीय जानकारी सनातन संस्था द्वारा संकलित किए हुए इस लेख से जानकर लेंगे ।
तिथि: फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
देवता – महाशिवरात्रि में भगवान् शिव की उपासना की जाती है ।
महत्त्व: महाशिवरात्रि के दिन शिवतत्त्व नित्य की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है। शिवतत्त्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की भावपूर्ण रीति से पूजा-अर्चना करने के साथ ‘ॐ नमः शिवाय’ यह नामजप अधिकाधिक करना चाहिए ।’
व्रत के प्रधान अंग : इस व्रत के तीन अंग हैं – उपवास, पूजा एवं जागरण ।
व्रत की विधि : महाशिवरात्रि के एक दिन पहले अर्थात फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी पर एकभुक्त रहकर चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प किया जाता है । सायंकाल नदी पर अथवा तालाब पर जाकर शास्त्रोक्त स्नान किया जाता है । भस्म और रुद्राक्ष धारण कर प्रदोष काल में शिवजी के मन्दिर जाते हैं । शिवजी का ध्यान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उसके बाद भवभवानी प्रीत्यर्थ (यहां भव अर्थात शिव) तर्पण किया जाता है । नाम मन्त्र जपते हुए शिवजी को एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र व पुष्पांजलि अर्पित कर अर्घ्य दिया जाता है । पूजासमर्पण, स्तोत्र पाठ तथा मूल मन्त्र का जाप हो जाए, तो शिव जी के मस्तक पर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तक पर रखकर शिवजी से क्षमा याचना की जाती है ।
यामपूजा : शिवरात्रि की रात्रि के चारों प्रहरों में चार पूजा करने का विधान है, जिसे यामपूजा कहा जाता है । प्रत्येक यामपूजा में देवता को अभ्यंग स्नान कराते हैं, अनुलेपन कर धतूरा, आम तथा बेलपत्र अर्पित किया जाता है । चावल के आटे के 26 दीप जलाकर देवता की आरती उतारी जाती है । पूजा के अंत में 108 दीप दान किया जाता है । प्रत्येक पूजा के मंत्र भिन्न-भिन्न होते हैं तथा मंत्रों सहित अर्घ्य दिया जाता है । नृत्य, गीत, कथा श्रवण इत्यादि करते हुए जागरण किया जाता है । उसके उपरांत प्रातःकाल स्नान कर, पुनः शिवपूजा की जाती है । पारण अर्थात व्रत की समाप्ति के लिए ब्राह्मण भोजन कराया जाता है । तदुपरांत आशीर्वाद प्राप्त कर व्रत की समाप्ति हो जाती है । जब बारह, चौदह या चौबीस वर्ष व्रत हो जाएं, तो उनका उद्यापन करें ।’
महाशिवरात्रि के दिन उपासना करने के लाभ – भगवान शंकर रात्रि के एक प्रहर में विश्रांति लेते हैं । उस प्रहर को, अर्थात शंकर के विश्रांति लेने के समय को महाशिवरात्रि कहते है। महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की उपासना करने का अध्यात्मशास्त्रीय आधार इस प्रकार है – ‘शिवजी के विश्रांति के समय शिवतत्त्व का कार्य रुक जाता है, अर्थात उस समय शिवजी ध्यानावस्था से समाधि-अवस्था को प्राप्त करते हैं । शिवजी की समाधि-अवस्था अर्थात शिवजी द्वारा स्वयं के लिए साधना करने का काल । इसलिए विश्व ब्रह्मांड के तमोगुण अथवा हलाहल (विष) को उस समय शिवतत्त्व स्वीकार नहीं करते । इसलिए ब्रह्मांड में हलाहल की मात्रा प्रचंड रूप में बढती है अथवा अनिष्ट शक्तियों का दबाव प्रचंड रूप में बढता है । उसका परिणाम हम पर न हों इसलिए अधिकतम शिवतत्त्व आकृष्ट करने वाले बिल्वपत्र, सफेद पुष्प, रुद्राक्ष की मालाएं इत्यादि शिवपिंडी पर अर्पित कर वातावरण में विद्यमान शिवतत्त्व आकृष्ट किया जाता है । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के अधिक हुए दबाव का परिणाम हमें कम मात्रा में अनुभव होता है ।’
महाशिवरात्रि के दिन शिवजी द्वारा ज्ञान प्रदान करना – ‘महाशिवरात्रि के दिन शिवजी सर्व जीवों को विशेष रूप से मार्गदर्शन करते हैं । इसलिए उस दिन अनेक जीव उनके द्वारा मार्गदर्शन लेने के लिए शिव लोक में उपस्थित रहते हैं ।’ इस लेख में दी गई जानकारी के अनुसार महाशिवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय आधार समझकर एवं उस के अनुसार कृत्य कर, शिव भक्तों को अधिकाधिक शिवतत्त्व का लाभ मिले, यही भगवान शिवजी से प्रार्थना है !
संदर्भ :सनातन संस्थ का ग्रंथ ‘शिव’
चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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